भोपाल। प्रभु यीशु के जन्म दिवस क्रिसमस की खुशियों का दौर शुरू हो गई हैं. वैसे तो क्रिसमस 25 दिसंबर को होता है, लेकिन प्रभु यीशु के प्रेम और शांति का संदेश सभी तक पहुंचाने के लिए एक सप्ताह पहले से ही कई कार्यक्रम शुरू हो जाते हैं. आर्चबिशप एस दुरईराज कहते हैं कि ईसा मसीह ने शांति और प्रेम का संदेश दिया है. जिसे सभी तक पहुंचाना आज की युवा पीढ़ी का धर्म है. वहीं उन्होंने कहा कि शांति की संदेश पहुंचाने के साथ ही वर्तमान में कोरोना महामारी को भी ध्यान में रखना चाहिए. कोविड नियमों का पालन करते हुए उन्होंने क्रिसमस खुशियां मनाने का संदेश दिया. (Christmas 2021 Celebration)
ईसा मसीह ने सेवा को सर्वोपरि माना- आर्चबिशप
आर्चबिशप एस दुरईराज ने बताया कि, ईसा मसीह ने देश में प्रेम और शांति का संदेश दिया. साथ ही सेवा को सर्वोपरि माना. ऐसे में कोरोना के समय क्रिसमस की खुशियां भी कोविड गाइडलाइन को ध्यान में रखकर मनाना चाहिए. क्रिसमस को लेकर बुधवार को भोपाल में हुए सांस्कृतिक कार्यक्रम में आर्चबिशप एस दुरईराज ने शिरकत की. उन्होंने इस दौरान ईटीवी भारत के संवाददाता को क्रिसमस के बारे में रोचक जानकारी दी.
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क्यों मनाया जाता है क्रिसमस का त्योहार ?
आर्चबिशप एस दुरईराज के अनुसार, क्रिसमस, जीसस क्रिस्ट, ईसा मसीह के जन्म की खुशी में मनाया जाता है. जीसस क्रिस्ट को भगवान का बेटा कहा जाता है. क्रिसमस का नाम भी क्रिस्ट से पड़ा है. बाइबल में जीसस की कोई बर्थ डेट नहीं दी गई है, लेकिन 336 ई. पूर्व में रोमन के पहले ईसाई रोमन सम्राट के समय में सबसे पहले क्रिसमस 25 दिसंबर को मनाया गया था. तब से यह 25 दिसंबर को क्रिसमस मनाने की प्रथा शुरू हुई.
क्रिसमस में सांता क्लॉस की कथा
आर्चबिशप एस दुरईराज के मुताबिक, क्रिसमस को खास उसकी परम्पराएं बनाती हैं. इनमें एक सांता निकोलस, जिनका जन्म ईसा मसीह की मृत्यु के लगभग 280 साल बाद मायरा में हुआ था. उन्होंने अपना पूरा जीवन यीशू को समर्पित कर दिया. उन्हें लोगों की मदद करना बेहद पसंद था. यही वजह है कि वो यीशू के जन्मदिन के मौके पर रात के अंधेरे में बच्चों को गिफ्ट दिया करते थे. दरअसल सांता निकोलस को सांता क्लॉज माना जाता है, क्योंकि वे रात के वक्त उपहार बांटते थे.
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