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किसकी सरकार? किसान और किसानी अहम मुद्दा, हो रही जमकर सियासत

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Published : Oct 18, 2020, 3:43 PM IST

मध्यप्रदेश उपचुनाव में किसान और किसानी सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा माना जा रहा है. जिसे लेकर एमपी की दोनों हीं प्रमुख पार्टियां एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप कर रही हैं. एक दूसरे पर किसानों को नजरअंदाज करने के आरोपों की इस सियासत को लेकर पढ़ें पूरी खबर...

Allegations on by-elections continue
उपचुनाव को लेकर आरोप-प्रत्यारोप जारी

भोपाल। 3 नवबंर को मध्यप्रदेश में 28 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होना है. इस चुनाव में कई मुद्दे अहम भूमिका निभा रहे हैं. विधानसभा चुनाव 2018 की तरह किसान और किसानी सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा माना जा रहा है. किसान कर्ज माफी, केंद्र सरकार द्वारा लाए गए किसान बिल के अलावा प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना, किसान सम्मान निधि और हाल ही में अल्पवर्षा के कारण बर्बाद हुई फसलों के मुआवजे को लेकर प्रदेश का किसान परेशान है. ये सभी मुद्दे उपचुनाव को प्रभावित करते नजर आ रहे हैं.

उपचुनाव को लेकर आरोप-प्रत्यारोप जारी

मौजूदा हालात को देखकर यही लग रहा है कि किसान की नाराजगी का खामियाजा दोनों ही पार्टियों को उठाना पड़ सकता है. नुकसान की संभावनाओं को देखते हुए बीजेपी किसानों को फसल बीमा और किसान सम्मान निधि जैसी राशियों के जरिए खुश करने की कोशिश कर रही है. लेकिन कर्ज माफी और किसान बिल इन पर भारी पड़ते नजर आ रहे हैं.

किसान कर्ज माफी

शिवराज सरकार लगातार कमनाथ सरकार के अधूरे कर्ज माफी को मुद्दा बनाती रही है. इसे किसानों के साथ धोखा का आरोप लगाया, लेकिन हाल ही में विधानसभा के एक दिवसीय सत्र में कांग्रेस के विधायक जयवर्धन सिंह ने प्रश्न कर शिवराज सरकार से जवाब मांगा. जिसमें शिवराज सरकार को कबूल करना पड़ा कि प्रदेश में लगभग 27 लाख किसानों की 11 हजार 500 करोड़ की कर्ज माफी हुई.

आंकड़ों पर एक नजर

  • कमलनाथ सरकार ने 26 लाख 95 हजार किसानों का 11,646 करोड़ का कर्ज माफ किया.
  • पहले चरण में 20 लाख 23 हजार किसानों का 7,108 करोड़ का कर्ज माफ हुआ.
  • दूसरे चरण में 6 लाख 72 हजार किसानों का 4,538 करोड़ का कर्ज माफ हुआ.
  • अंतिम चरण में 5 लाख 90 हजार किसानों का 7,492 करोड़ का कर्ज एक जून 2020 से माफ होना था, लेकिन कमलनाथ सरकार गिर गई और शिवराज सरकार का कहना है कि वह कमलनाथ सरकार की कर्ज माफी योजना को आगे नहीं बढ़ाएगी.

प्रधानमंत्री फसल बीमा

प्रधानमंत्री फसल बीमा भी उपचुनाव में एक बड़ा मुद्दा बनता नजर आ रहा है. शिवराज सरकार ने सितंबर माह में 20 लाख किसानों के खाते में फसल बीमा की 4,688 करोड़ रुपए की राशि डाली. इसको लेकर बीजेपी का आरोप है कि ये 2019 की फसल बीमा की राशि है. कमलनाथ सरकार ने मध्य प्रदेश सरकार द्वारा भरा जाने वाला प्रीमियम नहीं भरा था. इसलिए किसानों को फसल बीमा का लाभ नहीं मिल रहा था, लेकिन शिवराज सरकार के आने के बाद ये राशि जमा की गई. अब उस किसानों को फसल बीमा का फायदा मिल रहा है.

प्रीमियम मामले में कांग्रेस का कहना है कि साल 2018-19 के लिए फसल बीमा का राज्य सरकार द्वारा भरा जाने वाला 509 करोड़ का प्रीमियम जमा किया गया. लेकिन केंद्र सरकार की तरफ से राशि जारी नहीं की जा रही थी. मध्यप्रदेश में शिवराज सरकार बनते ही केंद्र ने ये राशि जारी कर दी, लेकिन फसल बीमा को लेकर किसान खुश नजर नहीं आ रहे हैं. क्योंकि कई इलाकों में किसानों के खाते में 6 रुपए और 10 रुपए जैसी मामूली राशि पहुंची है.

केंद्र सरकार ने किसानों के लिए बनाए कानून

केंद्र सरकार ने कृषि क्षेत्र में सुधार के लिए तीन कानून बनाए हैं. जिनमें आवश्यक वस्तु संशोधन विधेयक, कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) विधेयक 2020, कृषक (सशक्तिकरण व संरक्षण) कीमत आश्वासन, कृषि सेवा करार विधेयक 2020 पारित हो चुके हैं. इन कानूनों को केंद्र की मोदी सरकार और बीजेपी जहां कृषि क्षेत्र में क्रांतिकारी सुधार बता रही है, तो वहीं दूसरी तरफ किसान संगठन और विपक्ष विरोध कर रहे हैं. किसान संगठनों और विपक्ष का कहना है कि इन विधेयकों से समर्थन मूल्य प्रभावित नहीं होना चाहिए. वहीं आरोप है कि इससे किसान की फसल का सही दाम नहीं मिलेगा और किसान अपने ही खेत में मजदूर बन जाएंगे.

ये भी पढ़े- कांग्रेस के 52 वचन पर सीएम शिवराज का तंज: वचन तो पूरा करना नहीं, सिर्फ लिखना

कांग्रेस ने बीजेपी पर लगाए ये आरोप

मध्यप्रदेश कांग्रेस के मीडिया विभाग के उपाध्यक्ष भूपेंद्र गुप्ता का कहना है कि मध्यप्रदेश के उपचुनाव में किसानों से जुड़े मुद्दों का व्यापक असर है. भूपेंद्र गुप्ता ने कहा कि मध्यप्रदेश में 90 लाख किसान परिवार हैं, दो से तीन करोड़ की आबादी को त्रासदी से गुजारा जा रहा है, तो उसकी लड़ाई लड़ने का समय है. जिन मुद्दों को कांग्रेस उठा रही है, उससे भाजपा बेनकाब हो रही है.

बीजेपी ने कांग्रेस पर साधा निशाना

बीजेपी प्रवक्ता राहुल कोठारी का कहना है कि किसान को वोट बैंक समझने वाली कुछ पार्टियां होती हैं, लेकिन बीजेपी उनमें से एक नहीं है.

हम लोग किसानों को सम्मान और स्वाभिमान दिलाने की कोशिश कर रहे हैं. किसानों के विकास के लिए हमने काम किए हैं, हम बहुत सारी योजनाएं लेकर आए. जिस तरह से केंद्र सरकार नए विधेयक लेकर आई है उससे साफ है कि आने वाले समय में हम किसानों के स्वाभिमान और सम्मान को आगे बढ़ाएंगे. लगता है कांग्रेस गरीबों के उत्थान को चुनावी मुद्दा समझकर देश को भ्रमित करने में जुटी है. ये सब बंद होना चाहिए .मैं स्पष्ट रूप से कहना चाहूंगा कि बीजेपी वोट की राजनीति जरूर करती है, लेकिन किसी भी व्यक्ति को प्रलोभित या दिशा भ्रमित कर अपना वोट बैंक बढ़ाने की राजनीति नहीं करती - राहुल कोठारी, बीजेपी प्रवक्ता

BKU मध्यप्रदेश इकाई ने भी बीजेपी पर साधा निशाना

एमपी में जब से बीजेपी की सरकार बनी है तब से किसान मुद्दा बन गया है, लेकिन किसी किसान परिवार को लाभ नहीं मिला - अनिल यादव, अध्यक्ष-भारतीय किसान यूनियन, एमपी.

ये भी पढ़े- ईटीवी भारत का रियलिटी चेक: मां पीतांबरा शक्तिपीठ में नहीं हो रहा कोरोना नियमों का पालन

उपचुनाव को लेकर दोनों ही पार्टियां एक दूसरे पर जमकर आरोप-प्रत्यारोप लगा रही हैं. लेकिन इस राजनीति में नुकसान किस पार्टी का होगा इसका पता 10 नवंबर को होगा. इस उपचुनाव में किसान एक बड़ा मुद्दा बना हुआ है. जिसे लेकर दोनों ही पार्टियां एक दूसरे पर बढ़त बनाने के लिए दमखम लगा रही हैं.

भोपाल। 3 नवबंर को मध्यप्रदेश में 28 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होना है. इस चुनाव में कई मुद्दे अहम भूमिका निभा रहे हैं. विधानसभा चुनाव 2018 की तरह किसान और किसानी सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा माना जा रहा है. किसान कर्ज माफी, केंद्र सरकार द्वारा लाए गए किसान बिल के अलावा प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना, किसान सम्मान निधि और हाल ही में अल्पवर्षा के कारण बर्बाद हुई फसलों के मुआवजे को लेकर प्रदेश का किसान परेशान है. ये सभी मुद्दे उपचुनाव को प्रभावित करते नजर आ रहे हैं.

उपचुनाव को लेकर आरोप-प्रत्यारोप जारी

मौजूदा हालात को देखकर यही लग रहा है कि किसान की नाराजगी का खामियाजा दोनों ही पार्टियों को उठाना पड़ सकता है. नुकसान की संभावनाओं को देखते हुए बीजेपी किसानों को फसल बीमा और किसान सम्मान निधि जैसी राशियों के जरिए खुश करने की कोशिश कर रही है. लेकिन कर्ज माफी और किसान बिल इन पर भारी पड़ते नजर आ रहे हैं.

किसान कर्ज माफी

शिवराज सरकार लगातार कमनाथ सरकार के अधूरे कर्ज माफी को मुद्दा बनाती रही है. इसे किसानों के साथ धोखा का आरोप लगाया, लेकिन हाल ही में विधानसभा के एक दिवसीय सत्र में कांग्रेस के विधायक जयवर्धन सिंह ने प्रश्न कर शिवराज सरकार से जवाब मांगा. जिसमें शिवराज सरकार को कबूल करना पड़ा कि प्रदेश में लगभग 27 लाख किसानों की 11 हजार 500 करोड़ की कर्ज माफी हुई.

आंकड़ों पर एक नजर

  • कमलनाथ सरकार ने 26 लाख 95 हजार किसानों का 11,646 करोड़ का कर्ज माफ किया.
  • पहले चरण में 20 लाख 23 हजार किसानों का 7,108 करोड़ का कर्ज माफ हुआ.
  • दूसरे चरण में 6 लाख 72 हजार किसानों का 4,538 करोड़ का कर्ज माफ हुआ.
  • अंतिम चरण में 5 लाख 90 हजार किसानों का 7,492 करोड़ का कर्ज एक जून 2020 से माफ होना था, लेकिन कमलनाथ सरकार गिर गई और शिवराज सरकार का कहना है कि वह कमलनाथ सरकार की कर्ज माफी योजना को आगे नहीं बढ़ाएगी.

प्रधानमंत्री फसल बीमा

प्रधानमंत्री फसल बीमा भी उपचुनाव में एक बड़ा मुद्दा बनता नजर आ रहा है. शिवराज सरकार ने सितंबर माह में 20 लाख किसानों के खाते में फसल बीमा की 4,688 करोड़ रुपए की राशि डाली. इसको लेकर बीजेपी का आरोप है कि ये 2019 की फसल बीमा की राशि है. कमलनाथ सरकार ने मध्य प्रदेश सरकार द्वारा भरा जाने वाला प्रीमियम नहीं भरा था. इसलिए किसानों को फसल बीमा का लाभ नहीं मिल रहा था, लेकिन शिवराज सरकार के आने के बाद ये राशि जमा की गई. अब उस किसानों को फसल बीमा का फायदा मिल रहा है.

प्रीमियम मामले में कांग्रेस का कहना है कि साल 2018-19 के लिए फसल बीमा का राज्य सरकार द्वारा भरा जाने वाला 509 करोड़ का प्रीमियम जमा किया गया. लेकिन केंद्र सरकार की तरफ से राशि जारी नहीं की जा रही थी. मध्यप्रदेश में शिवराज सरकार बनते ही केंद्र ने ये राशि जारी कर दी, लेकिन फसल बीमा को लेकर किसान खुश नजर नहीं आ रहे हैं. क्योंकि कई इलाकों में किसानों के खाते में 6 रुपए और 10 रुपए जैसी मामूली राशि पहुंची है.

केंद्र सरकार ने किसानों के लिए बनाए कानून

केंद्र सरकार ने कृषि क्षेत्र में सुधार के लिए तीन कानून बनाए हैं. जिनमें आवश्यक वस्तु संशोधन विधेयक, कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) विधेयक 2020, कृषक (सशक्तिकरण व संरक्षण) कीमत आश्वासन, कृषि सेवा करार विधेयक 2020 पारित हो चुके हैं. इन कानूनों को केंद्र की मोदी सरकार और बीजेपी जहां कृषि क्षेत्र में क्रांतिकारी सुधार बता रही है, तो वहीं दूसरी तरफ किसान संगठन और विपक्ष विरोध कर रहे हैं. किसान संगठनों और विपक्ष का कहना है कि इन विधेयकों से समर्थन मूल्य प्रभावित नहीं होना चाहिए. वहीं आरोप है कि इससे किसान की फसल का सही दाम नहीं मिलेगा और किसान अपने ही खेत में मजदूर बन जाएंगे.

ये भी पढ़े- कांग्रेस के 52 वचन पर सीएम शिवराज का तंज: वचन तो पूरा करना नहीं, सिर्फ लिखना

कांग्रेस ने बीजेपी पर लगाए ये आरोप

मध्यप्रदेश कांग्रेस के मीडिया विभाग के उपाध्यक्ष भूपेंद्र गुप्ता का कहना है कि मध्यप्रदेश के उपचुनाव में किसानों से जुड़े मुद्दों का व्यापक असर है. भूपेंद्र गुप्ता ने कहा कि मध्यप्रदेश में 90 लाख किसान परिवार हैं, दो से तीन करोड़ की आबादी को त्रासदी से गुजारा जा रहा है, तो उसकी लड़ाई लड़ने का समय है. जिन मुद्दों को कांग्रेस उठा रही है, उससे भाजपा बेनकाब हो रही है.

बीजेपी ने कांग्रेस पर साधा निशाना

बीजेपी प्रवक्ता राहुल कोठारी का कहना है कि किसान को वोट बैंक समझने वाली कुछ पार्टियां होती हैं, लेकिन बीजेपी उनमें से एक नहीं है.

हम लोग किसानों को सम्मान और स्वाभिमान दिलाने की कोशिश कर रहे हैं. किसानों के विकास के लिए हमने काम किए हैं, हम बहुत सारी योजनाएं लेकर आए. जिस तरह से केंद्र सरकार नए विधेयक लेकर आई है उससे साफ है कि आने वाले समय में हम किसानों के स्वाभिमान और सम्मान को आगे बढ़ाएंगे. लगता है कांग्रेस गरीबों के उत्थान को चुनावी मुद्दा समझकर देश को भ्रमित करने में जुटी है. ये सब बंद होना चाहिए .मैं स्पष्ट रूप से कहना चाहूंगा कि बीजेपी वोट की राजनीति जरूर करती है, लेकिन किसी भी व्यक्ति को प्रलोभित या दिशा भ्रमित कर अपना वोट बैंक बढ़ाने की राजनीति नहीं करती - राहुल कोठारी, बीजेपी प्रवक्ता

BKU मध्यप्रदेश इकाई ने भी बीजेपी पर साधा निशाना

एमपी में जब से बीजेपी की सरकार बनी है तब से किसान मुद्दा बन गया है, लेकिन किसी किसान परिवार को लाभ नहीं मिला - अनिल यादव, अध्यक्ष-भारतीय किसान यूनियन, एमपी.

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उपचुनाव को लेकर दोनों ही पार्टियां एक दूसरे पर जमकर आरोप-प्रत्यारोप लगा रही हैं. लेकिन इस राजनीति में नुकसान किस पार्टी का होगा इसका पता 10 नवंबर को होगा. इस उपचुनाव में किसान एक बड़ा मुद्दा बना हुआ है. जिसे लेकर दोनों ही पार्टियां एक दूसरे पर बढ़त बनाने के लिए दमखम लगा रही हैं.

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