भोपाल। पूर्व डकैत मलखान सिंह के कांग्रेस की सदस्यता ले लेने के बाद क्या बदलेगा? क्या ग्वालियर चंबल में कांग्रेस की जमीन मजबूत हो जाएगी? वैसे राजनीति में घाट-घाट का पानी पी चुके मलखान बीते चुनाव में बीजेपी का झंडा उठाए थे, अब कमलनाथ की सरकार बनवा रहे हैं. तो इसे एक पूर्व डकैत का अवसरवाद कहें या उनका समय रहते हो गया राजनीतिक पुर्नवास माना जाए. राजनीति में पूर्व डकैतों की ताकत क्या है, भविष्य कितना, एमपी में ही कितने डकैत राजनीति में आए और किस मुकाम तक पहुंचे. अपने दौर के किस्से कहानियों के अलावा इन डकैतों के पास जनता से जुड़ने के कौन से नए सिरे बचे हैं, हांलाकि पूर्व डकैत मलखान सिंह ने कहा है कि वे चुनाव नही लड़ेंगे, वे राजनीति में अन्याय के खिलाफ लड़ाई लड़ने आ रहे हैं. ईटीवी भारत से बातचीत में मलखान सिंह ने ये राजनीतिक भविष्यवाणी भी की कि "ग्वालियर चंबल की 34 सीटों में से बीजेपी को दो सीट मिलना भी मुश्किल है."
मलखान सिंह की सदस्यता सियासी स्टंट के सिवा क्या: एक दौर में चंबल जिनके नाम से थर्राया करता था, पूर्व डकैत मलखान सिंह ने अब कांग्रेस की सदस्यता ले ली. ये खबर ये सदस्यता चुनाव के पहले एक सियासी स्टंट से ज्यादा क्या है. कहा जाता है कि डकैत वचन के पक्के होते हैं, लेकिन राजनीति में तो पूर्व डकैत मलखान सिंह ने चौंकाया ही क्योंकि इसके पहले वो बीजेपी की गलियां छान कर आएं हैं. टिकट की आस निराश भायीं, तो बीजेपी छोड़कर आए हैं और इसके पहले समाजवादी पार्टी के साथ भी किस्मत आजमा चुके हैं, बाकी पूर्व डकैत के तेवर सियासी ही दिखाई दे रहे हैं. दम दिखाते हुए मलखान सिंह ने कहा है कि "2023 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी का सफाया करेंगे, मध्यप्रदेश से और कमलनाथ की सरकार बनवाएंगे."
बीहड़ में डर का दूसरा नाम था मलखान: मलखान पर 90 से अधिक मामले दर्ज रहे, एमपी के पूर्व सीएम अर्जुन सिंह ने मलखान सिंह का आत्मसमर्पण करवाया था. डकैत इस नाम से नाराज हो जाने वाले मलखान सिंह ने ईटीवी भारत से बातचीत में कहा कि "मैं चुनाव लड़ने के मकसद से कांग्रेस में नहीं आया, ग्वालियर चंबल की 34 सीटों पर काग्रेस का प्रचार करूंगा. बहन बेटियों पर बढ़े अत्याचार के खिलाफ लडूंगा." हांलाकि सवाल ये भी है कि अब तक चंबल के बीहड़ से निकले जिन पूर्व डकैतों ने राजनीति का रुख किया उनका क्या हुआ.
मलखान सिंह से फूलन देवी तक.. सियासत में डकैत: प्रेम सिंह उतना चर्चित नाम नहीं और इनको लेकर कहा जाता है कि वे मलखान सिंह मोहर सिंह माधौ सिंह की तरह अपनी गैंग लेकर भी नहीं चलते थे, लेकिन डकैती के कुछ मामलों में आरोप रहा प्रेम सिंह पर. प्रेम सिंह उनमें से है, जो चुनाव भी लड़े और जीते भी. 1998 में कांग्रेस ने इन्हें चुनाव लाया और ये चुनाव जीत गए, फूलन देवी तो खैर चंबल का सबसे चर्चित नाम रही हैं. फूलन ने राजनीति की पाठशाला एमपी में पढ़ी गई, लेकिन राजनीति की यूपी में. यूपी के मिर्जापुर से उन्होने चुनाव लड़ा और जीती भीं, समाजवादी पार्टी फूलन देवी की खैरख्वाह बनी.
विंध्य में पॉलीटिकल एनफ्ल्युअसर रहे पूर्व डकैत: चंबल से अलग विंध्य की बात करें तो यहां डकैतों की पॉलीटिकल इन्फ्लुएंसर की भूमिका भी रही, यूपी से सटे एमपी के इलाकों में अपनी धमक रखने वाला ठोकिया जिसे अम्बिका पटेल के नाम से भी जाना जाता था. विंध्य इलाके की 10 से ज्यादा विधानसभा सीटों पर ठोकिया के इशारे पर वोट डला करते थे, आदिवासी समाज में पकड़ होने की वजह से ठोकिया जहां चाहे वोट डलवाने की ताकत रखता था. हांलाकि सीधे तौर पर वो खुद राजनीति में नहीं आया, इसी तरह विंध्य इलाके में शिवकुमार पटेल के बारे में ये कहा जाता है कि विंध्य की सभी प्रभावशाली विधानभा सीटों पर शिवकुमार पटेल यानि ददुआ का अघोषित प्रभाव रहता था. छवि भी ऐसी थी कि पूजा जाता था ददुआ, हालाकि चर्चा में 2007 के एनकाउंटर के बाद ही आया.
सियासत में डाकू सेंसेशन ही रहेंगे: विंध्य की राजनीति को बहुत करीब से जानने वाले वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक जयराम शुक्ला कहते हैं "ये सत्य है कि पूर्व डकैतों की अब भी सामाजिक एक्सेप्टेबिलिटी नहीं हुई है, यही वजह है कि सियासत में ये सेंसेशन से ज्यादा कुछ नहीं होंगे. यूं भी जब ये पूरी धाक के साथ राजनीति में आए थे, तो इनकी भूमिका इन्फ्लुएंसर से ज्यादा नहीं थी. ये केवल जातियों के वोट जुटाने के लिए के काम में आते रहे हैं. पूर्व डकैतों का राजनीति में आना राजनीति की शुचिता के लिहाज से सही है." इस पर जयराम रमेश कहते हैं "सवाल ये है कि अपराध कैटेगराइज्ड कर दिए गए, राजनीति के अपराधी और समाज के अपराधी अलग अलग है. मैं ये मानता हूं कि अपराध अपराध होता है, ये तो फिर अपराध की दुनिया छोड़कर आए हैं."