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भोपाल: देखिए मालवा के श्रद्धा पर्व ‘संजा’ की प्रस्तुति की झलक - Sanja Shraddha festival of Malwa

आज संग्रहालय के यूट्यूब चैनल पर मालवा के श्रद्धा पर्व 'संजा' की प्रस्तुति का प्रसारण किया गया. जहां गीत-संगीत आदि चीजों का समावेश देखने को मिला.

Presentation of Malwa's Shraddha festival 'Sanja' on museum's YouTube channel
संग्रहालय के यूट्यूब चैनल पर हुई मालवा के श्रद्धा पर्व ‘संजा’ की प्रस्तुति
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Published : Sep 14, 2020, 4:25 AM IST

भोपाल| मध्यप्रदेश शासन संस्कृति विभाग द्वारा आयोजित पारम्परिक संगीत की श्रृंखला 'उत्तराधिकार' में आज मालवा के श्रद्धा पर्व 'संजा' की प्रस्तुति का प्रसारण संग्रहालय के यूट्यूब चैनल पर हुआ.

Inclusion of songs like Go Sanja Mai Sasariya etc. were presented
जाओ संजा माई सासरिये आदि गीतों का समावेश प्रस्तुत किया गया

कुआंरी कन्यायों ने भाद्रपद मास की पूर्णिमा से आश्विन मास की अमावस्या तक श्राद्ध पर्व के अवसर पर मनाये जाने वाले इस लोककला कर्म में लगभग सभी भित्ति अलंकरण कला के साथ-साथ गीत-संगीत आदि का सुन्दर समावेश देखने को मिलता है.

Song and music inclusion
गीत-संगीत का समावेश

इस पर्व में गीत-संगीत के साथ पहले दिन भाद्रपद मास की पूर्णिमा को पूनम का पाटला, आश्विन प्रतिपदा को पंखे, दूसरे दिन बिजौरा, तृतीया को घेवर, चतुर्थी को चौपड़, पंचमी को पांच कुंवारा-कुवांरी, सष्ठ्मी को छेबड़ी, सप्तमी को सांतिया, अष्टमी को आठ पंखड़ियों का फूल या आठ भाइयों की फौज, नवमी को डोकरा-डोकरी, दसमी को दीपक, एकादशी को केले का पेड़ या पालकी, द्वादशी को खजूर का पेड़ या मोर-मोरनी और त्रियोदशी से अमावस्या तक किलाकोट की तैयारी की जाती है.

Song and music inclusion
गीत-संगीत का समावेश

किलाकोट संजा लोककला की समग्र प्रस्तुति है, जहां प्रस्तुति में संजा का दरबार, चंपो झूली रहो म्हारे द्वार, संजा तो मांगे हरो-हरो गोबर, जाओ संजा माई सासरिये आदि गीतों का समावेश प्रस्तुत किया गया.

भोपाल| मध्यप्रदेश शासन संस्कृति विभाग द्वारा आयोजित पारम्परिक संगीत की श्रृंखला 'उत्तराधिकार' में आज मालवा के श्रद्धा पर्व 'संजा' की प्रस्तुति का प्रसारण संग्रहालय के यूट्यूब चैनल पर हुआ.

Inclusion of songs like Go Sanja Mai Sasariya etc. were presented
जाओ संजा माई सासरिये आदि गीतों का समावेश प्रस्तुत किया गया

कुआंरी कन्यायों ने भाद्रपद मास की पूर्णिमा से आश्विन मास की अमावस्या तक श्राद्ध पर्व के अवसर पर मनाये जाने वाले इस लोककला कर्म में लगभग सभी भित्ति अलंकरण कला के साथ-साथ गीत-संगीत आदि का सुन्दर समावेश देखने को मिलता है.

Song and music inclusion
गीत-संगीत का समावेश

इस पर्व में गीत-संगीत के साथ पहले दिन भाद्रपद मास की पूर्णिमा को पूनम का पाटला, आश्विन प्रतिपदा को पंखे, दूसरे दिन बिजौरा, तृतीया को घेवर, चतुर्थी को चौपड़, पंचमी को पांच कुंवारा-कुवांरी, सष्ठ्मी को छेबड़ी, सप्तमी को सांतिया, अष्टमी को आठ पंखड़ियों का फूल या आठ भाइयों की फौज, नवमी को डोकरा-डोकरी, दसमी को दीपक, एकादशी को केले का पेड़ या पालकी, द्वादशी को खजूर का पेड़ या मोर-मोरनी और त्रियोदशी से अमावस्या तक किलाकोट की तैयारी की जाती है.

Song and music inclusion
गीत-संगीत का समावेश

किलाकोट संजा लोककला की समग्र प्रस्तुति है, जहां प्रस्तुति में संजा का दरबार, चंपो झूली रहो म्हारे द्वार, संजा तो मांगे हरो-हरो गोबर, जाओ संजा माई सासरिये आदि गीतों का समावेश प्रस्तुत किया गया.

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