भोपाल। पिछली बार हुए उपचुनाव में 146 निर्दलीय उम्मीदवारों ने ताल ठोंकी थी. इनमें सबसे ज्यादा 23 उम्मीदवारों ने मेहगांव में अपनी चुनावी किस्मत आजमाई थी. इन 28 सीटों में से करीब 6 सीटों पर निर्दलीय उम्मीदवारों ने बीजेपी-कांग्रेस के चुनावी नतीजों को प्रभावित किया था, जहां अंबाह विधानसभा सीट पर मुख्य मुकाबले में निर्दलीय उम्मीदवार नेहा किन्नर रहीं, जिन्होंने 29 हजार 796 वोट बटोरकर बीजेपी को चौथे स्थान पर धकेल दिया था, जिसके बाद जीत का सेहरा कांग्रेस उम्मीदवार के सिर बंधा.
रिटायर्ड शिक्षक ने बिगाड़े समीकरण
पार्टी में उपेक्षा से नाराज नेता चुनावों में बतौर निर्दलीय उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतरते हैं. कई मामले में निर्दलीय जीतकर आते हैं, तो अधिकांश मामले में खेल बिगड़ जाता है. पिछली बार बमोरी विधानसभा सीट पर बीजेपी से बगाबत कर के एल अग्रवाल ने निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ा था, जिन्होंने 37 हजार 922 वोट काटे थे. इसका सीधा नुकसान बीजेपी को हुआ था. वहीं ब्यावरा विधानसभा सीट पर रिटायर्ड शिक्षक मोतीलाल लोधी ने 13 हजार 238 वोट काटे थे. हालांकि सुवासरा सीट पर जीत-हार का अंतर महज 350 वोटों का रहा, जबकि यहां 2 उम्मीदवारों ने ही 11 हजार से ज्यादा वोट काटे थे. देखा जाए, तो चुनावी मैदान में उतरने वाले गिने-चुने उम्मीदवार ही जीतकर विधानसभा की दहलीज तक पहुंच पाते हैं. हालांकि इनकी पार्टियों में पूछ-परख बढ़ी है, जहां पिछली कमलनाथ सरकार ने एक निर्दलीय उम्मीदवार को मंत्री पद से नवाजा था.
जातिगत समीकरण साधने के लिए मैदान में उतरते हैं निर्दलीय उम्मीदवार ?
राजनीतिक विश्लेषक शिव अनुराग पटेरिया के मुताबिक चुनावों में जातिगत समीकरण साधने के लिए, कई बार राजनीतिक पार्टियां निर्दलीय उम्मीदवारों को खड़ा करती हैं, ताकि चुनाव में उसका फायदा मिस सके. हालांकि कई बार क्षेत्र विशेष के प्रभावी और असंतुष्ट नेता भी चुनाव मैदान में बतौर निर्दलीय उम्मीदवार ताल ठोकने लगते हैं, जिससे राजनीतिक पार्टियों के सामने परेशानी आ जाती है. इधर बीजेपी प्रदेश प्रवक्ता चेतन सिंह के अनुसार उपचुनाव 2020 में निर्दलीय उम्मीदवारों का ज्यादा प्रभाव दिखाई नहीं देगा. उनका कहना है कि, 'परिस्थितियां 2018 के चुनाव में अलग थी, लेकिन अब परिस्थितियां बिल्कुल अलग है. कुछ सीटों पर त्रिकोणीय मुकाबला है, लेकिन जनता बीजेपी के पक्ष में ही मतदान करेगी.' उधर कांग्रेस प्रदेश प्रवक्ता अजय यादव का मानना है कि, 'निर्दलीय और प्रतिपक्ष का इस उपचुनाव में कोई असर नहीं पड़ेगा. जनता कांग्रेस के पक्ष में है, और नतीजे भी इसी अनुसार आएंगे.'
घटते गए निर्दलीय प्रत्याशी
पिछले 70 सालों के चुनावी नतीजों पर नजर डालें, तो पता चलता है कि निर्दलीयों के वोट शेयर में लगातार कमी आई है. 1951 में निर्दलीयों का वोट शेयर 22.89 फीसदी था, जो पिछले विधानसभा चुनाव में 5.82 फीसदी रह गया है. 2013 के विधानसभा चुनाव में वोट शेयर सबसे कम 5.38 फीसदी रहा.
आंकड़ों को देखें, तो राज्य में मतदाताओं ने औसतन 12 निर्दलीय उम्मीदवारों को विधानसभा तक पहुंचाया. 1962 में सबसे ज्यादा 39 निर्दलीय विधायक चुनाव जीते थे. वहीं 2003 के विधानसभा चुनाव में 2 निर्दलीय उम्मीदवार चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे. पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस से बगावत कर निर्दलीय चुनाव मैदान में उतरे प्रदीप जायसवाल चुनाव जीते थे, और कमलनाथ सरकार में मंत्री भी बने. यह अलग बात है, कि कमलनाथ की सत्ता जाते ही उन्होंने पाला बदल लिया.
पिछले 5 सालों का निर्दलीय वोट शेयर
- 2018 - 5.82 फीसदी
- 2013 - 5.38 फीसदी
- 2008 - 8.23 फीसदी
- 2003 - 7.70 फीसदी
- 1998 - 6.49 फीसदी
किस सीट पर कितने निर्दलीय
विधानसभा निर्दलीय उम्मीदवार वोट
सुमावली 5 1,547 वोट
मुरैना 5 1,418 वोट
दिमनी 5 3,314 वोट
अंबाह 5 32,684 वोट
आगर 2 2,112 वोट
ग्वालियर 8 3,188 वोट
ग्वालियर पूर्व 4 1,203 वोट
मेहगांव 23 5,141 वोट
मांधाता 3 4,269 वोट
ब्यावरा 6 17,411 वोट
गोहद 4 2,208 वोट
डबरा 5 4,468 वोट
भांडेर 4 2,640 वोट
मुंगावली 8 5,155 वोट
सुरखी 8 2,258 वोट
सांचा 5 3,269 वोट
हाटपिपल्या 3 1,616 वोट
सुवासरा 2 11,078 वोट
अनूपपुर 4 2,683 वोट
सांवेर 2 1,245 वोट
बदनावर 2 1,206 वोट
जौरा 6 1,665 वोट
नेपानगर 2 3,236 वोट
बडामलहरा 10 9,118 वोट
करेरा 4 3,512 वोट
पोहरी 9 7,497 वोट
बामोरी 5 37,922 वोट
अशोकनगर 2 1,171 वोट