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गोंड जनजातीय नृत्य 'करमा एवं सैला' की हुई प्रस्तुति

मध्यप्रदेश शासन, संस्कृति विभाग द्वारा मध्यप्रदेश जनजातीय संग्रहालय में आयोजित बहुविध कलानुशासनों की गतिविधियों एकाग्र ‘गमक’ श्रृंखला अंतर्गत गोंड जनजातीय नृत्य ‘करमा एवं सैला’ की प्रस्तुति हुई.

Gond tribal dance 'Karama and Saila' performed
गोंड जनजातीय
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Published : Jan 15, 2021, 10:31 AM IST

Updated : Jan 15, 2021, 10:56 AM IST

भोपाल। मध्यप्रदेश शासन, संस्कृति विभाग द्वारा मध्यप्रदेश जनजातीय संग्रहालय में आयोजित बहुविध कलानुशासनों की गतिविधियों एकाग्र ‘गमक’ श्रृंखला अंतर्गत आज आदिवासी लोककला एवं बोली विकास अकादमी द्वारा रविदास गंगापारी और साथी, राजगढ़ द्वारा कबीर गायन एवं श्री पतीराम मार्को और साथी, डिंडोरी द्वारा गोंड जनजातीय नृत्य ‘करमा एवं सैला’ की प्रस्तुति हुई.

प्रस्तुति की शुरुआत रविदास गंगापारी और साथियों द्वारा कबीर गायन से हुई. जिसमें- इसका भेद बता मेरे अवदू अच्छी करनी कर ले तू, एजी रंग महल मैं अजब सहर मैं, मत कर माया को अंहकार मत कर काया को घमंड, कासे आया कहा जावगो खबर करो अपने तन की, ज्ञान की जाड़ी या दाइ मेरे सत गुरु ने एवं जारा हाल के गाडी हाको मेरे राम गाडी वाले आदि कबीर पदों का गायन प्रस्तुत किया.

Gond tribal dance 'Karama and Saila' performed
करमा एवं सैला

गंगापारी विगत दस वर्षों से कबीर गायन करते आ रहे हैं, आपने गायन की शिक्षा अपने माता-पिता व दादाजी से प्राप्त की.वे देश के कई प्रतिष्ठित मंचों पर अपनी प्रस्तुति दे चुके हैं.

दूसरी प्रस्तुति पतीराम मार्को और साथियों द्वारा गोंड जनजातीय नृत्य ‘करमा एवं सैला’ की हुई. जिसमें बांसुरी पर खुद पतीराम मार्को, मांदल पर- भेल सिंह धुर्वे एवं विश्राम बघेल और गुदुम पर- दिनेश कुमार भार्वे थे. भोग सिंह धुर्वे, नवल सिंह मरावी, रामफल जैतवार, भगत सिंह परस्ते, प्रितम सिंह मरावी, राजेश कुमार मरावी, राजकुमारी तेकाम, दिलेश्वरी मरावी, मधु विश्वकर्मा, गीता धुर्वे एवं राधा मरावी ने नृत्य में भागीदारी की.

करमा नृत्य - ‘कर्म’ की प्रेरणा देने वाला नृत्य है, पूर्वी मध्यप्रदेश में कर्मपूजा उत्सव में करमा नृत्य किया जाता है. नृत्य में युवक-युवतियाँ दोनों भाग लेते हैं. वर्षा को छोड़कर प्रायः सभी ऋतुओं में गोंड आदिवासी करमा नृत्य करते हैं. मध्यप्रदेश में करमा नृत्य-गीत का क्षेत्र बहुत विस्तृत है. सुदूर छत्तीसगढ़ से लगाकर मंडला के गोंड और बैगा आदिवासियों तक इसका विस्तार मिलता है.

भोपाल। मध्यप्रदेश शासन, संस्कृति विभाग द्वारा मध्यप्रदेश जनजातीय संग्रहालय में आयोजित बहुविध कलानुशासनों की गतिविधियों एकाग्र ‘गमक’ श्रृंखला अंतर्गत आज आदिवासी लोककला एवं बोली विकास अकादमी द्वारा रविदास गंगापारी और साथी, राजगढ़ द्वारा कबीर गायन एवं श्री पतीराम मार्को और साथी, डिंडोरी द्वारा गोंड जनजातीय नृत्य ‘करमा एवं सैला’ की प्रस्तुति हुई.

प्रस्तुति की शुरुआत रविदास गंगापारी और साथियों द्वारा कबीर गायन से हुई. जिसमें- इसका भेद बता मेरे अवदू अच्छी करनी कर ले तू, एजी रंग महल मैं अजब सहर मैं, मत कर माया को अंहकार मत कर काया को घमंड, कासे आया कहा जावगो खबर करो अपने तन की, ज्ञान की जाड़ी या दाइ मेरे सत गुरु ने एवं जारा हाल के गाडी हाको मेरे राम गाडी वाले आदि कबीर पदों का गायन प्रस्तुत किया.

Gond tribal dance 'Karama and Saila' performed
करमा एवं सैला

गंगापारी विगत दस वर्षों से कबीर गायन करते आ रहे हैं, आपने गायन की शिक्षा अपने माता-पिता व दादाजी से प्राप्त की.वे देश के कई प्रतिष्ठित मंचों पर अपनी प्रस्तुति दे चुके हैं.

दूसरी प्रस्तुति पतीराम मार्को और साथियों द्वारा गोंड जनजातीय नृत्य ‘करमा एवं सैला’ की हुई. जिसमें बांसुरी पर खुद पतीराम मार्को, मांदल पर- भेल सिंह धुर्वे एवं विश्राम बघेल और गुदुम पर- दिनेश कुमार भार्वे थे. भोग सिंह धुर्वे, नवल सिंह मरावी, रामफल जैतवार, भगत सिंह परस्ते, प्रितम सिंह मरावी, राजेश कुमार मरावी, राजकुमारी तेकाम, दिलेश्वरी मरावी, मधु विश्वकर्मा, गीता धुर्वे एवं राधा मरावी ने नृत्य में भागीदारी की.

करमा नृत्य - ‘कर्म’ की प्रेरणा देने वाला नृत्य है, पूर्वी मध्यप्रदेश में कर्मपूजा उत्सव में करमा नृत्य किया जाता है. नृत्य में युवक-युवतियाँ दोनों भाग लेते हैं. वर्षा को छोड़कर प्रायः सभी ऋतुओं में गोंड आदिवासी करमा नृत्य करते हैं. मध्यप्रदेश में करमा नृत्य-गीत का क्षेत्र बहुत विस्तृत है. सुदूर छत्तीसगढ़ से लगाकर मंडला के गोंड और बैगा आदिवासियों तक इसका विस्तार मिलता है.

Last Updated : Jan 15, 2021, 10:56 AM IST
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