भोपाल। बीजेपी की राजनीति में तमाम उतार चढ़ाव देख लेने के बाद भी कैलाश जोशी ने कभी कांग्रेस मुख्यालय की तरफ पैर करने की भी नहीं सोची होगी. तो बात सिर्फ इतनी नहीं है कि राजनीति के संत और जनसंघ को सींचने वाले कैलाश जोशी की तस्वीर कांग्रेस मुख्यालय पहुंची. बात सिर्फ इतनी भी नहीं कि संघ और जनसंघ के संस्कारो में जिए स्वयंसेवक को कमलनाथ ने सूत की माला पहनाई. बात ये है कि इस तस्वीर के साथ बीजेपी के जीवनदानी कहे जाने वाले कार्यकर्ता के कैडर में दरार आती दिखाई दे रही है. जिसके लिए कहा जाता है कि बीजेपी का कार्यकर्ता निष्क्रिय हो जाएगा लेकिन पार्टी को पीठ कभी नहीं दिखाएगा. दीपक जोशी का बीजेपी छोड़कर जाना केवल एक पूर्व मंत्री का झटका नहीं है. परिवार की तरह चलने वाली पार्टी में एक परिपाटी का खत्म होना भी है.
कमलनाथ के हाथ में कैलाश जोशी की तस्वीर: भारतीय जनता पार्टी की जिन कमराबंद बैठकों में आज भी कार्यकर्ताों को सत्यनिष्ठा और पार्टी के प्रति समर्पण की कसमें दिलाई जाती हैं. जहां पार्टी की परंपरा को आगे बढ़ाने संस्कृति में रच बस जानें का पाठ पढ़ाया जाता है. वहां कुशाभाऊ ठाकरे, सुंदर लाल पटवा के साथ संगठन को सींचने वाले कैलाश जोशी की ही कसमें कार्यकर्ता उठाते हैं. उनकी राजनीति की मिसालें दी जाती हैं. नेताओं की निगाह में हाइपोथैटिकल सवाल ही सही, लेकिन क्या कैलाश जोशी के जीते जी ये तस्वीर बन पाती. पीसीसी मुख्यालय में बैठकर दीपक जोशी ने मीडिया को संबोधित करते हुए जो पहला वाक्य कहा कि उनका नाम भी जनसंघ के चुनाव चिन्ह दीपक पर ही पड़ा था. वो गर्भ में थे जब जनसंघ गढ़ा जा रहा था. अंदाजा लगाइए कि बीजेपी में ये टूट कितनी बड़ी है. बीजेपी पार्टी नहीं परिवार है ये दावा होता है. नेताओं में रुठना मनाना चलता है लेकिन बीजेपी में दीपक जोशी एपीसोड उससे आगे की बात है.
Also Read |
कार्यकर्ताओं का दूसरा घर रहा है कैलाश जोशी का निवास: कैलाश जोशी अक्सर अपने संस्मरणों में बीजेपी के उस दौर की याद दिलात रहे हैं. इमरजेंसी के समय में कैसे उनका घर बीजेपी कार्यकर्ताओं का दूसरा निवास बन चुका था. दिवंगत बीजेपी नेता कैलाश जोशी की पत्नि तारा जोशी कैसे राजधानी आने वाले कार्यकर्ताओं के खाने पीने का इंतज़ाम करतीं. कैसे जेल से छूटे लोगों के लिए बाकी सहूलियत के इंतजाम किये जाते थे. इस सारी कोशिश में पार्टी और परिवार के बीच की लकीर मिट गई थी. कैलाश जोशी ने उस लकीर को हमेशा से मिटाए रखा. यही वजह रही कि उनके अपने बेटे को चुनावी राजनीति में आने के लिए वो सारे पायदान तय करने पड़े जो बीजेपी के किसी भी आम कार्यकर्ता को तय करने पड़ते हैं.
तप कर बना दीपक: दीपक जोशी की सियासत पैराशूट से उतरे किसी नेता पुत्र की सियासत कभी नहीं रही. अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद में तपने के बाद युवा मोर्चा से होते हुए वे यहां तक पहुंचे. सवाल ये है कि कैलाश जोशी जिन्होने पार्टी को ही परिवार माना. पार्टी के हित में मुख्यमंत्री की कुर्सी भी छोड़ने में मिनिट भर का वक्त नहीं लिया. ऐसे समर्पित कार्यकर्ता के परिवार की बदली आस्था बीजेपी के लिए झटका नहीं है. सवाल ये नहीं कि कैलाश जोशी के सुपुत्र ने बीजेपी छोड़ दी है. सवाल ये है कि परिवार की परिपाटी में रहने वाली बीजेपी में एक समर्पित कार्यकर्ता का पुत्र अपने हाथों में अपने साथ हुए अन्याय की फेहरिस्त लिए पार्टी की देहरी से बाहर निकला है.