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Diwali 2021: दीपों के उत्सव पर आखिर क्यों है मां लक्ष्मी के पूजन का विधान, ऐश्वर्य की देवी की कैसे करें पूजा

दीपों के पर्व दीपावली पर धन की देवी माता लक्ष्मी के विशेष पूजन का है महत्व. घर की साफ-सफाई, सजावट के साथ-साथ घर-घर पर माता लक्ष्मी, भगवान गणेश की पूजा-अर्चना की जाती है. कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की अमावस्या को मां लक्ष्मी की आराधना करने पर मिलते हैं विशेष फल.

Diwali 2021 Why we do worship of Goddess Lakshmi on festival of lights
Diwali 2021: दीपों के उत्सव पर आखिर क्यों है मां लक्ष्मी के पूजन का विधान
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Published : Oct 31, 2021, 9:14 AM IST

भोपाल। कार्तिक महीने का हिंदू धर्म में काफी महत्व होता है. इसे पर्व-त्योहार वाला माह भी माना जाता है. इस महीने में तुलसी, शालिग्राम और दिवाली पर मां लक्ष्मी की विशेष पूजा और आराधना की जाती है. हालांकि, मान्यता ये है कि दीपों का पर्व दीपावली भगवान राम, माता सीता और लक्ष्मण के वनवास से वापसी पर मनाया जाता है. लेकिन दिवाली पर मां लक्ष्मी की विशेष पूजा होती है. आखिर क्यों की जाती है दीपावली पर धन की देवी मां लक्ष्मी की आराधना, क्या है इसके पीछे का रहस्य.

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मां लक्ष्मी का होता है आगमन

आदिकाल से मनाये जानेवाले पर्व दीपावली को खुशियों का प्रतीक माना जाता है. कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की अमावस्या को रोशनी का पर्व दिवाली मनाने की परंपरा है. धार्मिक मान्यता के अनुसार, कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की अमावस्या को ही हजारों साल चले समुद्र मंथन से माता लक्ष्मी का आगमन हुआ था, इसलिए अमावस्या की इस रात को धन-संपदा की देवी मां लक्ष्मी की विशेष आराधना करने का विधान है. माता लक्ष्मी के पूजन के साथ-साथ विध्नहार्ता भगवान गणेश की भी पूजा की जाती है.

माता लक्ष्मी का जन्म दिवस

कुछ मान्यताओं के अनुसार, कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की अमावस्या को धन-धान्य की देवी मां लक्ष्मी का जन्म दिवस माना जाता है. इसलिए दीपावली पर उनकी विशेषतौर पर पूजा की जाती है. मान्यता ये भी है कि दिवाली की रात मां लक्ष्मी पृश्वी पर घूमने आती हैं और घर में प्रवेश करती हैं. इसलिए इस दिन धन-संपदा और शांति के लिए लक्ष्मी और गणेश भगवान की विशेष पूजा-अर्चना का आयोजन होता है.

जब दुर्वासा ऋषि के श्राप के कारण पाताल चली गयीं मां लक्ष्मी

युगो पुरानी मान्यता है कि जब समुद्र मंथन नहीं हुआ था, उस दौरान देवता और राक्षसों के बीच आए दिन युद्ध होते रहते थे. लेकिन देवताओं के भारी पड़ने के कारण राक्षस पाताल लोक में भागकर छिप गए. राक्षसों को पता था कि देवताओं पर माता लक्ष्मी की कृपा है और वे इतने शक्तिशाली नहीं कि देवताओं से लड़ सकें. माता लक्ष्मी अपने आठ रूपों के साथ इंद्रलोक में विराजमान थी. जिसका देवताओं को अंहकार था. एक दिन दुर्वासा ऋषि समामन की माला पहनकर स्वर्ग की तरफ जा रहे थे, रास्ते में देवराज इंद्र अपने ऐरावत हाथी के साथ मिलते हैं. इंद्र को देखकर दुर्वासा ऋषि ने प्रसन्न होकर गले कि माला उतार कर इंद्र की ओर फेंक दी, लेकिन इंद्र मस्त थे. देवराज ने ऋषि को प्रणाम तो किया लेकिन माला नही संभाल पाएं और वह ऐरावत के सिर में डाल गई. हाथी को अपने सिर में कुछ होने का अनुभव हुआ और उसने तुंरत सिर हिला दिया था, जिससे माला जमीन पर गिर गई और पैरों से कुचल गई. यह देखकर क्रोधित हुए दुर्वासा ने इंद्र को श्राप देते हुए कहा कि जिस अंहकार में हो, वह तेरे पास से तुरंत पाताललोक चली जाएगी. इस श्राप के कारण ही माता लक्ष्मी स्वर्गलोक छोड़कर पाताल लोक चली गई. उनके जाने से इंद्र व अन्य देवता कमजोर हो गए. जिसके बाद ब्रह्माजी ने लक्ष्मी को वापस बुलाने के लिए समुद्र मंथन की युक्ति बताई थी.

घर में साफ-सफाई का रखें विशेष ध्यान

पौराणिक कहानियों के अनुसार, दीपावली पर ही मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम, अपनी पत्नी माता सीता और भाई लक्ष्मण के साथ 14 वर्षों का वनवास पूरा कर अयोध्या लौटे थे. उनके स्वागत में पूरी अयोध्या नगरी को दीपों से सजाया गया था. इस खुशी में आज भी दीपों का पर्व दिवाली मनाई जाती है. इस दौरान घर की साफ-सफाई का विशेष ख्यास रखा जाता है. लोग अपने-अपने घरों की विशेष साफ-सफाई करने के साथ-साथ उसे तरह-तरह की लाइट्स, सजावट के सामान से सजाते भी है.

भोपाल। कार्तिक महीने का हिंदू धर्म में काफी महत्व होता है. इसे पर्व-त्योहार वाला माह भी माना जाता है. इस महीने में तुलसी, शालिग्राम और दिवाली पर मां लक्ष्मी की विशेष पूजा और आराधना की जाती है. हालांकि, मान्यता ये है कि दीपों का पर्व दीपावली भगवान राम, माता सीता और लक्ष्मण के वनवास से वापसी पर मनाया जाता है. लेकिन दिवाली पर मां लक्ष्मी की विशेष पूजा होती है. आखिर क्यों की जाती है दीपावली पर धन की देवी मां लक्ष्मी की आराधना, क्या है इसके पीछे का रहस्य.

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मां लक्ष्मी का होता है आगमन

आदिकाल से मनाये जानेवाले पर्व दीपावली को खुशियों का प्रतीक माना जाता है. कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की अमावस्या को रोशनी का पर्व दिवाली मनाने की परंपरा है. धार्मिक मान्यता के अनुसार, कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की अमावस्या को ही हजारों साल चले समुद्र मंथन से माता लक्ष्मी का आगमन हुआ था, इसलिए अमावस्या की इस रात को धन-संपदा की देवी मां लक्ष्मी की विशेष आराधना करने का विधान है. माता लक्ष्मी के पूजन के साथ-साथ विध्नहार्ता भगवान गणेश की भी पूजा की जाती है.

माता लक्ष्मी का जन्म दिवस

कुछ मान्यताओं के अनुसार, कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की अमावस्या को धन-धान्य की देवी मां लक्ष्मी का जन्म दिवस माना जाता है. इसलिए दीपावली पर उनकी विशेषतौर पर पूजा की जाती है. मान्यता ये भी है कि दिवाली की रात मां लक्ष्मी पृश्वी पर घूमने आती हैं और घर में प्रवेश करती हैं. इसलिए इस दिन धन-संपदा और शांति के लिए लक्ष्मी और गणेश भगवान की विशेष पूजा-अर्चना का आयोजन होता है.

जब दुर्वासा ऋषि के श्राप के कारण पाताल चली गयीं मां लक्ष्मी

युगो पुरानी मान्यता है कि जब समुद्र मंथन नहीं हुआ था, उस दौरान देवता और राक्षसों के बीच आए दिन युद्ध होते रहते थे. लेकिन देवताओं के भारी पड़ने के कारण राक्षस पाताल लोक में भागकर छिप गए. राक्षसों को पता था कि देवताओं पर माता लक्ष्मी की कृपा है और वे इतने शक्तिशाली नहीं कि देवताओं से लड़ सकें. माता लक्ष्मी अपने आठ रूपों के साथ इंद्रलोक में विराजमान थी. जिसका देवताओं को अंहकार था. एक दिन दुर्वासा ऋषि समामन की माला पहनकर स्वर्ग की तरफ जा रहे थे, रास्ते में देवराज इंद्र अपने ऐरावत हाथी के साथ मिलते हैं. इंद्र को देखकर दुर्वासा ऋषि ने प्रसन्न होकर गले कि माला उतार कर इंद्र की ओर फेंक दी, लेकिन इंद्र मस्त थे. देवराज ने ऋषि को प्रणाम तो किया लेकिन माला नही संभाल पाएं और वह ऐरावत के सिर में डाल गई. हाथी को अपने सिर में कुछ होने का अनुभव हुआ और उसने तुंरत सिर हिला दिया था, जिससे माला जमीन पर गिर गई और पैरों से कुचल गई. यह देखकर क्रोधित हुए दुर्वासा ने इंद्र को श्राप देते हुए कहा कि जिस अंहकार में हो, वह तेरे पास से तुरंत पाताललोक चली जाएगी. इस श्राप के कारण ही माता लक्ष्मी स्वर्गलोक छोड़कर पाताल लोक चली गई. उनके जाने से इंद्र व अन्य देवता कमजोर हो गए. जिसके बाद ब्रह्माजी ने लक्ष्मी को वापस बुलाने के लिए समुद्र मंथन की युक्ति बताई थी.

घर में साफ-सफाई का रखें विशेष ध्यान

पौराणिक कहानियों के अनुसार, दीपावली पर ही मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम, अपनी पत्नी माता सीता और भाई लक्ष्मण के साथ 14 वर्षों का वनवास पूरा कर अयोध्या लौटे थे. उनके स्वागत में पूरी अयोध्या नगरी को दीपों से सजाया गया था. इस खुशी में आज भी दीपों का पर्व दिवाली मनाई जाती है. इस दौरान घर की साफ-सफाई का विशेष ख्यास रखा जाता है. लोग अपने-अपने घरों की विशेष साफ-सफाई करने के साथ-साथ उसे तरह-तरह की लाइट्स, सजावट के सामान से सजाते भी है.

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