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पाक महीना रमजान पर कोरोना का असर, अबकी बार घर से इबादत-इफ्तार

इस्लामी कैलेंडर के मुताबिक 9वां महीना रमजान का होता है, इसमें सभी मुस्लिम समुदाय के लोग एक महीना रोजा रखते हैं इस साल रमजान की शुरुआत 26 अप्रैल से हो रही है, लेकिन कोरोना के प्रकोप के कारण रमजान की रौनक फीकी पड़ती दिखाई दे रही है.

Effect of corona on the holy month of Ramadan
रमजान पर कोरोना इफेक्ट
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Published : Apr 24, 2020, 8:57 AM IST

मस्जिद में इबादत और बाजार में रौनक देखकर रमजान के पवित्र महीने का पता चलता है, माना जाता है कि इस माह में की गई इबादत का शबाब (पुण्य) बाकी दिनों से ज्यादा मिलता है. इस्लामी कैलेंडर के मुताबिक 9वां महीना रमजान का होता है और मुस्लिम समुदाय के लिए अहमियत रखता है, लेकिन इस बार कोरोना ने रमजान की रौनक और इबादत दोनों पर असर डाला है.

मुस्लिम समुदाय में रमजान को इसलिए भी खास माना जाता है, क्योंकि इस दौरान इस्लामिक पैगंबर मोहम्मद के सामने कुरान की पहली झलक पेश की गई थी. लिहाजा रमजान को कुरान के जश्न का मौका भी माना जाता है.

कोरोना इफेक्ट

रमजान माह आते ही बाजार खजूर की मांग सबसे ज्यादा बढ़ जाती है क्योंकि रोजा इफ्तारी की शुरूआत ज्यादातर लोग खजूर से ही करते हैं, लॉकडाउन होने के कारण व्यापारी खजूर भी नहीं ला पाए हैं ऐसे में इसके दाम भी आसमान छू सकते हैं.

नवाबों के शहर भोपाल में रोजा तोप का गोला छोड़ने के बाद खोला जाता है और उसके बाद मगरीब की अजान होती है. 1 महीने का रोजा और अल्लाह की इबादत करने के बाद मीठी ईद यानी ईद-अल-फित्र मनाई जाती है.शहर काजी सैयद मुश्ताक अली नदवी ने इस बार कोरोना के चलते लोगों से घर में रहकर ही ईद मनाने की अपील की है.

यूं तो नवाबों के शहर भोपाल में झील किनारे की शाम और अजान की आवाज के साथ यहां का हर दिन किसी त्योहार से कम नहीं होता और ऐसे में रमजान का महीना शहर में चार चांद लगाता है लेकिन इस बार रमजान की वो चमक कोरोना की वजह फीकी दिखाई देने वाली है.

खास है रमजान का महीना

मुस्लिम समुदाय में रमजान को इसलिए भी खास माना जाता है क्योंकि इस दौरान इस्लामिक पैगंबर मोहम्मद के सामने कुरान की पहली झलक पेश की गई थी. लिहाजा रमजान को कुरान के जश्न का मौका भी माना जाता है. रमजान एक अरेबिक शब्द है ये अरेबिक के रमीदा और रमद शब्द से मिलकर बना है, इसका मतलब चिलचिलाती गर्मी और सूखापन होता है. रोजेदार रोजे के दौरान पूरे दिन बिना कुछ खाए पीए रहते हैं. हर दिन सुबह सूरज उगने से पहले थोड़ा खाना खाया जाता है इसे सहरी कहते हैं. जबकि शाम ढलने पर रोजेदार मगरीब की अजान के बाद जो खाना खाते हैं उसे इफ्तार कहते हैं यानी शाम को रोजा खोला जाता है. इस वक्त से लेकर सुबह तक आम दिनों की तरह कोई भी खा पी सकता है. फिर सुबह से रोजा शुरू हो जाता है. भोपाल की बात की जाए तो भोपाल में रोजा तोप का गोला छोड़ने के बाद खोला जाता है और उसके बाद मगरीब की अजान होती है.

एक माह सिर्फ इबादत

रमजान के दौरान रोजदार को बुरी सोबत से दूर रहना चाहिए उन्हें ना तो झूठ बोलना चाहिए, ना पीठ पीछे किसी की बुराई करनी चाहिए और ना ही लड़ाई झगड़ा करना चाहिए. ऐसा करने से अल्लाह की रहमत मिलती है. रमजान महीने में मुस्लिम समाज सबसे ज्यादा दान करता है, जिसे जकात भी कहते हैं इससे शवाब (पुण्य) भी मिलता है. कई लोग इस दौरान मस्जिद में मुफ्त लोगों को खाना खिलाते हैं, जबकि कई लोग जरूरतमंदों को जरूरी सामान बांटते हैं.

मीठी ईद

1 महीने का रोजा और अल्लाह की इबादत करने के बाद मीठी ईद यानी ईद-अल-फित्र मनाई जाती है. इस दिन सभी रोजेदार नए कपड़े पहनकर मस्जिदों और ईदगाह में जाते हैं, वहां रमजान की आखिरी नमाज पढ़कर खुदा का शुक्रिया अदा करते हैं साथ ही एक दूसरे को गले मिलकर बधाई देते हैं.

मस्जिद में इबादत और बाजार में रौनक देखकर रमजान के पवित्र महीने का पता चलता है, माना जाता है कि इस माह में की गई इबादत का शबाब (पुण्य) बाकी दिनों से ज्यादा मिलता है. इस्लामी कैलेंडर के मुताबिक 9वां महीना रमजान का होता है और मुस्लिम समुदाय के लिए अहमियत रखता है, लेकिन इस बार कोरोना ने रमजान की रौनक और इबादत दोनों पर असर डाला है.

मुस्लिम समुदाय में रमजान को इसलिए भी खास माना जाता है, क्योंकि इस दौरान इस्लामिक पैगंबर मोहम्मद के सामने कुरान की पहली झलक पेश की गई थी. लिहाजा रमजान को कुरान के जश्न का मौका भी माना जाता है.

कोरोना इफेक्ट

रमजान माह आते ही बाजार खजूर की मांग सबसे ज्यादा बढ़ जाती है क्योंकि रोजा इफ्तारी की शुरूआत ज्यादातर लोग खजूर से ही करते हैं, लॉकडाउन होने के कारण व्यापारी खजूर भी नहीं ला पाए हैं ऐसे में इसके दाम भी आसमान छू सकते हैं.

नवाबों के शहर भोपाल में रोजा तोप का गोला छोड़ने के बाद खोला जाता है और उसके बाद मगरीब की अजान होती है. 1 महीने का रोजा और अल्लाह की इबादत करने के बाद मीठी ईद यानी ईद-अल-फित्र मनाई जाती है.शहर काजी सैयद मुश्ताक अली नदवी ने इस बार कोरोना के चलते लोगों से घर में रहकर ही ईद मनाने की अपील की है.

यूं तो नवाबों के शहर भोपाल में झील किनारे की शाम और अजान की आवाज के साथ यहां का हर दिन किसी त्योहार से कम नहीं होता और ऐसे में रमजान का महीना शहर में चार चांद लगाता है लेकिन इस बार रमजान की वो चमक कोरोना की वजह फीकी दिखाई देने वाली है.

खास है रमजान का महीना

मुस्लिम समुदाय में रमजान को इसलिए भी खास माना जाता है क्योंकि इस दौरान इस्लामिक पैगंबर मोहम्मद के सामने कुरान की पहली झलक पेश की गई थी. लिहाजा रमजान को कुरान के जश्न का मौका भी माना जाता है. रमजान एक अरेबिक शब्द है ये अरेबिक के रमीदा और रमद शब्द से मिलकर बना है, इसका मतलब चिलचिलाती गर्मी और सूखापन होता है. रोजेदार रोजे के दौरान पूरे दिन बिना कुछ खाए पीए रहते हैं. हर दिन सुबह सूरज उगने से पहले थोड़ा खाना खाया जाता है इसे सहरी कहते हैं. जबकि शाम ढलने पर रोजेदार मगरीब की अजान के बाद जो खाना खाते हैं उसे इफ्तार कहते हैं यानी शाम को रोजा खोला जाता है. इस वक्त से लेकर सुबह तक आम दिनों की तरह कोई भी खा पी सकता है. फिर सुबह से रोजा शुरू हो जाता है. भोपाल की बात की जाए तो भोपाल में रोजा तोप का गोला छोड़ने के बाद खोला जाता है और उसके बाद मगरीब की अजान होती है.

एक माह सिर्फ इबादत

रमजान के दौरान रोजदार को बुरी सोबत से दूर रहना चाहिए उन्हें ना तो झूठ बोलना चाहिए, ना पीठ पीछे किसी की बुराई करनी चाहिए और ना ही लड़ाई झगड़ा करना चाहिए. ऐसा करने से अल्लाह की रहमत मिलती है. रमजान महीने में मुस्लिम समाज सबसे ज्यादा दान करता है, जिसे जकात भी कहते हैं इससे शवाब (पुण्य) भी मिलता है. कई लोग इस दौरान मस्जिद में मुफ्त लोगों को खाना खिलाते हैं, जबकि कई लोग जरूरतमंदों को जरूरी सामान बांटते हैं.

मीठी ईद

1 महीने का रोजा और अल्लाह की इबादत करने के बाद मीठी ईद यानी ईद-अल-फित्र मनाई जाती है. इस दिन सभी रोजेदार नए कपड़े पहनकर मस्जिदों और ईदगाह में जाते हैं, वहां रमजान की आखिरी नमाज पढ़कर खुदा का शुक्रिया अदा करते हैं साथ ही एक दूसरे को गले मिलकर बधाई देते हैं.

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