भोपाल । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट करके जानकारी दी थी, कि गुजरात के गिर वन में पिछले 5 साल में शेर (एशियाटिक लायन) की आबादी 29 फीसदी बढ़ी है. जानकारी के बाद वन्य प्रेमियों ने इस पर खुशी जाहिर की थी. लेकिन प्रदेश के वन्य प्रेमी इस बात से नाराज हैं कि, सुप्रीम कोर्ट ने 2013 में गिर प्रजाति के शेरों को प्रदेश के कूनो अभ्यारण्य भेजने का फैसला सुनाया था. गुजरात सरकार ने सात साल बीत जाने के बाद भी सुप्रीम कोर्ट का फैसला नहीं माना है.
हालांकि प्रदेश के वन्य प्रेमी इस बात पर अड़े हैं कि कोर्ट के फैसले के बाद कुछ शेर प्रदेश को मिलना चाहिए. दरअसल गुजरात के गिर वन क्षेत्र में 2015 में एशियाटिक लायन की आबादी 523 थी. पांच साल में 151 शेर और बढ़ गए हैं. इससे गिर प्रजाति के शेरों की तादात में 29 फीसदी का इजाफा हुआ है. वन्य प्राणियों के बारे में कहा जाता है कि विशेष प्रजाति के वन्य प्राणियों को एक ही जगह पर नहीं रखना चाहिए, किसी महामारी और आपदा की स्थिति में उनकी प्रजाति विलुप्त होने का खतरा रहता है.
कोर्ट ने इसी के चलते फैसला दिया था कि नई जगह पर जाने से शेरों की आबादी बढ़ सके और उनकी प्रजाति को खतरा ना हो. इस मामले पर प्रदेश में वन एवं वन्य प्राणियों के संरक्षण के लिए लड़ाई लड़ने वाले अजय दुबे का कहना है कि जब नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री बने, तो उनको सोचना था कि एशियाटिक लायन सिर्फ गुजरात की नहीं बल्कि देश की संपत्ति है. यदि शेर केवल एक जगह हैं, तो वाइल्डलाइफ के प्रावधानों के तहत वे असुरक्षित हैं. उन्होंने मध्यप्रदेश के लिए गिर शेरों की मांग की है.