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स्कूल खुलने के बाद डिप्रेशन में आ गए बच्चे, मोबाइल न मिलने पर हो जाते हैं परेशान

विश्व मानसिक दिवस (world mental health day) के पहले स्कूलों में बच्चों के लिए कई कार्यक्रम आयोजित किए गए. ऐसा ही एक कार्यक्रम भोपाल के सुभाष एक्सीलेंस स्कूल में हुआ, जिसमें मनोरोगी विशेषज्ञ रूमा भट्टाचार्य ने बच्चों की समस्याओं को समझा. इस दौरान बच्चों ने भी खुलकर अपनी बात बताई.

world mental health day
विश्व मानसिक दिवस
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Published : Oct 10, 2021, 8:54 AM IST

भोपाल। सरकार ने स्कूल तो खोल दिए लेकिन अब बच्चे एक नई समस्या से जूझ रहे हैं. यह समस्या है डिप्रेशन का शिकार होना. यह डिप्रेशन (Depression) पढ़ाई को लेकर नहीं, बल्कि ज्यादा घर में रहने और आराम करने के कारण होने लगा है. अब बच्चों का स्कूल में मन नहीं लग रहा और वह वापस अपनी पुरानी दिनचर्या में आना चाहते हैं, जो कोविड के दौरान थी. ऐसे में मनोचिकित्सक (psychiatrist in bhopal) कहते हैं कि इसका समाधान ज्यादा से ज्यादा बच्चों को फिजिकली रूप में सोशल गैदरिंग कराना है.

बच्चों ने साझा कीं अपनी परेशानी.

डिप्रेशन में जाने लगे बच्चे
करोना ने वैसे तो सब कुछ बदल दिया, लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि इसने बच्चों की दिनचर्या को भी बदला. इसके चलते अब बच्चे स्कूल जाने के बाद डिप्रेशन में आने लगे हैं. घर में रहने की आदत ऐसी हुई कि अब स्कूलों में बच्चों का पढ़ाई में मन नहीं लग रहा. वह कुछ समझ नहीं पा रहा है. ऑफलाइन कक्षाओं (Offline Classes) में उन्हें नींद आती है, तो टीचर जो समझाते हैं घर जाकर बच्चे उसे पढ़ ही नहीं पाते. बस ढूंढते हैं तो सिर्फ मोबाइल. मोबाइल की आदत ऐसी लग गई है कि इसके बिना अब बच्चे रह ही नहीं रह पा रहे हैं. जब मोबाइल नहीं मिलता है तो वह डिप्रेशन में जाने लगे हैं. अब ये तमाम बातें सामने अब आने लगी हैं.

कोविड से बच्चों की जिंदगी में आया बदलाव
विश्व मानसिक दिवस (world mental health day) के पहले स्कूलों में बच्चों के लिए कई कार्यक्रम आयोजित किए गए. ऐसा ही एक कार्यक्रम भोपाल के सुभाष एक्सीलेंस स्कूल में हुआ, जिसमें मनोरोगी विशेषज्ञ रूमा भट्टाचार्य ने बच्चों की समस्याओं को समझा. इस दौरान बच्चों ने भी खुलकर अपनी बात बताई. उनका कहना था कि 2 साल से यह घरों में है और कोविड मे बाहर नहीं निकले. ऐसे में मोबाइल को ही इन्होंने अपना दोस्त बनाया और अब जब से स्कूल खुले हैं. तब से इनका मन पढ़ाई में नहीं लग रहा है. हर समय मोबाइल पर क्या चल रहा है, वही दिमाग में रहता है. मोबाइल नहीं मिलने से बच्चे डिप्रेशन में जाने लगे हैं.

बच्चों की मानसिक स्थिति में आया बदलाव
इधर, मनोचिकित्सक रुमा भट्टयाचार्य मानती हैं कि जिस तरह से कोविड के दौरान बच्चे घर में रहे और सिर्फ मोबाइल और बंद कमरे में ही रहे हैं, तो ऐसे में उनकी मानसिक स्थिति में बहुत बदलाव आया है. पहले जो बच्चे बाहर खेला करते थे और सबसे हंस बोलकर मिलकर रहते थे. अब वह बच्चे अपने आप में ही गुमसुम होने लगे हैं. ऐसे में वह डिप्रेशन का लगातार शिकार हो रहे हैं. इसका कारण उनका सिर्फ मोबाइल और सोशल नेटवर्किंग साइट का उपयोग करना है. ऐसे में बच्चा क्या देख रहा है, यह भी बड़ा महत्वपूर्ण है.

माता पिता को ध्यान देने की जरूरत
रूमा भट्टाचार्य के अनुसार माता-पिता को इसके लिए ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है. एक और अब सरकार ने स्कूल खोल दिए हैं जो अच्छा है, लेकिन स्कूलों में बच्चों का व्यवहार बदल गया है. माता-पिता को बच्चों को सामाजिक लोगों से मिलाते रहना चाहिए और उन्हें बाहर खेलने के लिए भेजना चाहिए.

World Mental Health Day: हर 40 सेकेंड में हो रही एक आत्महत्या, कोविड के बाद बढ़े ज्यादा मरीज

इस मामले में यह बात भी सामने आई है कि अब बच्चों की मानसिक स्थिति भी बदलने लगी है. पहले जो बच्चा अपना व्यवहार सभी से हंसमुख रखता था. वह अब बड़ों की तरह बातें करने लगा है. इसका मुख्य कारण मोबाइल (excessive use of mobile) के उपयोग में सोशल साइट्स है. वहीं रूमा भट्टाचार्य कहती हैं कि कई बच्चे गलत संगत में भी पड़ जाते हैं और मोबाइल पर आने वाली आपत्तिजनक चीजें भी देखने लगते हैं. जिस वजह से भी उनके व्यवहार में परिवर्तन आ रहा है और स्कूल आने के कारण वह उतना समय उन साइट्स पर नहीं दे पाते. जिस वजह से डिप्रेशन में जा रहे हैं.

भोपाल। सरकार ने स्कूल तो खोल दिए लेकिन अब बच्चे एक नई समस्या से जूझ रहे हैं. यह समस्या है डिप्रेशन का शिकार होना. यह डिप्रेशन (Depression) पढ़ाई को लेकर नहीं, बल्कि ज्यादा घर में रहने और आराम करने के कारण होने लगा है. अब बच्चों का स्कूल में मन नहीं लग रहा और वह वापस अपनी पुरानी दिनचर्या में आना चाहते हैं, जो कोविड के दौरान थी. ऐसे में मनोचिकित्सक (psychiatrist in bhopal) कहते हैं कि इसका समाधान ज्यादा से ज्यादा बच्चों को फिजिकली रूप में सोशल गैदरिंग कराना है.

बच्चों ने साझा कीं अपनी परेशानी.

डिप्रेशन में जाने लगे बच्चे
करोना ने वैसे तो सब कुछ बदल दिया, लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि इसने बच्चों की दिनचर्या को भी बदला. इसके चलते अब बच्चे स्कूल जाने के बाद डिप्रेशन में आने लगे हैं. घर में रहने की आदत ऐसी हुई कि अब स्कूलों में बच्चों का पढ़ाई में मन नहीं लग रहा. वह कुछ समझ नहीं पा रहा है. ऑफलाइन कक्षाओं (Offline Classes) में उन्हें नींद आती है, तो टीचर जो समझाते हैं घर जाकर बच्चे उसे पढ़ ही नहीं पाते. बस ढूंढते हैं तो सिर्फ मोबाइल. मोबाइल की आदत ऐसी लग गई है कि इसके बिना अब बच्चे रह ही नहीं रह पा रहे हैं. जब मोबाइल नहीं मिलता है तो वह डिप्रेशन में जाने लगे हैं. अब ये तमाम बातें सामने अब आने लगी हैं.

कोविड से बच्चों की जिंदगी में आया बदलाव
विश्व मानसिक दिवस (world mental health day) के पहले स्कूलों में बच्चों के लिए कई कार्यक्रम आयोजित किए गए. ऐसा ही एक कार्यक्रम भोपाल के सुभाष एक्सीलेंस स्कूल में हुआ, जिसमें मनोरोगी विशेषज्ञ रूमा भट्टाचार्य ने बच्चों की समस्याओं को समझा. इस दौरान बच्चों ने भी खुलकर अपनी बात बताई. उनका कहना था कि 2 साल से यह घरों में है और कोविड मे बाहर नहीं निकले. ऐसे में मोबाइल को ही इन्होंने अपना दोस्त बनाया और अब जब से स्कूल खुले हैं. तब से इनका मन पढ़ाई में नहीं लग रहा है. हर समय मोबाइल पर क्या चल रहा है, वही दिमाग में रहता है. मोबाइल नहीं मिलने से बच्चे डिप्रेशन में जाने लगे हैं.

बच्चों की मानसिक स्थिति में आया बदलाव
इधर, मनोचिकित्सक रुमा भट्टयाचार्य मानती हैं कि जिस तरह से कोविड के दौरान बच्चे घर में रहे और सिर्फ मोबाइल और बंद कमरे में ही रहे हैं, तो ऐसे में उनकी मानसिक स्थिति में बहुत बदलाव आया है. पहले जो बच्चे बाहर खेला करते थे और सबसे हंस बोलकर मिलकर रहते थे. अब वह बच्चे अपने आप में ही गुमसुम होने लगे हैं. ऐसे में वह डिप्रेशन का लगातार शिकार हो रहे हैं. इसका कारण उनका सिर्फ मोबाइल और सोशल नेटवर्किंग साइट का उपयोग करना है. ऐसे में बच्चा क्या देख रहा है, यह भी बड़ा महत्वपूर्ण है.

माता पिता को ध्यान देने की जरूरत
रूमा भट्टाचार्य के अनुसार माता-पिता को इसके लिए ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है. एक और अब सरकार ने स्कूल खोल दिए हैं जो अच्छा है, लेकिन स्कूलों में बच्चों का व्यवहार बदल गया है. माता-पिता को बच्चों को सामाजिक लोगों से मिलाते रहना चाहिए और उन्हें बाहर खेलने के लिए भेजना चाहिए.

World Mental Health Day: हर 40 सेकेंड में हो रही एक आत्महत्या, कोविड के बाद बढ़े ज्यादा मरीज

इस मामले में यह बात भी सामने आई है कि अब बच्चों की मानसिक स्थिति भी बदलने लगी है. पहले जो बच्चा अपना व्यवहार सभी से हंसमुख रखता था. वह अब बड़ों की तरह बातें करने लगा है. इसका मुख्य कारण मोबाइल (excessive use of mobile) के उपयोग में सोशल साइट्स है. वहीं रूमा भट्टाचार्य कहती हैं कि कई बच्चे गलत संगत में भी पड़ जाते हैं और मोबाइल पर आने वाली आपत्तिजनक चीजें भी देखने लगते हैं. जिस वजह से भी उनके व्यवहार में परिवर्तन आ रहा है और स्कूल आने के कारण वह उतना समय उन साइट्स पर नहीं दे पाते. जिस वजह से डिप्रेशन में जा रहे हैं.

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