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Himachal Elections 2022: हिमाचल की सर्द फिजा में चुनावी महासंग्राम घोल रहा गर्माहट, जम्मू-कश्मीर के परिसीमन मुद्दे की चर्चा तेज, जानें परिसीमन की क्या है एबीसीडी - Jammu and Kashmir Delimitation

सियासत में नेताओं की रैली और नारों का जोर चोली दामन का साथ की तरह रहा है. चुनाव का शोर हो और नेताओं का नारों पर जोर ना हो तो पता ही नहीं चलता कि, चुनावी मौसम है. भारतीय राजनीति नारों के बगैर अधूरी है.(Slogans in Election) इन नारों की बदौलत सियासी दल सत्ता के चरम तक भी पहुंचे हैं. (Famous Slogans in Indian Politics) अब जम्मू कश्मीर की चुनावी सुगबुगाहट के बीच यह घमासान हिमाचल की सर्द फिजा में चुनावी महासंग्राम गर्माहट घोल रहा है. (Himachal Election 2022)

Himachal Elections 2022
हिमाचल विधानसभा चुनाव
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Published : Nov 4, 2022, 8:55 AM IST

भोपाल। जम्मू कश्मीर की चुनावी सुगबुगाहट के बीच इससे सटे हिमाचल प्रदेश में चुनावी घमासान शुरू हो गया है. हिमाचल की सर्द फिजा में चुनावी महासंग्राम गर्माहट घोल रहा है. (Himachal Election 2022) यहां चर्चा जम्मू कश्मीर के परिसीमन के मुद्दे की भी है. हिमाचल में आखिरी परिसीमन 2008 में हुआ था. इसके बाद से हिमाचल में विधानसभा के लिए कुल 68 सीटों पर चुनाव होते हैं. इसमें 17 निर्वाचन क्षेत्र अनुसूचित जाति के उम्मीदवारों के लिए आरक्षित हैं, जबकि 3 क्षेत्र अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवारों के आरक्षित हैं. आइए आपको बताते हैं कि आखिर क्या है परिसीमन का गणित. कैसे बढ़ती हैं विधानसभा सीटों की संख्या.

इसलिए किया जाता है परिसीमन: लोकसभा और राज्यों की विधानसभा में परिसीमन का काम जनसंख्या के आधार पर किया जाता है. हालांकि किसी भी राज्य में परिसीमन का काम राज्य सरकार का नहीं होता. इसके लिए राष्ट्रीय स्तर पर एक स्वतंत्र परिसीमन आयोग गठित किया जाता है, जो लोकसभा और राज्य विधानसभा सीटों की सीमाओं का पुननिर्धारण यानी परिसीमन करता है. परिसीमन का मुख्य आधार जनसंख्या होता है, ताकि सभी विधानसभाओं में लगभग एक समान जनसंख्या हो. परिसीमन आयोग की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है और यह निर्वाचन आयोग के साथ मिलकर काम करता है.

देश में 2026 में होगा परिसीमन: देश में आजादी के बाद पहला परिसीमन 1950-51 में किया गया था. इसके बाद 1952, 1962, 1972 और 2002 में परिसीमन आयोग का गठन किया गया. 1976 में आपातकाल के दौरान संविधान में संशोधन कर इसे 2001 तक के लिए स्थगित कर दिया गया था. बाद में एक अन्य संशोधन के बाद इसे 2026 तक के लिए स्थगित कर दिया गया. हालांकि जम्मू-कश्मीर राज्य के विभाजन और केन्द्र शासित प्रदेश बनाए जाने के बाद इसका परिसीमन किया गया है. उत्तराखंड राज्य के गठन के बाद भी इसका परिसीमन किया गया था. परिसीमन जनगणना के आधार पर किया जाता है. 2001 की जनगणना के आधार पर 2008 में परिसीमन किया गया था. इस दौरान हिमाचल प्रदेश का भी परिसीमन किया गया था, जिसके बाद प्रदेश में भी सीटों की संख्या बढ़कर 68 हो गई थी.

सभी सीटों पर औसतन 1 लाख वोटर: परिसीमन जनसंख्या के आधार पर ही किया जाता है. परिसीमन के दौरान देखा जाता है कि किस विधानसभा क्षेत्र में जनसंख्या ज्यादा है. ज्यादा जनसंख्या वाली विधानसभा क्षेत्रों में से या तो नई विधानसभा क्षेत्र बनाया जाता है या फिर किसी दूसरे विधानसभा क्षेत्र में उसे जोड़कर बैलेंस किया जाता है. हालांकि कोशिश होती है कि विधानसभा सीटों की संख्या में ज्यादा बढोत्तरी ना हो.

गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा बोले - 2022 के परिसीमन के आधार पर पंचायत चुनाव कराने की तैयारी में सरकार

हिमाचल प्रदेश में क्या है मतदाताओं का गणित: हिमाचल प्रदेश में कुल मतदाताओं की संख्या करीबन 55 लाख 92 हजार 828 है. इनमें पुरूष मतदाताओं की संख्या 28 लाख 54 हजार 945 है. वहीं महिला मतदाताओं की संख्या 27 लाख 37 हजार 845 है.जबकि 38 थर्ड जेंडर वोटर हैं. प्रदेश की सभी 68 विधानसभा क्षेत्रों में मतदाताओं की संख्या पर नजर दौड़ाई जाए तो सभी में औसतन 75 से 85 हजार मतदाता हैं. सबसे ज्यादा 1 लाख 3 हजार 905 मतदाता कांगड़ा जिले की सुलह विधानसभा सीट में हैं, जबकि सबसे कम मतदाता शिमला में 48 हजार 71 मतदाता हैं.

भोपाल। जम्मू कश्मीर की चुनावी सुगबुगाहट के बीच इससे सटे हिमाचल प्रदेश में चुनावी घमासान शुरू हो गया है. हिमाचल की सर्द फिजा में चुनावी महासंग्राम गर्माहट घोल रहा है. (Himachal Election 2022) यहां चर्चा जम्मू कश्मीर के परिसीमन के मुद्दे की भी है. हिमाचल में आखिरी परिसीमन 2008 में हुआ था. इसके बाद से हिमाचल में विधानसभा के लिए कुल 68 सीटों पर चुनाव होते हैं. इसमें 17 निर्वाचन क्षेत्र अनुसूचित जाति के उम्मीदवारों के लिए आरक्षित हैं, जबकि 3 क्षेत्र अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवारों के आरक्षित हैं. आइए आपको बताते हैं कि आखिर क्या है परिसीमन का गणित. कैसे बढ़ती हैं विधानसभा सीटों की संख्या.

इसलिए किया जाता है परिसीमन: लोकसभा और राज्यों की विधानसभा में परिसीमन का काम जनसंख्या के आधार पर किया जाता है. हालांकि किसी भी राज्य में परिसीमन का काम राज्य सरकार का नहीं होता. इसके लिए राष्ट्रीय स्तर पर एक स्वतंत्र परिसीमन आयोग गठित किया जाता है, जो लोकसभा और राज्य विधानसभा सीटों की सीमाओं का पुननिर्धारण यानी परिसीमन करता है. परिसीमन का मुख्य आधार जनसंख्या होता है, ताकि सभी विधानसभाओं में लगभग एक समान जनसंख्या हो. परिसीमन आयोग की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है और यह निर्वाचन आयोग के साथ मिलकर काम करता है.

देश में 2026 में होगा परिसीमन: देश में आजादी के बाद पहला परिसीमन 1950-51 में किया गया था. इसके बाद 1952, 1962, 1972 और 2002 में परिसीमन आयोग का गठन किया गया. 1976 में आपातकाल के दौरान संविधान में संशोधन कर इसे 2001 तक के लिए स्थगित कर दिया गया था. बाद में एक अन्य संशोधन के बाद इसे 2026 तक के लिए स्थगित कर दिया गया. हालांकि जम्मू-कश्मीर राज्य के विभाजन और केन्द्र शासित प्रदेश बनाए जाने के बाद इसका परिसीमन किया गया है. उत्तराखंड राज्य के गठन के बाद भी इसका परिसीमन किया गया था. परिसीमन जनगणना के आधार पर किया जाता है. 2001 की जनगणना के आधार पर 2008 में परिसीमन किया गया था. इस दौरान हिमाचल प्रदेश का भी परिसीमन किया गया था, जिसके बाद प्रदेश में भी सीटों की संख्या बढ़कर 68 हो गई थी.

सभी सीटों पर औसतन 1 लाख वोटर: परिसीमन जनसंख्या के आधार पर ही किया जाता है. परिसीमन के दौरान देखा जाता है कि किस विधानसभा क्षेत्र में जनसंख्या ज्यादा है. ज्यादा जनसंख्या वाली विधानसभा क्षेत्रों में से या तो नई विधानसभा क्षेत्र बनाया जाता है या फिर किसी दूसरे विधानसभा क्षेत्र में उसे जोड़कर बैलेंस किया जाता है. हालांकि कोशिश होती है कि विधानसभा सीटों की संख्या में ज्यादा बढोत्तरी ना हो.

गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा बोले - 2022 के परिसीमन के आधार पर पंचायत चुनाव कराने की तैयारी में सरकार

हिमाचल प्रदेश में क्या है मतदाताओं का गणित: हिमाचल प्रदेश में कुल मतदाताओं की संख्या करीबन 55 लाख 92 हजार 828 है. इनमें पुरूष मतदाताओं की संख्या 28 लाख 54 हजार 945 है. वहीं महिला मतदाताओं की संख्या 27 लाख 37 हजार 845 है.जबकि 38 थर्ड जेंडर वोटर हैं. प्रदेश की सभी 68 विधानसभा क्षेत्रों में मतदाताओं की संख्या पर नजर दौड़ाई जाए तो सभी में औसतन 75 से 85 हजार मतदाता हैं. सबसे ज्यादा 1 लाख 3 हजार 905 मतदाता कांगड़ा जिले की सुलह विधानसभा सीट में हैं, जबकि सबसे कम मतदाता शिमला में 48 हजार 71 मतदाता हैं.

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