भोपाल। आपने इंसानों के शमशान घाट और कब्रिस्तान के बारे में तो सुना ही होगा लेकिन मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में कुत्तों के लिए एक कब्रिस्तान बनाया गया है. माना जा रहा है कि ये देश में कुत्तों का पहला कब्रिस्तान होगा. इस अनोखे विचार को जमीन पर उतारने का श्रेय सरकारी वेटरनरी डॉ. अनिल कुमार शर्मा को जाता है जो शासकीय पशु चिकित्सालय में अपनी सेवाएं दे रहे हैं.
उन्होंने गलियों में आवारा घूमने वाले कुत्तों के लिए एक शेल्टर होम बनाया है. कुत्ते इलाज के अभाव में मरे नहीं और इन्हें वक्त पर खाना नसीब हो, इसको देखते हुए डॉ. अनिल कुमार शर्मा ने बीड़ा उठाया है. वो बताते है कि वो अपने दोस्तों की मदद से कुतों के लिए संसाधन जुटाते हैं. डॉ. अनिल कुमार ने आज से ठीक 2 साल से पहले ऑर्गेनाइज्ड तरीके से इसे शुरू किया था.
13 हजार वर्ग फीट में बना है डॉग शेल्टर
वेटरनरी डॉ.अनिल कुमार ने बताया कि 13 हजार वर्ग फीट में डॉग शेल्टर होम बनाया गया है. इस शेल्टर होम में कुत्तों के रहने के लिए 40 केनल बनाए गए हैं. उनकी इस मुहीम में और लोगों को जोड़ने के लिए उन्होंने 'प्रकृति नाम' का एक एनजीओ बनाया है. इस एनजीओ का नाम 'राही होप फॉर स्ट्रे एनिमल्स' है. अब तक इस संस्था से 62 लोग जुड़ चुके हैं जो किसी ना किसी तरह से इस काम में मदद कर रहे हैं. शेल्टर होम में लाए गए घायल और बीमार कुत्तों को इलाज और प्रॉपर केयर के बाद उनकी नसबंदी की जाती है और फिर उन्हें वापस उसी जगह छोड़ दिया जाता है।
48 कुत्ते और 25 पपीज हैं शेल्टर होम में
शेल्टर होम में कुत्तों के लिए सारी सुविधाएं मौजूद हैं. यहां कुत्तों के खेलने के लिए बाड़ा भी बनाया गया है. फिलहाल शेल्टर होम में 48 कुत्ते और 25 पपीज हैं.
विधिवत होता है कुत्तों का अंतिम संस्कार
शेल्टर होम के नजदीक ही खाली पड़ी जमीन पर कुत्तों के विधिवत अंतिम संस्कार की शुरुआत भी की है. इसके लिए पहले गड्ढा खोदा जाता है फिर उसमें नमक की मोटी परत बिछाई जाती है. इसके बाद कुत्ते के शव को रखकर उस पर फिर खड़े नमक की एक और परत डाली जाती है फिर मिट्टी डालकर उस पर कटीले तार और कांटे बिछा दिए जाते हैं जिससे कि कोई जानवर उसे खोद ना सके. इस विधि से कुत्ते का शव जल्दी से जल्दी डीकंपोज हो जाता है.
पुण्यतिथि पर शेल्टर होम के कुत्तों को खिलाते हैं खाना
यहां अगर कोई अपने पालतू कुत्ते का अंतिम संस्कार करना चाहे तो डॉक्टर अनिल कुमार इस काम में भी मदद करते हैं. उनका कहना है कि 10 से 15 साल साथ रहने पर कुत्ता परिवार का सदस्य जैसा बन जाता है और परिवार उसके जाने के बाद एक खालीपन महसूस करता है, कई लोग अपने कुत्ते की याद में उस की पुण्यतिथि पर शेल्टर होम के कुत्तों को खाना खिलाते हैं और मदद के लिए दान भी देते हैं.
विदेशी नस्ल के कुत्ते नहीं हो पाते है एडजस्ट: वेटरनरी डॉक्टर
वेटरनरी डॉक्टर का कहना है कि विदेशी नस्ल के कुत्ते जल्दी एडजस्ट नहीं कर पाते और बार-बार बीमार हो जाते हैं इसके विपरीत देसी नस्ल के कुत्ते पालना बहुत आसान है. देसी नस्ल के कुत्तों को घरों में पालने के लिए प्रोत्साहित करने को वे शेल्टर होम में जन्मे पप्पी का एडॉप्शन कैंप भी लगाते हैं जहां लोग बड़े उत्साह से देसी डॉग्स को अडॉप्ट करते हैं.