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एशिया की सबसे बड़ी प्लाईवुड इंडस्ट्री पर आर्थिक मंदी की मार, 150 यूनिट बंद, दो व्यापारियों ने की आत्महत्या - प्लाईवुड इंडस्ट्री हरियाणा न्यूज

हरियाणा में एशिया की सबसे बड़ी प्लाईवुड इंडस्ट्री इन दिनों आर्थिक मंदी की मार से जूझ रही है. इंडस्ट्री की 150 यूनिट बंद हो चुकी है. हजारों कर्मचारी बेरोजगार हो चुके हैं.

प्लाईवुड इंडस्ट्री पर आर्थिक मंदी की मार
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Published : Sep 15, 2019, 9:12 PM IST

यमुनानगर: एशिया की सबसे बड़ी प्लाई इंडस्ट्री का खिताब जीतने वाली प्लाई इंडस्ट्री अब बंद होने की कगार पर है. हालात ये हैं कि 150 फैक्ट्रियां बंद हो चुकी हैं, जिसकी वजह से हजारों कर्मचारी बेरोजगार हो गए हैं. व्यापार में आई आर्थिक मंदी की वजह से कई व्यापारी फैक्ट्री बंद करने की सोच रहे हैं तो कई व्यापारी फैक्ट्री बंद कर चुके हैं.

प्लाईवुड इंडस्ट्री पर आर्थिक मंदी की मार

एशिया की सबसे बड़ी प्लाईवुड इंडस्ट्री पर आर्थिक मंदी की मार
हालात ये हो गए हैं कि किराए पर चलने वाली फैक्ट्री कोई कम रेट पर भी लेने के लिए सामने नहीं आ रहा, आर्थिक मंदी से हालात इतने बिगड़ गए हैं कि दो व्यापारी आत्महत्या कर चुके हैं, हजारों कर्मचारी बेरोजगार हो चुके हैं. पेमेंट को लेकर आढ़ती, वुड व्यापारी और फेस विनियर व्यापारियों में तनातनी चल रही है.

आर्थिक मंदी से बंद हो जाएगी प्लाईवुड इंडस्ट्री?
हरियाण के यमुनानगर जिले में बोर्ड की 370 यूनिट हैं, इसके अलावा पीलिंग, आरा और चिप्पर की 800 के करीब यूनिट हैं, सभी पर मंदी की मार है. प्लाईवुड एसोसिएशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष देवेंद्र चावला ने बताया कि डिमांड और सप्लाई का संतुलन इन दिनों बिगड़ा हुआ है, कच्चे माल के रेट 400 से एक हजार पर पहुंच गए, जबकि बोर्ड के रेट 36 से 38 रुपये फुट पर ही पहुंचे हैं, इसलिए प्लाईवुड व्यापारी कर्जे में डूबता जा रहा है.

जीएसटी और नोटबंदी जिम्मेदार!
देवेंद्र चावला ने बताया कि नोटबंदी और जीएसटी को भी व्यापारी इस कारोबार के लिए सही नहीं मानते. मंडी से लक्कड़ नकद में खरीदा जाता है, तैयार बोर्ड उधार में सप्लाई होता है, रियल स्टेट में मंदी होने की वजह से कच्चा माल ज्यादा तैयार हो गया, जो माल सप्लाई हो गया, उसकी पेमेंट नहीं मिल पा रही है. यूनिट संचालकों को आढ़तियों को भी नकद में ही पेमेंट देनी पड़ रही है.

व्यापारियों ने सरकार पर भी उठाए सवाल
चावला के मुातबिक सरकार की तरफ से लाइसेंस के लिए जो सर्वे कराया गया. उसमें अधिकारियों ने सर्वे लक्कड़ के उत्पादन की बजाए आवक पर कर दिया, सर्वे के लिए जिले में पांच टीम बनी थी, अधिकारियों के मुताबिक मंडी में ढाई लाख क्विंटल से ज्यादा कच्चा माल आता है, जबकि सच्चाई ये है कि जिले में 85 प्रतिशत कच्चा माल उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और पंजाब से आता है, दूसरे राज्यों को लाइसेंस मिलने पर वहां भी यूनिट खुल गई. जिसका सीधा असर उनके व्यापार पर पड़ा है.

घाटे में चल रही है प्लाईवुड इंडस्ट्री
बता दें कि जीएसटी से पहले प्लाईवुड इंडस्ट्री सरकार को 110 करोड़ रुपये का राजस्व देती थी, जो एकमुश्त हुआ करता था, जीएसटी लगने के बाद ये राजस्व साल 2018-19 में 6 हजार करोड़ रुपये पर पहुंच गया, देवेंद्र चावला के मुताबिक मंदी की वजह से इस साल राजस्व 6 हजार के आंकड़े को भी नहीं छू पाएगा.

ये हैं प्लाईवुड व्यापारियों की मांगें
प्लाईवुड व्यापारियों के मुताबिक उनकी हालत बद से बदहाल होती जा रही है. ये व्यापार एग्रो फोरेस्ट्री का है.

  • जिस तरह किसान की फसल टैक्स मुक्त है, उसी तरह ये सुविधा इस व्यापार को मिलनी चाहिए
  • दो प्रतिशत मार्केट फीस भी सरकार को हटानी चाहिए
  • जिन लोगों ने लाइसेंस के लिए मोटी फीस दी है, उनके पैसे लौटाए जाए
  • मंदी को देखकर जो लोग व्यापार नहीं करना चाहते उनको मदद दी जाए
  • बिना सिक्योरिटी के लोन दिया जाए, ग्लू के लिए खाद और बिजली बिल के दरों में राहत दी जाए.

ये भी पढ़ें- 'रिवर्स गियर' में ऑटो सेक्टर: डाउनफॉल की वजह से मारुति ने 600 कर्मचारियों को छुट्टी पर भेजा

व्यापारियों के मुताबिक तैयार माल की डिमांड कम है, व्यापारियों की मोटी पेमेंट रुकी है, कच्चे माल के दामों में लगातार इजाफा हो रहा है, 400 रुपये में बिकने वाला पापुलर 1 हजार पर पहुंच गया, आर्थिक हालत कमजोर होने के कारण 150 फैक्टरी बंद पड़ी हैं, जो फैक्टरी पहले 24 घंटे चलती थी, वो अब आठ घंटे चल रही हैं.

यमुनानगर: एशिया की सबसे बड़ी प्लाई इंडस्ट्री का खिताब जीतने वाली प्लाई इंडस्ट्री अब बंद होने की कगार पर है. हालात ये हैं कि 150 फैक्ट्रियां बंद हो चुकी हैं, जिसकी वजह से हजारों कर्मचारी बेरोजगार हो गए हैं. व्यापार में आई आर्थिक मंदी की वजह से कई व्यापारी फैक्ट्री बंद करने की सोच रहे हैं तो कई व्यापारी फैक्ट्री बंद कर चुके हैं.

प्लाईवुड इंडस्ट्री पर आर्थिक मंदी की मार

एशिया की सबसे बड़ी प्लाईवुड इंडस्ट्री पर आर्थिक मंदी की मार
हालात ये हो गए हैं कि किराए पर चलने वाली फैक्ट्री कोई कम रेट पर भी लेने के लिए सामने नहीं आ रहा, आर्थिक मंदी से हालात इतने बिगड़ गए हैं कि दो व्यापारी आत्महत्या कर चुके हैं, हजारों कर्मचारी बेरोजगार हो चुके हैं. पेमेंट को लेकर आढ़ती, वुड व्यापारी और फेस विनियर व्यापारियों में तनातनी चल रही है.

आर्थिक मंदी से बंद हो जाएगी प्लाईवुड इंडस्ट्री?
हरियाण के यमुनानगर जिले में बोर्ड की 370 यूनिट हैं, इसके अलावा पीलिंग, आरा और चिप्पर की 800 के करीब यूनिट हैं, सभी पर मंदी की मार है. प्लाईवुड एसोसिएशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष देवेंद्र चावला ने बताया कि डिमांड और सप्लाई का संतुलन इन दिनों बिगड़ा हुआ है, कच्चे माल के रेट 400 से एक हजार पर पहुंच गए, जबकि बोर्ड के रेट 36 से 38 रुपये फुट पर ही पहुंचे हैं, इसलिए प्लाईवुड व्यापारी कर्जे में डूबता जा रहा है.

जीएसटी और नोटबंदी जिम्मेदार!
देवेंद्र चावला ने बताया कि नोटबंदी और जीएसटी को भी व्यापारी इस कारोबार के लिए सही नहीं मानते. मंडी से लक्कड़ नकद में खरीदा जाता है, तैयार बोर्ड उधार में सप्लाई होता है, रियल स्टेट में मंदी होने की वजह से कच्चा माल ज्यादा तैयार हो गया, जो माल सप्लाई हो गया, उसकी पेमेंट नहीं मिल पा रही है. यूनिट संचालकों को आढ़तियों को भी नकद में ही पेमेंट देनी पड़ रही है.

व्यापारियों ने सरकार पर भी उठाए सवाल
चावला के मुातबिक सरकार की तरफ से लाइसेंस के लिए जो सर्वे कराया गया. उसमें अधिकारियों ने सर्वे लक्कड़ के उत्पादन की बजाए आवक पर कर दिया, सर्वे के लिए जिले में पांच टीम बनी थी, अधिकारियों के मुताबिक मंडी में ढाई लाख क्विंटल से ज्यादा कच्चा माल आता है, जबकि सच्चाई ये है कि जिले में 85 प्रतिशत कच्चा माल उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और पंजाब से आता है, दूसरे राज्यों को लाइसेंस मिलने पर वहां भी यूनिट खुल गई. जिसका सीधा असर उनके व्यापार पर पड़ा है.

घाटे में चल रही है प्लाईवुड इंडस्ट्री
बता दें कि जीएसटी से पहले प्लाईवुड इंडस्ट्री सरकार को 110 करोड़ रुपये का राजस्व देती थी, जो एकमुश्त हुआ करता था, जीएसटी लगने के बाद ये राजस्व साल 2018-19 में 6 हजार करोड़ रुपये पर पहुंच गया, देवेंद्र चावला के मुताबिक मंदी की वजह से इस साल राजस्व 6 हजार के आंकड़े को भी नहीं छू पाएगा.

ये हैं प्लाईवुड व्यापारियों की मांगें
प्लाईवुड व्यापारियों के मुताबिक उनकी हालत बद से बदहाल होती जा रही है. ये व्यापार एग्रो फोरेस्ट्री का है.

  • जिस तरह किसान की फसल टैक्स मुक्त है, उसी तरह ये सुविधा इस व्यापार को मिलनी चाहिए
  • दो प्रतिशत मार्केट फीस भी सरकार को हटानी चाहिए
  • जिन लोगों ने लाइसेंस के लिए मोटी फीस दी है, उनके पैसे लौटाए जाए
  • मंदी को देखकर जो लोग व्यापार नहीं करना चाहते उनको मदद दी जाए
  • बिना सिक्योरिटी के लोन दिया जाए, ग्लू के लिए खाद और बिजली बिल के दरों में राहत दी जाए.

ये भी पढ़ें- 'रिवर्स गियर' में ऑटो सेक्टर: डाउनफॉल की वजह से मारुति ने 600 कर्मचारियों को छुट्टी पर भेजा

व्यापारियों के मुताबिक तैयार माल की डिमांड कम है, व्यापारियों की मोटी पेमेंट रुकी है, कच्चे माल के दामों में लगातार इजाफा हो रहा है, 400 रुपये में बिकने वाला पापुलर 1 हजार पर पहुंच गया, आर्थिक हालत कमजोर होने के कारण 150 फैक्टरी बंद पड़ी हैं, जो फैक्टरी पहले 24 घंटे चलती थी, वो अब आठ घंटे चल रही हैं.

Intro:एंकर बोर्ड इंडस्ट्री पर छाया मंदी का संकट, 150 यूनिट बंद दो व्यापारी कर चुके आत्महत्या, लोगों का रोजगार भी छीना..

एशिया की सबसे बड़ी प्लाई इंडस्ट्री होने का खिताब हासिल कर चुकी यमुनानगर की प्लाई इंडस्ट्री अब बंद होने के कगार पर पहुंच गई है, 150 फैक्टरियों की चिमनी ने धुआं उगलना बंद हो गया, व्यापार में आई मंदी के कारण कई व्यापारी फैक्टरी बंद करने की प्लानिंग कर रहे हैं, किराए पर चलने वाली फैक्टरी कम रेट पर भी लेने के लिए कोई सामने नहीं आ रहा, आर्थिक हालात इतने बिगड़ गए हैं कि दो व्यापारी आत्महत्या कर चुके हैं, ये व्यापार उधार के दम पर भी चलता है, उधार दिनों में नहीं महीनों में होता है, पेमेंट को लेकर आढ़ती, वुड व्यापारी व फेस विनियर व्यापारियों में तनातनी भी चल रही है, फैक्टरी बंद होने से हजारों लोगों का रोजगार भी छीन गया.. Body:वीओ जिले में बोर्ड की 370 यूनिट है, इसके अलावा पीलिंग, आरा और चिप्पर की 800 के करीब यूनिट हैं, सभी पर मंदी की मार है..

* कच्चे माल के दाम आसमान पर

प्लाईवुड एसोसिएशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष देवेंद्र चावला बताते हैं कि डिमांड एंड सप्लाई से ये व्यापार चलता है, ये संतुलन इन दिनों बिगड़ा हुआ है, कच्चे माल के रेट 400 से एक हजार पर पहुंच गए, जबकि बोर्ड के रेट 36 से 38 रुपये फुट पर ही पहुंचे हैं, इसलिए प्लाइवुड व्यापारी कर्जे में डूबता जा रहा है, इसके अलावा नोटबंदी व जीएसटी को भी व्यापारी इस कारोबार के लिए सही नहीं मानते..

* नकद खरीदते हैं और उधार में बेचते हैं

मंडी से लक्कड़ नकद में खरीदी जाती है, तैयार बोर्ड उधार में सप्लाई होता है, रियल स्टेट में मंदी होने के कारण माल ज्यादा तैयार हो गया, जो माल सप्लाई हो गया, उसकी पेमेंट नहीं मिल पा रही है यूनिट संचालकों को आढ़तियों को भी नकद में ही पेमेंट देनी पड़ रही है..

*आवक पर किया अधिकारियों ने सर्वे पड़ रहा भारी

लाइसेंस के लिए जो सर्वे कराया गया अधिकारियों ने सर्वे लक्कड़ के उत्पादन की बजाए आवक पर कर दिया, सर्वे के लिए जिले में पांच टीम लगी थी, उनके मुताबिक मंडी में ढाई लाख क्विंटल से ज्यादा कच्चा माल आता है, जबकि सच्चाई ये जिले में 85 प्रतिशत कच्चा माल उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड व पंजाब से आता है, उक्त राज्यों में लाइसेंस खुलने पर यूनिट स्थापित हो गई हैं, यहां का व्यापार संकट में आ गया..

*छह हजार करोड़ से घटेगा राजस्व

जीएसटी से पूर्व में यहां की इंडस्ट्री 110 करोड़ का राजस्व देती थी, जो एक मुश्त हुआ करता था, जीएसटी लगने पर ये राजस्व वर्ष 2018-19 में राजस्व छह हजार करोड़ पर पहुंचा, मंदी के कारण राजस्व इस बार ये आंकड़ा नहीं छू पाएगा..

वीओ। प्लाईवुड एसोसिएशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष देवेंद्र चावला का कहना है कि सरकार व्यापार बचाने के लिए कदम आगे बढ़ाने पड़ेंगे, इस व्यापार की हालात बद से बदहाल है, ये व्यापार एग्रो फोरेस्ट्री का है, जिस प्रकार किसान की फसल टैक्स मुक्त है, ये सुविधा इस व्यापार को मिलनी चाहिए, दो प्रतिशत मार्केट फीस भी सरकार को हटानी चाहिए, जिन लोगों ने लाइसेंस के लिए मोटी फीस दी है, उनके पैसे लौटाए जाए, मंदी को देखकर जो लोग व्यापार नहीं करना चाहते उनको मदद दी जाए, बिना सिक्योरिटी के लोन दिया जाए, ग्लू के लिए खाद व बिजली बिल के दरों में राहत दी जाए..

*पेमेंट फंसी है, माल बिक नहीं रहा

प्लाईवुड व्यापार की बहुत बुरी हालत है, तैयार माल की डिमांड कम है, व्यापारियों की मोटी पेमेंट रुकी हैं, कच्चे माल के दामों में लगातार इजाफा हो रहा है, 400 रुपये में बिकने वाला पापुलर 1 हजार पर पहुंच गया, आर्थिक हालत कमजोर होने के कारण 150 फैक्टरी बंद पड़ी हैं, जो फैक्टरी पहले 24 घंटे चलती थी वे अब आठ घंटे चल रहीं हैं, वर्ष 2018-19 में छह हजार करोड़ का कारोबार हुआ था, इस बार ये कारोबार इन आंकड़े को नहीं छू पाएगा..

बाइट _ देवेंद्र चावला, राष्ट्रीय अध्यक्ष, प्लाई बोर्ड एसोसिएशन

Conclusion:
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