भोपाल। मध्य प्रदेश में 24 सीटों पर होने वाले विधानसभा उपचुनाव में ओबीसी आरक्षण एक अहम मुद्दा बनता जा रहा है. दरअसल कांग्रेस सामाजिक संगठनों के जरिए उपचुनाव वाले क्षेत्रों में मुहिम चला रही है और ओबीसी मतदाताओं को एकजुट करने का प्रयास कर रही है. इस मुहिम के जरिए ओबीसी मतदाताओं को बताया जा रहा है कि, मध्य प्रदेश में 14 फीसदी से 27 फीसदी आरक्षण करने का काम कमलनाथ सरकार ने किया था. हालांकि फिलहाल इस पर कोर्ट ने रोक लगा दी है.
आरक्षण पर सियासत
इधर सत्ताधारी बीजेपी, कांग्रेस की इन कोशिशों पर सवाल खड़े कर रही है. बीजेपी का कहना है कि, 'कांग्रेस ने हमेशा से जाति को जाति से लड़ाने का काम किया है और बीजेपी ने हमेशा सबका साथ सबका विकास किया है'. वहीं कांग्रेस का कहना है कि 'हमने ओबीसी को आरक्षण दिया है, हम भाजपा से यह जानना चाहते हैं कि, वो जब सरकार में हैं, तो इस आरक्षण को लेकर अपना रुख स्पष्ट करे'.
कांग्रेस ने किया था 27 फीसदी आरक्षण
दरअसल,कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव 2018 में अपने वचन पत्र में ओबीसी के लिए आरक्षण 14 फीसदी से बढ़ाकर 27 फीसदी करने का वचन दिया था. कमलनाथ ने मुख्यमंत्री बनने के बाद ओबीसी आरक्षण 27 फीसदी कर दिया था, लेकिन हमेशा की तरह आरक्षण का मामला कानूनी दाव-पेंच में उलझ गया और अभी तक उलझा हुआ है.
बीजेपी का आरोप
इस मामले में बीजेपी प्रवक्ता रजनीश अग्रवाल का कहना है कि, 'कांग्रेस की प्रवृत्ति 70 सालों से रही है कि, जाति को जाति से लड़ाते हैं और अपना राजनीतिक उल्लू सीधा करते हैं'. साथ ही उन्होंने कहा कि, 'बीजेपी ने सबका साथ सबका विकास, सबका विश्वास का मंत्र सिद्ध किया है. केंद्र में 6 सालों में और मध्य प्रदेश में पिछले 15 सालों में बीजेपी ने यही किया है. चाहे वो आरक्षित वर्ग हो या अनारक्षित वर्ग, एससी, एसटी,ओबीसी या फिर सामान्य वर्ग हो. सबकी अगर कोई समस्या है, तो उसका समाधान जाति के आधार पर नहीं, बल्कि आवश्यकता के आधार पर होना चाहिए'.
कांग्रेस ने खड़े किए सवाल
इधर मध्यप्रदेश कांग्रेस की प्रवक्ता विभा पटेल का कहना है कि, 'इसमें कोई रणनीति वाली बात नहीं है. कांग्रेस ने हमेशा 27 फीसदी आरक्षण का समर्थन किया है. जब दिग्विजय सिंह मुख्यमंत्री थे, तो उन्होंने 27 फीसदी आरक्षण दिया और जब कमलनाथ आए तो उन्होंने न केवल 27 फीसदी आरक्षण दिया, बल्कि कई जगह लागू भी कराया'