भोपाल। मध्यप्रदेश में मातृ मृत्यु दर और शिशु मृत्यु दर के आंकड़ों में लगातार हो रही बढ़ोतरी को लेकर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने नाराजगी जाहिर की है. सीएम ने नेशनल हेल्थ मिशन के अधिकारियों से पूछा है कि आखिर ये कलंक हम अपने माथे पर कब तक लेकर घूमते रहेंगे. समय सीमा तय कर इस पर काम किया जाए, ताकि इस कलंक से पीछा छुड़ाया जा सके.
'टारगेट के साथ काम करें विभाग'
मुख्यमंत्री ने निर्देश दिए की सभी जिलों के एक हॉस्पिटल को आदर्श हॉस्पिटल बनाया जाए. अस्पताल में पीपीपी मोड पर डायलिसिस की सुविधा उपलब्ध हो. ताकि मातृ मृत्यु दर और शिशु मृत्यु दर को कंट्रोल किया जा सके. मुख्यमंत्री ने कहा कि हमें इन आंकड़ों को राष्ट्रीय औसत से नीचे लाना होगा. इसके लिए विभाग टारगेट तय कर काम करें.
बड़ी आबादी सरकारी स्वास्थ्य सुविधाओं पर निर्भर
सीएम शिवराज सिंह चौहान ये तमाम बातें भोपाल के लिंक रोड नंबर-3 पर बने नेशनल हेल्थ मिशन के नवनिर्मित भवन का लोकार्पण के दौरान कहीं. सीएम ने कहा कि प्रदेश में सरकारी हॉस्पिटल की पुरानी छवि को बदलना है. जिले बार एक हॉस्पिटल तो ऐसी रहे कि जिसमें सभी सुविधाएं उपलब्ध हों. मेडिकल कॉलेज को भी आदर्श के रूप में स्थापित करें. प्रदेश की बड़ी आबादी सरकारी स्वास्थ्य सुविधाओं पर निर्भर है, इसलिए स्वास्थ्य सुविधाओं को बेहतर बनाए जाने पर खास ध्यान देने की जरूरत है.
'पीपी मोड पर डायलिसिस सुविधा हो उपलब्ध'
मुख्यमंत्री ने कहा कि कई बार सरकारी हॉस्पिटलों को लेकर आरोप लगते हैं कि इनमें व्यवस्थाएं इसीलिए खराब कीं जातीं हैं, ताकि निजी हॉस्पिटल चल सके. कई बार ऐसा सोच समझ कर भी किया जाता है. सीएम ने पब्लिक-प्राइवेट-पार्टनरशिप की मोड पर हॉस्पिटलों में डायलिसिस सुविधा उपलब्ध कराने के निर्देश दिए हैं. उन्होंने डॉक्टर्स की कमी पूरी करने और मापदंड के अनुसार प्राथमिक स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराने के भी निर्देश दिए हैं.
एक नजर इन आंकड़ों पर
शिशु मृत्यु दर में एमपी टॉप पर
देश में शिशु मृत्युदर 32 है. जबकि मध्य प्रदेश में यह आंकड़ा सर्वाधिक 48 पर जा पहुंचा है. राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों में शिशु मृत्युदर 52 और शहरी क्षेत्र में 36 है. शर्मनाक स्थिति है कि मध्य प्रदेश लगातार 15वीं बार शिशु मृत्यु दर (आईएमआर) में सबसे अव्वल रहा.
साल दर साल बढ़ रहे आंकड़े
मध्यप्रदेश में शिशु मृत्यु दर 2017 में 47 थी, जो बढ़कर 48 हो गई है. यहां 1000 जीवित जन्मे बच्चों में 48 बच्चों की मृत्यु सालभर में ही हो जाती है, यानी वो अपना पहला जन्मदिन भी नहीं मना पाते हैं.
क्या है शिशु मृत्यु दर ?
शिशु मृत्यु दर प्रति 1000 जीवित जन्मे शिशुओं में से एक वर्ष या इससे कम उम्र में मृत शिशुओं की संख्या है. इसका सबसे बड़ा कारण कम वजन, श्वसन संबंधी संक्रमण (न्यूमोनिया) को माना जाता है. शिशु मृत्यु के प्रमुख कारणों जन्मजात विकृति, संक्रमण, एसआईडीएस, परित्याग और उपेक्षा आदि शामिल हैं.
कागजी करामात करते हैं अधिकारी !
मध्य प्रदेश के आदिवासी इलाकों में जहां पोषण और मातृ स्वास्थ्य निम्न स्तर पर हैं, वहां नवजात मृत्यु दर 10% से अधिक है. कहीं सरकारी अधिकारी हेराफेरी करते हैं तो कहीं अस्पताल कर्मी, स्वस्थ लोगों की भर्ती कर लेते हैं, ताकि रिपोर्ट अच्छी आए. एनएचएम के चाइल्ड हेल्थ रिव्यू 2019-2020 में अंडर-रिपोर्टिंग के मामलों का पर्दाफाश किया है. इसके अनुसार 43 जिलों में सरकारी अधिकारियों ने पांच वर्ष से कम आयु के बच्चों की 50% से अधिक मौतें दर्ज नहीं की हैं. आंकड़ों को समझें तो राजधानी भोपाल में, तीन सालों में अस्पताल या अन्य कोई स्वास्थ्य केंद्र में भर्ती होने वाले हर पांच बच्चों में से एक नवजात की मृत्यु हो गई. राज्य में 19.9% की उच्चतम मृत्यु दर, एनएचएम के 2% से नीचे के अनिवार्य प्रमुख प्रदर्शन संकेतक से दस गुना अधिक है.
क्या मातृ मृत्यु दर ?
मातृ मृत्यु दर या MMR गर्भावस्था या उसके प्रबंधन से संबंधित किसी भी कारण से (आकस्मिक या अप्रत्याशित कारणों को छोड़कर) प्रति 100,000 जीवित जन्मों में मातृ मृत्यु की वार्षिक संख्या है. मातृ मृत्यु दर दुनिया के सभी देशों में प्रसव के पूर्व या उसके दौरान या बाद में माताओं के स्वास्थ्य और सुरक्षा में सुधार के प्रयासों के लिये एक प्रमुख प्रदर्शन संकेतक है.
देश में तीसर पायदन पर एमपी
मध्यप्रदेश में अगर प्रसव के दौरान बच्चे को जन्म देने के समय एक लाख महिलाओं में से 173 महिलाएं जान गवां देती हैं. इसके पीछे कई कारण होते हैं. हमसे आगे दो ही राज्य है. असम (215) व उत्तर प्रदेश (197). चिंता की बात ये है कि देश की औसत मातृ मृत्यु दर 113 है और इसमें लगातार गिरावट आ रही है, वहीं एमपी का औसत इससे कहीं ज्यादा है.