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Guru Purnima 2021: जानें! क्या होता है गुरु का अर्थ, इस दिन क्यों पूजे जाते हैं साईं बाबा?

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Published : Jul 24, 2021, 8:07 AM IST

गुरु पूर्णिमा के दिन साईं बाबा की पूजा का भी विधान है. श्री साईं सच्चरित से पता चलता है कि सबसे पहले तात्या साहेव नूलकर ने गुरु पूर्णिमा पर साई बाबा की पूजा की थी. कहा जाता है कि बाबा ने अपने भक्तों को गुरु की पूजा करने का ज्ञान दिया था.

Sai is worshipped on Guru Purnima
गुरु पूर्णिमा पर साईं आराधना

भोपाल। गुरु पूर्णिमा अपने गुरुजनों के आशीर्वाद प्राप्ति का दिन होता है. गुरु शब्द की उत्पति गु और रु शब्द से हुई है. गु का अर्थ होता है अज्ञानता का अंधकार और रु का अर्थ होता है 'इसे दूर करने वाला' सो अंधकार को दूर करने वाले को गुरु कहते हैं. गुरु पूर्णिमा सटीक समय है शिरडी के साईं बाबा का आशीर्वाद पाने का. देश विदेश के लाखों साईंभक्त श्री साईंबाबा को गुरु मानते हैं.

श्री साईसच्चरित के 17वें अध्याय में लेखक हेमाडपंत द्वारा गुरु का महत्व बताया गया है. हेमाडपंत कहते हैं कि हर रोज उत्तम शास्त्रग्रंथोंको सुनना चाहिए, विश्वसनीय रूपसे सद्गुरु के वचन सर आंखों पर रखने चाहिए तथा हर समय सावधानी बरत कर तथा अपने ध्येय से विचलित ना होते हुए लोग अपने उद्धार का मार्ग चयन करते हैं. उनके उपदेशों से अनगिनत लोगों का उद्धार होता है और उनके लिए मोक्ष का मार्ग सरल हो जाता है.

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नूलकर ने की थी गुरु पूर्णिमा पर साईं बाबा की पूजा (Noolkar Started The Tradition)

श्री साईं बाबा के अनन्य भक्त तात्या साहेब नूलकर अपनी माताजी तथा सासू मां को लेकर शिरडी पधारे थे. उसी दिन गुरु पूर्णिमा के शुभ अवसर पर तात्या साहेब नूलकर ने पूर्णिमा के दिन बाबा की पूजा की थी. पूजा कर तात्यासाहेब नूलकर के चले जाने के पश्चात् बाबा ने तात्या पाटिल कोते को पहुँचने के लिए संदेशा भेजा. इस समय तात्या पाटिल कोते अपने खेत में काम कर रहे थे. बाबा का संदेशा पाकर वे तुरंत बाबा के पास पहुंचे. उस समय बाबा ने कहां, “वह अकेला क्यों मेरी पूजा करता है, तुम पूजा क्यों नहीं कर सकते? किन्तु बाबा को क्रोध आयेगा यह सोचकर मन में होते हुए भी कोई इस बारे में धीरज नहीं बांध पाता था.

अब प्रत्यक्ष बाबा की ही अप्रत्यक्ष सम्मति मिलने के पश्चात् तात्या पाटिल कोते तथा वहां उपस्थित माधवराव देशपांडे आदि सभी भक्तों के आनंद की सीमा नहीं रही. इसके पश्चात सब से ज्येष्ठ दादा केलकर को गुरुपूर्णिमा के दिन बाबा की गुरु रूप में पूजा करने का मान प्रदान किया गया. उन्होंने द्वारकामाई जाकर गंध, अक्षत, हार, फूल, धोती जोड़ आदि सामग्री से बाबा की यथाविधि पूजा की. इस दिनसे साईं भक्त गुरु पूर्णिमा पर्व मनाने लगे.

ज्ञान के महासागर साईं (Jnan Ke Mahasagar Sai)

श्री साईं सच्चरित्र के 17 वें अध्याय में हेमाडपंत इन्होंने गुरु का महत्व समझाया है. हमेशा उत्तमोत्तम शास्त्रों का श्रवण करें, विशवास के साथ सद्गुरुवचन का पालन करें तथा सदा सावधान रहकर स्वयं की नजर ध्येय पर रखनी चाहिए. शास्त्र तथा गुरु के बताये उपदेश एवं आचरण ध्यान में रखते हुए लोग अपने उद्धार का मार्ग चुनतें हैं. गुरु के उपदेश के कारण अनगिनत लोगों का उद्धार होता है तथा उनके लिए मोक्ष का मार्ग सुलभ हो जाता है. बिना श्रद्धायुकत मन तथा पूर्ण विनम्रता के साथ साष्टांग प्रणाम कर गुरु की शरण में विलीन होने की स्थिति में गुरु अपने शिष्य को ज्ञान की पोटली नहीं देते हैं. गुरु को सेवा के लिए सर्वस्व अर्पण करने की जरुरत है. उनसे बंध तथा मोक्ष इन बातों का स्पष्टीकरण प्राप्त करना चाहिए. उनसे विद्या तथा अविद्या इन विषयोंपर प्रश्नय करने चाहिए. इससे गुरु द्वारा उत्तम फल की प्राप्ति होती है.

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घर पर ही जरूरतमंदों के लिए खाना पकाएं मंदिर में दान कर आएं या फिर अनाज, जरूरत का कुछ सामान भी दान में दिया जा सकता है. साईं सहस्त्रनामावली का 108 बार जाप कर सकते हैं. नजदीकी साईं मंदिर में जाकर फूल अर्पित करने से भी साईं कृपा प्राप्त होती है

भोपाल। गुरु पूर्णिमा अपने गुरुजनों के आशीर्वाद प्राप्ति का दिन होता है. गुरु शब्द की उत्पति गु और रु शब्द से हुई है. गु का अर्थ होता है अज्ञानता का अंधकार और रु का अर्थ होता है 'इसे दूर करने वाला' सो अंधकार को दूर करने वाले को गुरु कहते हैं. गुरु पूर्णिमा सटीक समय है शिरडी के साईं बाबा का आशीर्वाद पाने का. देश विदेश के लाखों साईंभक्त श्री साईंबाबा को गुरु मानते हैं.

श्री साईसच्चरित के 17वें अध्याय में लेखक हेमाडपंत द्वारा गुरु का महत्व बताया गया है. हेमाडपंत कहते हैं कि हर रोज उत्तम शास्त्रग्रंथोंको सुनना चाहिए, विश्वसनीय रूपसे सद्गुरु के वचन सर आंखों पर रखने चाहिए तथा हर समय सावधानी बरत कर तथा अपने ध्येय से विचलित ना होते हुए लोग अपने उद्धार का मार्ग चयन करते हैं. उनके उपदेशों से अनगिनत लोगों का उद्धार होता है और उनके लिए मोक्ष का मार्ग सरल हो जाता है.

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अब प्रत्यक्ष बाबा की ही अप्रत्यक्ष सम्मति मिलने के पश्चात् तात्या पाटिल कोते तथा वहां उपस्थित माधवराव देशपांडे आदि सभी भक्तों के आनंद की सीमा नहीं रही. इसके पश्चात सब से ज्येष्ठ दादा केलकर को गुरुपूर्णिमा के दिन बाबा की गुरु रूप में पूजा करने का मान प्रदान किया गया. उन्होंने द्वारकामाई जाकर गंध, अक्षत, हार, फूल, धोती जोड़ आदि सामग्री से बाबा की यथाविधि पूजा की. इस दिनसे साईं भक्त गुरु पूर्णिमा पर्व मनाने लगे.

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