भोपाल। गैस पीड़ितों के बीच काम कर रहे चार संगठनों ने कोरोना की स्थिति को लेकर सीएम शिवराज को पत्र लिखा है. इसमें बताया गया है कि, भोपाल शहर में कोरोना संक्रमण से मरने वालों में से 75 प्रतिशत गैस पीड़ित हैं और इस बीमारी का कहर गैस पीड़ितों पर सबसे ज्यादा पड़ा है. कोरोना वायरस संक्रमण की वजह से भारी संख्या में गैस पीड़ितों की मौत से यह सिद्ध होता है कि, 35 साल बाद गैस पीड़ितों का स्वास्थ्य आज भी नाजुक है.
उनके स्वास्थ को यूनियन कार्बाइड की जहरीली गैस की वजह से स्थाई क्षति पहुंची है, इसीलिए सीएम शिवराज से यह मांग की गई है कि, सर्वोच्च न्यायालय में लंबित याचिका में गैस कांड की वजह से सभी 5,21,322 गैस पीड़ितों को स्थाई क्षतिग्रस्त होने के सही आंकड़े रखें. ताकि गैस पीड़ितों के लिए सम्मानजनक मुआवजा लिया जा सके. गैस पीड़ितों के संगठनों ने 21 मार्च और 23 अप्रैल को केंद्र और राज्य सरकार को चिट्ठी लिख कर बता दिया था, कि 'कोविड-19 के चलते अगर गैस पीड़ितों पर ध्यान नहीं दिया, तो बहुत से गैस पीड़ित अपनी जान गवा देंगे'.
जानिए क्या था भोपाल गैस कांड
साल 1984 में भोपाल में मानव इतिहास की एक बड़ी औद्योगिक त्रासदी हुई थी. जहां जहरीली गैस का रिसाव हुआ और हजारों लोगों की जान चली गई. 35 साल बाद भी इस त्रासदी का विनाशक असर पड़ रहा है. यही वजह है कि, इस घटना का नाम सुनते ही लोग आज भी सहम उठते हैं.
भोपाल में साल 1984 में 2-3 दिसंबर की दरमियानी रात यूनियन कार्बाइड से निकली जहरीली गैस से हजारों लोग प्रभावित हुए थे. भोपाल में इस समय साढ़े तीन लाख के करीब गैस पीड़ित हैं. इन लोगों ने जहरीली मिथाइल आइसोसायनाइड को तो मात दी थी, मगर वे कोरोना से जंग हार गए.
इन लोगों की इम्यूनिटी पावर बहुत कम है, ये लोग आसानी से कोरोना की चपेट में आ रहे हैं, इसीलिए भोपाल के कोरोना पीड़ितों में सबसे बड़ी संख्या इन्हीं की है. 35 साल बाद भी गैस त्रासदी का दंश झेलने को ये लोग मजबूर हैं, ऐसे में अब एक बार फिर सरकार के सामने मदद की गुहार लगाई है.