भोपाल। भारत में साल का आखरी सूर्य ग्रहण खत्म हो गया. वहीं इस सूर्य ग्रहण से गायों पर क्या असर पड़ता, साथ ही सूर्य की चमकीली किरणें क्या गायों पर विपरीत असर डालती हैं. इसके बारे में यहां जानें. जिस गौ माता में 36 करोड़ देवी देवताओं का वास होता है वो अपनी रक्षा ग्रहण में कैसे करती है? वो कौन सी शक्तियां होती हैं जिनसे गौ वंश पर नहीं पड़ता ग्रहण का प्रभाव, गर्भवती गायों को ग्रहण से बचाने के पीछे की क्या कहानी है? ग्रहण और गाय का कोई कनेक्शन है या नहीं, इन सब के बारे में पढ़िए यहां. (solar eclipse effect on cows) (govardhan pooja ka mahatva) (kab hai govavardhan puja)
ग्रहण से कैसे बेअसर रहती हैं गाय: ग्रहण के दौरान आम लोगों को धार्मिक मान्यता अनुसार जहां हैं वहीं बने रहने की सलाह दी जाती है, लेकिन क्या ये नियम गौ वंश पर भी लागू होता है. क्या ये संभव है कि ग्रहण के दौरान सड़क पर विचरण कर रही गायों को किसी छत के नीचे ला जा सकें और अगर ऐसा जरूरी है तो क्यों? गौ संवर्धन बोर्ड के अध्यक्ष अखिलेश्वरानंद गिरी महाराज गाय के धार्मिक पहलू की व्याख्या करते हुए बताते हैं, ऐसी मान्यता है कि गायों पर और उसमें भी बड़ी सींग वाली गायों पर ग्रहण का प्रभाव शून्य होता है. महाराज के मुताबिक गाय के शरीर में उसकी रीढ़ की हड्डी में एक सूर्य केतू नाड़ी होती है, जिसमें नाभिकीय विद्युत तरंगों को सहन करने की अद्भुत क्षमता होती है. ग्रहण काल के दौरान वही सूर्य केतू नाड़ी गाय के शरीर की रक्षा करती है. ग्रहण काल में सूर्य की जो किरणें धरती पर पड़ती हैं गौ वंश अपनी क्षमता के बल पर उनसे अपनी रक्षा कर लेता है. (govardhan puja 2022)
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गर्भवती गायों पर क्यों होता है संकट: गौ संवर्धन बोर्ड के अध्यक्ष अखिलेश्वरानंद गिरी महाराज धार्मिक परंपराओं के हवाले से कहते हैं, हांलाकि हम बचपन से ये भी सुनते आए हैं कि ग्रहण का गर्भवती गायों से संबंध रहा है. गर्भवती गाये ग्रहण काल में बाहर ना रहें, इसके लिए उन्हें ग्रहण काल के दौरान घर के बंद स्थानों पर बांध दिया जाता है. इसके अलावा उनके शरीर पर गेरू के कुछ चिन्ह बना दिए जाते हैं. अखिलेश्वरानंद गिरी महाराज कहते हैं, असल में गाय के सींग को लेकर कहा जाता है कि वो पिरामिड का काम करते हैं. इनके जरिए ग्रहण काल का असर गाय के गर्भ में पल रहे भ्रूण पर पड़ता है और भ्रूण विकृति की संभावना रहती है. इसी से बचाने के लिए परंपरा अनुसार गाय को ग्रहण काल में भीतर बांध दिया जाता है.
गोवर्धन पूजा का मुहूर्त: गोवर्धन पूजा का मुहु परंपरा गोवर्धन पूजा इस साल 26 अक्टूबर को है. पूजा शुरु करने का शुभ काल-मुहूर्त: सुबह 6.29 am से 8. 45 am तक. 2 घंटे से ज्यादा की इस अवधी के दौरान पूजा अवश्य करें. गोवर्धन पूजा के दिन लोग गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत बनाते हैं. पूजा करने के अलावा लोग इस दिन 56 या 108 चीजों का भोग भी लगाते हैं. इस दिन बने इस खास भोग को भगवान कृष्ण और गोवर्धन पर्वत को अर्पित किया किया जाता है. भगवान कृष्ण की मूर्ति का अभिषेक होता है. उन्हे दूध-दही से स्नान करा नए कपड़े अर्पित करने की परंपरा है. इसके बाद बारी आती है भोग लगाने की. भोग के बाद ही यह पूजा अपनी पूर्णाहुति की ओर बढ़ती है.
गोवर्धन पूजा विधि: गोवर्धन पूजा का मथुरा, वृंदावन व गोकुल के साथ साथ पूरे ब्रज क्षेत्र में खास महत्व है. इस दिन इन इलाकों में भगवान कृष्ण के साथ साथ गोवर्धन पर्वत की पूजा करने का प्राविधान है. गोवर्धन पूजा को किसान खास तौर पर करते हैं. इसके लिए घरों में खेत की शुद्ध मिट्टी अथवा गाय के गोबर से लेपकर पूरा घर-द्वार और घर का आंगन साफ करते हैं. खेतों, दरवाजों व मंदिरों में गोवर्धन पर्वत या भगवान कृष्ण की गोवर्धन पर्वतधारी आकृति बनाकर उन्हें 56 भोग का नैवेद्य चढ़ाया जाता हैं, ताकि उनको खुश करके अपने मंगल की कामना की जा सके. (Govardhan Puja Vidhi)
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