भोपाल। सोनचिरैया के संरक्षण के लिए शिवपुरी से करीबन 40 किलोमीटर दूर कैररा की 202.21 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को 1999 में अभ्याण्य घोषित किया गया था. सोनचिरैया के वंश को बढ़ाने के लिए सरकार ने एक अंडे के लिए 5 हजार रुपए तक देने की योजना बनाई, लेकिन इंसानी दखल के चलते सोनचिरैया पिछली 12 सालों में यहां कभी लौटकर नहीं आईं.
12 सालों से नहीं दिखी सोनचिरैया : सोनचिरैया को प्रदेश के सोनचिरैया अभ्यारण्य में आखिरी बार 2010 में देखा गया था. पिछले करीब 12 साल में इसको देखे जाने के भी दावे नहीं किए गए. जबकि प्रदेश में सोनचिरैया को बनाने के लिए वन विभाग ने दस साल में करीबन 50 करोड़ रुपए खर्च कर इसके बसाने की योजना बनाई थी, लेकिन यह योजना कभी जमीन पर ही नहीं उतर पाई. वन विभाग ने प्रदेश में फिर सोनचिरैया लाने के लिए राजस्थान के जैसलमेर से इसके अंडे लाने के प्रयास किए, लेकिन राजस्थान सरकार ने इसके लिए ठेंगा दिखा दिया.
देश में सिर्फ गिनती के बचे ये पक्षी : सोनचिरैया राजस्थान का राज्य पक्षी है. राजस्थान के जैसलमेर में पहले यह बड़ी संख्या में पाए जाते थे. मध्यप्रदेश के शिवपुरी इलाके में भी यह अच्छी संख्या में थे, लेकिन बाद में इनके प्राकृतिक रहवास में इंसानी दखल से यह धीरे से कम होते गए. इस पक्षी को विलुप्त प्राय पक्षियों की लाल सूची में रखा गया है, क्योंकि इनकी संख्या अब उंगलियों पर गिनी जा सकती है. 2017 में की गई पक्षियों की गणना में मध्यप्रदेश में यह एक भी नहीं मिले. गुजरात में उस वक्त इनकी संख्या सिर्फ 15 थीं. महाराष्ट और गुजरात में इनकी संख्या सिर्फ 1-1 थी. जबकि देश में सबसे ज्यादा राजस्थान के जैसलमेर में करीबन 100 सोनचिरैया पाई गई थीं. हालांकि राजस्थान के कोटा में इन्हें कैप्टिव ब्रीडिंग के जरिए बसाने के जोरशोर से प्रयास किए जा रहे हैं.
नेहरू बनाना चाहते थे सोनचिरैया को राष्ट्रीय पक्षी : वन्यप्राणी विशेषज्ञ सुदेश वाघमारे कहते हैं कि सोनचिरैया का प्राकृतिक आवास बड़ी-बड़ी घास के मैदान होते हैं. इन मैदानों में ही सोनचिरैया अंडे देती है और बच्चे पालती है, लेकिन अवैध खनन और इंसानी दखल के चलते यह जमीनें आवास होती चली गईं, जिससे यह पक्षी भी खत्म होते गए. वे बताते हैं देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू सोनचिरैया को राष्ट्रीय पक्षी बनाना चाहते थे, लेकिन इसका अंग्रेजी नाम ग्रेट इंडिया बस्टर्ड होने की वजह से इसे राष्ट्रीय पक्षी नहीं बनाया गया, क्योंकि इसके नाम पर बस्टर्ड शब्द आता था.
सोन चिरैया की खोज में खर्च हुए करोड़ों, 2011 से नहीं आई है नजर, वन विभाग फिर लाया नई योजना
मांग मानने पर सिंधिया ने किया स्वागत : उधर, करैरा अभ्यारण्य के 202.21 वर्ग किलोमीटर अधिसूचित क्षेत्र को अभ्यारण्य से अलग करने की स्वीकृति दिए जाने का केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने स्वागत किया है. उन्होंने ट्वीट कर सरकार का आभार मानते हुए लिखा है कि मेरे अनुरोध को सरकार ने स्वीकार कर लिया. अब इस भूमि का उपयोग विभिन्न आर्थिक-सामाजिक विकास कार्यों के लिए किया जा सकेगा.
यह है डी नोटिफिकेशन की प्रक्रिया: वाइल्ड लाइफ सेंचुरी के नोटिफिकेशन और डी नोटिफिकेशन को लेकर 27.05.2005 में सुप्रीम कोर्ट ने पर्यावरण एंव वन मंत्रालय को निर्देश देते हुए एक पत्र जारी किया था. जिसके मुताबिक वाइल्ड लाइफ सेंचुरी के एरिया नोटिफिकेशन को लेकर केंद्र और राज्य सरकार की जिम्मेदारी तय की थी.
- इससे पहले एनवायरमेंट प्रोटेक्शन एक्ट 1986 मे पर्यावरण एंव वनों को बचाने के लिए सारे अधिकार केंद्र सरकार के पास थे. एक्ट के सेक्शन 5 के अनुच्छेद 1 के मुताबिक केंद्र सरकार किसी भी क्षेत्र की जैव विविधता को संरक्षित करने के लिए इसे प्रतिबंधित क्षेत्र घोषित करते हुए वहां ओद्योगिकी करण पर रोक लगा सकती है.
- इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट ने 4 दिसंबर 2006 को सभी राज्य सरकारों, केंद्र सरकार को किसी भी एरिया को इको सेंसिटिव क्षेत्र घोषित करने को लेकर गाइडलाइन भी जारी की थी.
- इसी आधार पर जून 2012 में सुप्रीम कोर्ट की एंपावर्ड कमेटी ने राज्य सरकार को पत्र भेजा कि करैरा अभयारण्य क्षेत्र में रजिस्ट्री पर लगी रोक हटाई जा सकती है. - सोनचिरैया अभ्यारण्य क्षेत्र की जमीन को डी नोटिफाइड करने के लिए राज्य सरकार ने पहले ही केंद्र सरकार को प्रस्ताव भेजा था. जिसपर सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के मुताबिक कुछ गांवों को अभ्यारण्य क्षेत्र से डी नोटिफाइड किया गया था.
- जिसके बाद राज्य सरकार के प्रस्ताव पर पर्यावरण एंव वन मंत्रालय ने सुप्रीम कोर्ट की एंपावर्ड कमेटी को पूरे 512 वर्ग किलोमीटर के झेत्र को अभ्यारण्य से डी नोटिफाइड किए जाने का प्रस्ताव दिया था. केंद्र के प्रस्ताव पर सुप्रीम कोर्ट की एम्पावर्ड कमेटी वन्य संरक्षित क्षेत्र को डी नोटिफाइड किए जाने पर फैसला देती है. ग्वालियर, घाटीगांव, करैरा के संरक्षित क्षेत्र में साल 2008 में आखिरी बार सोनचिरैया देखी गई थी. उसके बाद 2011 में घायल अवस्था में एक बार फिर से सोनचिरैया देखे जाने का दावा किया गया था. जिसके बाद सोनचिरैया अभ्यारण्य क्षेत्र में सोनचिरैया की कोई उपस्थिति दिखाई नहीं दी है. इसी आधार पर पर्यावरण एंव वन मंत्रालय ने संरक्षित क्षेत्र को डिनोटिफाइड किए जाने को मंजूरी दे दी है. प्रस्ताव पर अंतिम अनुमति सुप्रीम कोर्ट की एंपावर्ड कमेटी से लेनी होती है.