भोपाल। दिग्विजय सिंह मध्यप्रदेश ही नहीं देश की राजनीति का एक ऐसा चरित्र है, जिनकी कितनी भी आलोचना की जाए, लेकिन उनको नकारा नहीं जा सकता है. मध्य प्रदेश की राजनीति में उन्हें बीजेपी बंटाधार कह कर संबोधित करती है, लेकिन सबसे ज्यादा उन्हीं से खौफ खाती है. कांग्रेस सार्वजनिक मंचों पर दिग्विजय सिंह को खड़ा करने से डरती है, लेकिन दिग्विजय सिंह के सियासी अनुभव का लाभ लेने में कोई कमी नहीं बरतती है. राजनीति और कांग्रेस संगठन की दिग्विजय सिंह को अगर आवश्यक बुराई कहा जाए, तो यह अतिशयोक्ति नहीं होगी. मध्य प्रदेश में हाल ही में हुए उपचुनाव में दिग्विजय सिंह एक तरह से कांग्रेस के मुख्य रणनीतिकार बनकर उभरे हैं. भले ही कांग्रेस को आशा अनुरूप सफलता नहीं मिली है, लेकिन जितने भी लोगों को जीत हासिल हुई है. वह कहीं न कहीं से दिग्विजय सिंह के करीबी हैं या फिर दिग्विजय सिंह ने उनको कांग्रेस से जोड़ा है. ऐसी स्थिति में दिग्विजय सिंह एक बार फिर ताकतवर बनकर उभरे हैं, और जानकार कहते हैं कि दिग्विजय सिंह एक ऐसी शख्सियत हैं, जो कांग्रेस की दवा भी हैं और दर्द भी हैं.
विधानसभा 2018 की तरह उपचुनाव में भी निभाई पर्दे के पीछे भूमिका जहां तक दिग्विजय सिंह की भूमिका की बात करें,तो कांग्रेस में दिग्विजय सिंह ने हमेशा अहम रणनीतिकार होते हैं, लेकिन मध्यप्रदेश के मामले में उनकी भूमिका सार्वजनिक कम और पर्दे के पीछे ज्यादा होती है. 2018 विधानसभा चुनाव में भी उन्हें समन्वय समिति का अध्यक्ष बनाया गया था और चुनाव के पहले उन्होंने मध्य प्रदेश के सभी जिलों का दौरा करके सामूहिक भोज करके कांग्रेस को जिताने की कसम हर जिले के कांग्रेस कार्यकर्ताओं को दिलाई थी. टिकट वितरण और नामांकन पत्र दाखिल होने के समय दिग्विजय सिंह ने बागियों को रोकने और निर्दलीय फार्म भरने वाले कांग्रेसी नेताओं को नामांकन वापस लेने में अहम भूमिका निभाई थी. इसी तरह उपचुनाव में भी दिग्विजय सिंह ने कमलनाथ को प्रत्याशी चयन से लेकर विधानसभा क्षेत्रों में जातीय समीकरण साधने, स्थानीय नेताओं के हिसाब से उन्हें काम पर लगाने, भितरघात कम करने जैसी जिम्मेदारियां सौंपी थी. उन्होंने इस जिम्मेदारियों को बखूबी निभाया.
सिंधिया के कारण ग्वालियर चंबल में आई रिक्तता को भरने का काम किया ज्योतिरादित्य सिंधिया की बगावत के चलते कहा जा रहा था कि ग्वालियर चंबल में कांग्रेस खत्म हो गई है. ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीजेपी में जाने से कई कांग्रेस नेताओं ने भी बीजेपी की सदस्यता ले ली थी. बीजेपी तो यह तंज करने लगी थी, कि कांग्रेस को प्रत्याशी भी नहीं मिलेंगे. इन परिस्थितियों से निपटने की जिम्मेदारी भी कमलनाथ ने दिग्विजय सिंह को सौंपी थी. दिग्विजय सिंह ग्वालियर चंबल इलाके के गुना के राघोगढ़ से आते हैं. सिंधिया परिवार के अलावा ग्वालियर चंबल इलाके में अगर किसी कांग्रेसी नेता की पकड़ है, तो वह दिग्विजय सिंह ही हैं. जब यह कहा जाने लगा कि ग्वालियर चंबल में तो कांग्रेस खत्म हो गई है. तब दिग्विजय सिंह ने इस चुनौती को स्वीकार किया और बीजेपी के कई प्रत्याशियों के सामने प्रत्याशी चयन में उन्होंने अहम भूमिका निभाई.
सिंधिया के प्रत्याशियों के खिलाफ मजबूत प्रत्याशियों को तलाश करने में निभाई अहम भूमिकासिंधिया खेमे के जिन कांग्रेसी विधायकों ने बगावत की थी।ऐसी स्थिति में उन्हीं के खिलाफ चुनाव लड़ने के लिए एक कांग्रेस के पास चेहरों की कमी आ गई थी. दिग्विजय सिंह ने बखूबी भाजपा और बसपा के ऐसे चेहरों को तोड़ने का काम किया, जो उपचुनाव में जीत हासिल करके सामने आए हैं. ग्वालियर पूर्व से जीत हासिल करने वाले सतीश सिकरवार को कांग्रेस में लाने में अहम भूमिका दिग्विजय सिंह की थी. करैरा विधानसभा सीट से प्रागीलाल जाटव को बसपा से कांग्रेस में लाने डबरा में इमरती देवी के सामने बीजेपी से सुरेश राजे को तोड़कर लाने का काम दिग्विजय सिंह ने ही किया था.
प्रचार प्रसार में रहे पीछे, लेकिन वॉर रूम रणनीति के जरिए रखी 28 सीटों पर नजर दिग्विजय सिंह विधानसभा चुनाव 2018 की तरह प्रचार प्रसार से उपचुनाव में भी दूर रहे. तीन नवंबर को मतदान था, लेकिन दिग्विजय सिंह ने 28 अक्टूबर के बाद कुछ इलाकों में दौरे किए. आगर और ब्यावरा सीट जिताने की जिम्मेदारी उन्होंने खुद ली थी, और इन इलाकों में उन्होंने 2-2 दिन का वक्त बिताया. इसके अलावा वह अशोकनगर, मुंगावली के भी दौरे पर गए. लेकिन कमलनाथ जब दौरों पर रहते थे. तब दिग्विजय सिंह भोपाल में रहकर तमाम विधानसभा सीटों पर संपर्क और वहां के स्थानीय समीकरणों के समाधान में लगे रहते थे.
सुमावली सीट से एदल सिंह कंसाना को हराने की ली चुनौतीकांग्रेस से बगावत करने वाले एदल सिंह कंसाना को हराने के लिए तो दिग्विजय सिंह ने जैसे संकल्प ले लिया था. एंदल सिंह कंसाना के सामने मजबूत प्रत्याशी की तलाश में अजब सिंह कुशवाह को दिग्विजय सिंह ने ही तलाशा था. मतदान के दिन भी दिग्विजय सिंह प्रदेश कांग्रेस कार्यालय में बैठकर सुमावली और मुरैना पर ही नजर बनाए हुए थे. आखिरकार एंदल सिंह कंसाना को हराने में दिग्विजय सिंह कामयाब हुए और अजब सिंह कुशवाह की जीत हुई.
कांग्रेस के विजयी प्रत्याशियों के दिग्विजय सिंह से संबंध ग्वालियर पूर्व से बीजेपी के मुन्नालाल गोयल को हराने वाले सतीश सिकरवार को बीजेपी से कांग्रेस में लाने में अहम भूमिका ग्वालियर के अशोक सिंह ने निभाई थी. सतीश सिकरवार दिग्विजय सिंह के नजदीकी है, और ग्वालियर चंबल इलाके के बड़े ठाकुर नेता हैं. दिग्विजय सिंह की रणनीति के चलते कांग्रेस मुन्नालाल गोयल को हराने में सफल रही. आगर सीट से विपिन वानखेड़े और ब्यावरा सीट से रामचंद्र दांगी को जिताने के लिए दिग्विजय सिंह ने काफी मेहनत की. इन दोनों सीटों की जिम्मेदारी दिग्विजय सिंह के बेटे जयवर्धन सिंह को दी गई थी, लेकिन चुनाव के ऐन वक्त पर जयवर्धन सिंह को कोरोना संक्रमित हो गए. बाद में इन दोनों सीटों की जिम्मेदारी दिग्विजय सिंह ने अपने ऊपर ली और आगर और ब्यावरा में दो 2 दिन बिताए. इमरती देवी के खिलाफ सुरेश राजे को बीजेपी से कांग्रेस में लाने और चुनाव जिताने में अहम भूमिका दिग्विजय सिंह ने ही निभाई. दिग्विजय सिंह बेहतर तरीके से जानते थे, कि डबरा सीट कांग्रेस की सीटें सिर्फ प्रत्याशी ऐसा देना होगा, जो इमरती देवी को चुनौती दे सकें. बीजेपी ने भी 2018 में सुरेश राजे को इमरती देवी के खिलाफ उतारा था. लेकिन सीट कांग्रेसी मानसिकता की होने के कारण सुरेश राजे नहीं जीत पाए थे और बड़ी हार का सामना करना पड़ा था. लेकिन जब उन्होंने कांग्रेस का दामन थाम लिया,तो सीट जीतने में उन्हें आसानी रही.करेरा सीट में बसपा से प्रागी लाल जाटव को लाकर दिग्विजय सिंह ने टिकट दिलाने में अहम भूमिका निभाई और प्रागी लाल जाटव चुनाव जीतने में कामयाब हुए.मुरैना सीट से चुनाव जीतने वाले राकेश मावई ने सिंधिया की बगावत पर कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया था और सिंधिया के साथ ही बीजेपी में जाने वाले थे, लेकिन दिग्विजय सिंह उन्हें मनाने में कामयाब रहे और उन्होंने इस्तीफा देने के बाद भी अपना इस्तीफा वापस ले लिया. आखिरकार राकेश मवई मुरैना सीट से जीतने में कामयाब रहे.ग्वालियर चंबल के बड़े एससी नेता फूल सिंह बरैया के बहुजन संघर्ष दल को 2018 विधानसभा के चुनाव के समय ही दिग्विजय सिंह ने कांग्रेस में विलय करा लिया था. सिंधिया की बगावत के बाद फूल सिंह बरैया को राज्यसभा का टिकट दिया. उपचुनाव में भांडेर से बरैया को टिकट दिया गया था, बरैया महज 161 वोटों से चुनाव हार गए. दिमनी से जीतने वाले रविंद्र सिंह तोमर भी दिग्विजय सिंह के करीबी बताए जाते हैं.
कमलनाथ के नेतृत्व में कांग्रेस ने लड़ा था उपचुनाव मध्यप्रदेश कांग्रेस के प्रवक्ता अजय सिंह यादव का कहना है कि मध्य प्रदेश के विधानसभा उपचुनाव में कांग्रेस कमलनाथ के नेतृत्व में चुनाव मैदान में उतरी थी. सभी 28 उम्मीदवारों ने कमलनाथ के नाम पर वोट मांगा था. उम्मीदवार चयन में कमलनाथ का सबसे ज्यादा हस्तक्षेप रहा है. इसलिए यह मानना कि चुनाव की जीत किसी अन्य नेता या अन्य गुट की है, यह सही नहीं माना जा सकता है. सभी ने कमलनाथ के नेतृत्व में अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन किया और दिग्विजय सिंह को भी जो जिम्मेदारी कांग्रेस पार्टी और कमलनाथ ने सौंपी, उसका उन्होंने निर्वहन किया. कांग्रेस पार्टी ने उपचुनाव में ग्वालियर संभाग में सिंधिया की रिक्तता को भरा है. सात विधानसभा क्षेत्रों में हमारे उम्मीदवार जीते हैं. जहां नहीं जीते हैं, वहां बेहतर प्रदर्शन किया है, यह कमलनाथ और कांग्रेस की सफलता है. कांग्रेस का कार्यकर्ता निराश नहीं हुआ है. तीन साल बाद मध्य प्रदेश में फिर कमलनाथ के नेतृत्व में कांग्रेस की वापसी होगी.
वरिष्ठ पत्रकार की राय वरिष्ठ पत्रकार देवदत्त दुबे का कहना है कि दिग्विजय सिंह कांग्रेस की दवा भी है और दर्द भी है. क्योंकि दिग्विजय सिंह एकमात्र ऐसे नेता हैं, जिनकी जमीनी पकड़ है. गांव और ब्लॉक स्तर तक के कार्यकर्ताओं को पहचानते हैं. क्योंकि प्रदेश अध्यक्ष रहे,10 साल मुख्यमंत्री रहे. इसके पहले मंत्री रहे, तो लगातार सक्रिय रहे. काफी मेहनती नेता है, जो भी जीतेगा, तो कहीं ना कहीं से उनका परिचित निकलेगा. कमलनाथ 2018 के पहले मुख्यमंत्री बनने पर एक तरह से मध्यप्रदेश आए थे. उसी समय उनका परिचय बढ़ा. अन्यथा भोपाल, इंदौर और महाकौशल तक के नेताओं तक ही सीमित थे.
सिंधिया का वर्चस्व ग्वालियर चंबल इलाके में था, जो अब बीजेपी में आ गए हैं. दिग्विजय सिंह की सक्रियता चंबल इलाके में ज्यादा इसलिए रही है. क्योंकि राजा-महाराजा की कटुता किसी से छुपी नहीं है. इत्तेफाक से वहां कांग्रेस को 7 सीटें मिल गई, तो वह दिग्विजय सिंह की मेहनत के खाते में जाएंगी. ज्यादा मेहनत करेगा, जिसका ज्यादा परिचय होगा. जब जीत का यश मिलता है, तो हार का अपयश भी मिलता है. दिग्विजय सिंह के खातों में दोनों हैं. बीजेपी के निशाने पर ज्यादातर दिग्विजय सिंह हैं. क्योंकि वह समझते हैं कि यदि कोई मैदानी पकड़ रखता है, यदि कोई मुद्दों पर पकड़ रखता है, तो वह दिग्विजय सिंह ही हैं. दिग्विजय सिंह ने ही तमाम प्रकार के घोटाले उजागर कर भाजपा को घेरा है. तो दिग्विजय सिंह को कोई पसंद करें या न करें, लेकिन मध्य प्रदेश की राजनीति में नकार नहीं सकता है.