भोपाल। साल 1984 में राजधानी भोपाल में हुई गैस त्रासदी का असर अब भी कई भोपालवासियों पर नजर आता है. करीब 36 साल बीत जाने के बाद भी कई गैस पीड़ित आज भी स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से जूझ रहे हैं. अब कोरोना महामारी ने इसमें आग में घी डालने का काम किया है. कोविड-19 के हाई रिस्क जोन में सबसे ज्यादा गैस पीड़ित ही हैं और अब तक सैकड़ों गैस पीड़ित कोरोना संक्रमित हो चुके हैं, जिनमें से कई लोगों की मौत भी हुई है. ऐसे में गैस पीड़ित सामाजिक संगठन लगातार शासन-प्रशासन से गैस पीड़ितों के लिए कोरोना महामारी के दौर में सही इलाज के लिए मांग कर रहे हैं. इस कड़ी में संगठन ने मुआवजे की मांग भी उठाई है.
गैस पीड़ितों को मिले सही मुआवजा
संगठन की मांगों के बारे में बताते हुए गैस पीड़ित संगठन भोपाल ग्रुप फॉर इंफॉर्मेशन एंड एक्शन की सामाजिक कार्यकर्ता रचना ढिंगरा ने कहा कि आधिकारिक दस्तावेजों से बात सामने आई है कि जिले की कुल आबादी में से गैस पीड़ित आबादी में कोरोना संक्रमण से मृत्यु का दर साढ़े 6 गुना ज्यादा है. 18 अक्टूबर तक के आंकड़ों के मुताबिक जब शहर में साढ़े 400 मौतें कोविड-19 के कारण हुईं थी तो उनमें से 254 मौतें गैस पीड़ितों की हुई है. यानि कि 56 फीसदी मौतें गैस पीड़ितों की हुई है, जबकि उनकी जनसंख्या इस जिले की आबादी का 17 फीसदी है.
उन्होंने कहा कि यह आंकड़े सरकार के उस झूठ से पर्दाफाश करते हैं जो कि वह सालों से कहते आए हैं, कि गैस पीड़ितों को सिर्फ एक दिन के लिए ही चोट पहुंची थी और वह अब स्वस्थ हो गए हैं. इन आंकड़ों को देखते हुए हम केंद्र सरकार और राज्य से मांग करते हैं कि सरकार सुप्रीम कोर्ट में लंबित सुधार याचिका में गैस पीड़ितों को पहुंची क्षति के सही आंकड़े पेश करें और यूनियन कार्बाइड से सही मुआवजा लें.
1984 गैस त्रासदी का असर अब भी
2-3 दिसंबर 1984 की रात हुई भोपाल गैस त्रासदी का असर अब भी कई लोगों पर है. गैस पीड़ित अब भी फेफड़ों से संबंधी, श्वसन से संबंधी और आंखों से संबंधी कई बीमारियों से जूझ रहे हैं. इनकी स्थिति नाजुक होने के कारण कोरोना वायरस ने भी गैस पीड़ितों को बहुत ज्यादा प्रभावित किया है.