भोपाल। कोरोना महामारी ने जिस तरीके से भयावह स्थितियों से रुबरू कराया है, तो वहीं दूसरी ओर मानवीयता के भी वह बड़े चेहरे सामने आए हैं. जो शायद आमतौर पर कभी नजर नहीं आते. हम बात कर रहे हैं, राजधानी भोपाल के एक मुस्लिम युवक सद्दाम की जिसने इस कोरोना महामारी में अपनी जान गंवाने वाले हिंदू भाइयों का अंतिम संस्कार किया.
- 60 शवों का दाह संस्कार कर चुके हैं सद्दाम
दरअसल 24 वर्षीय युवक सद्दाम नगर निगम में शव वाहन चलाता है. ऐसे में कोरोना से मृत शवों को शमशान तक ले जाने की जिम्मेदारी सद्दाम की होती है. सद्दाम ने बताया कि कई परिवार के लोग बुजुर्ग या छोटे बच्चे होते हैं, जो संक्रमण के डर से परिजनों का अंतिम संस्कार नहीं कर पाते. ऐसे में उनकी सहमति के बाद सद्दाम उन्हें मुखाग्नि देकर उन्हें मुक्ति दिलाते हैं. सद्दाम के अनुसार अभी तक वह करीब 60 हिंदू भाइयों का अंतिम संस्कार कर चुका है, जिनके परिजन कोरोना देह होने के कारण अपनों का अंतिम संस्कार नहीं कर पा रहे थे.
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- परिवार का मिलता है सहयोग
हिंदू रीति रिवाज से करीब 60 लोगों का अंतिम संस्कार कर चुके सद्दाम के परिवार के लोग भी इस काम में उनका साथ देते है. सद्दाम के अनुसार पत्नी और बाकी परिवार के लोगों का कहना है कि, इस मुश्किल दौर में मानवता दिखाना ही सबसे बड़ा धर्म है. यही कारण है कि वह इस मुश्किल वक्त में मृत देहों का अंतिम संस्कार कर उन्हें मुक्ति दिलाते हैं.
- बच्चों से करते हैं वीडियो कॉलिंग से बात
सद्दाम अपनी पत्नी और दो बच्चों के साथ रहते हैं, हालांकि शव वाहन चलाने और संक्रमितों का अंतिम संस्कार करने के चलते वह परिवार को सुरक्षित रखने के लिए घर में ही बने एक अलग कमरे में रहते हैं. अपनी पत्नी, ढाई साल की बेटी और चार साल के बेटे से वीडियो कॉलिंग के जरिए बातचीत करते हैं.
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- इंसानियत सबसे बड़ा धर्म
मौजूदा समय में सद्दाम जैसे लोग वाकई एक सबसे बड़े धर्म को निभाते हैं. जो है, इंसानियत का धर्म. जहां कोरोना महामारी से लोग अपनों से दूर हो जाते हैं. कई बार उनका अंतिम संस्कार भी नहीं कर पाते है. ऐसे में सद्दाम जैसे लोग एक मिसाल बनते नजर आ रहे हैं. मुस्लिम होने के बावजूद भी हिंदुओं का अंतिम संस्कार उनके रीति-रिवाज से करना वाकई इस दुनिया का सबसे बड़ा धर्म है.