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मजदूरी की मजबूरी! लॉकडाउन ने मासूमों से कलम-कॉपी छीन थमाया हथौड़ा

लॉकडाउन के दौरान कई फैक्ट्रियां बंद कर दी गई थी. इससे करोड़ों लोगों को बेरोजगार होना पड़ा. अब अनलॉक होने के बाद मजबूरी में बच्चों को मजदूरी करनी पड़ रही हैं.

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Published : Jun 12, 2021, 12:11 PM IST

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बाल मजदूरी

भोपाल। कोरोना संक्रमण के चलते कई महीनों से स्कूल बंद हैं. जब ऑनलाइन पढ़ाई शुरू भी हुई, तो इंटरनेट और स्मार्टफोन या कंप्यूटर तक पहुंच नहीं होने की वजह से बड़ी तादाद में स्कूली बच्चे शिक्षा से वंचित रह गए. अब अनलॉक के बाद ऐसे घर-परिवार के बच्चों को मजदूरी करने पर मजबूर होना पड़ रहा हैं. इधर मध्य प्रदेश बाल आयोग ने इस संबंध में उन तमाम जिलों के संभाग आयुक्तों को पत्र लिखा हैं, जो मध्य प्रदेश और अन्य राज्यों की सीमा पर हैं.


कोरोना संक्रमण की दर कम करने के लिए कई देशों ने लॉकडाउन लगाया. इस दौरान कारोबारी गतिविधियों और फैक्ट्रियां बंद रहीं. इससे करोड़ों लोगों को बेरोजगार होना पड़ा. उनके परिवारों को आजीविका के संकट का सामना करना पड़ा. जानकारी के मुताबिक, देश में पांच से 18 साल के आयु वर्ग के मजदूरों की संख्या 3.30 करोड़ हैं, लेकिन कोरोना, बाढ़ और अम्फान जैसी प्राकृतिक आपदाओं के कारण यह आंकड़ा तेजी से बढ़ा हैं. लॉकडाउन का असर हर व्यक्ति पर पड़ा है. राज्य में बाल श्रम में कई प्रतिशत की वृद्धि हुई हैं. बाल श्रम का प्रतिशत 14 से 18 वर्ष के आयु वर्ग में बढ़ा हैं.



हनुमानगंज क्षेत्र निवासी नाबालिग 14 साल का हैं. वह सरकारी स्कूल में पढ़ता था, लेकिन लॉकडाउन में उसके सामने एक पारिवारिक संकट भी पैदा हो गया. उसके माता-पिता का काम बंद हो गया. सेठ ने माता-पिता को पुराना पैसा भी नहीं दिया, जिसके कारण उनका स्वास्थ्य भी ठीक नहीं रहने लगा. इसलिए तालाबंदी खुलते ही किराने की दुकान पर काम पर आना पड़ा.

नाबालिग का कहना है कि अगर सरकार स्कूल खोलती है और पढ़ाई शुरू हो जाती है, तो वह अपनी पढ़ाई पर वापस चला जाएगा, लेकिन अगर उसे परिवार के लिए कुछ काम भी मिल जाए, तो बेहतर है कि सरकार से उसकी यही मांग हों.

मजदूरी की मजबूरी

शहडोल: लॉकडाउन में नहीं बढ़ा बाल श्रम



बाल अधिकारों के हित में काम करने वाले लोग इस स्थिति के लिए कई वजहों को जिम्मेदार मानते हैं. मध्य प्रदेश बाल आयोग के सदस्य बृजेश चौहान का कहना है कि घर के कमाने वाले परिवारों की नौकरी छिनने से बच्चे काम पर जाने को मजबूर हो रहे हैं. खासकर लड़कियों को स्कूल न जाने की स्थिति में घर के काम का बोझ उठाना पड़ता है.

बाल श्रम सस्ता हैं. इसलिए लोग उन्हें काम पर लगाना पसंद कर रहे हैं. वयस्क मजदूरों के विस्थापन के कारण उनके घर लौटने से ऐसे लोगों की कमी हो गई हैं. उनकी भरपाई बच्चों से की जा रही है.

बाल मजदूरी बढ़ने से बच्चों की तस्करी और खरीद-फरोख्त का खतरा भी बढ़ रहा हैं. इसके अलावा स्कूल बंद रहने और लंबे समय से पढ़ाई नहीं कर पाने के कारण इन बच्चों का मोह भंग हो रहा हैं. बाल श्रम पर नजर रखने वाली सरकारी एजेंसियां भी अब इस समस्या से मुंह मोड़ रही हैं.


कौन होते हैं बाल मजदूर ?

भारतीय संविधान के अनुसार उद्योग, कारखाने, किसी कंपनी में मानसिक या शारीरिक रूप से श्रम करने वाले 5-14 उम्र वाले बच्चों को बाल श्रमिक कहा जाता हैं. संयुक्त राष्ट्र संघ के अनुसार 18 वर्ष से कम उम्र वाले बाल श्रमिक कहलाते हैं. अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन के अनुसार बाल श्रम की उम्र 15 साल तय की गई हैं.

भोपाल। कोरोना संक्रमण के चलते कई महीनों से स्कूल बंद हैं. जब ऑनलाइन पढ़ाई शुरू भी हुई, तो इंटरनेट और स्मार्टफोन या कंप्यूटर तक पहुंच नहीं होने की वजह से बड़ी तादाद में स्कूली बच्चे शिक्षा से वंचित रह गए. अब अनलॉक के बाद ऐसे घर-परिवार के बच्चों को मजदूरी करने पर मजबूर होना पड़ रहा हैं. इधर मध्य प्रदेश बाल आयोग ने इस संबंध में उन तमाम जिलों के संभाग आयुक्तों को पत्र लिखा हैं, जो मध्य प्रदेश और अन्य राज्यों की सीमा पर हैं.


कोरोना संक्रमण की दर कम करने के लिए कई देशों ने लॉकडाउन लगाया. इस दौरान कारोबारी गतिविधियों और फैक्ट्रियां बंद रहीं. इससे करोड़ों लोगों को बेरोजगार होना पड़ा. उनके परिवारों को आजीविका के संकट का सामना करना पड़ा. जानकारी के मुताबिक, देश में पांच से 18 साल के आयु वर्ग के मजदूरों की संख्या 3.30 करोड़ हैं, लेकिन कोरोना, बाढ़ और अम्फान जैसी प्राकृतिक आपदाओं के कारण यह आंकड़ा तेजी से बढ़ा हैं. लॉकडाउन का असर हर व्यक्ति पर पड़ा है. राज्य में बाल श्रम में कई प्रतिशत की वृद्धि हुई हैं. बाल श्रम का प्रतिशत 14 से 18 वर्ष के आयु वर्ग में बढ़ा हैं.



हनुमानगंज क्षेत्र निवासी नाबालिग 14 साल का हैं. वह सरकारी स्कूल में पढ़ता था, लेकिन लॉकडाउन में उसके सामने एक पारिवारिक संकट भी पैदा हो गया. उसके माता-पिता का काम बंद हो गया. सेठ ने माता-पिता को पुराना पैसा भी नहीं दिया, जिसके कारण उनका स्वास्थ्य भी ठीक नहीं रहने लगा. इसलिए तालाबंदी खुलते ही किराने की दुकान पर काम पर आना पड़ा.

नाबालिग का कहना है कि अगर सरकार स्कूल खोलती है और पढ़ाई शुरू हो जाती है, तो वह अपनी पढ़ाई पर वापस चला जाएगा, लेकिन अगर उसे परिवार के लिए कुछ काम भी मिल जाए, तो बेहतर है कि सरकार से उसकी यही मांग हों.

मजदूरी की मजबूरी

शहडोल: लॉकडाउन में नहीं बढ़ा बाल श्रम



बाल अधिकारों के हित में काम करने वाले लोग इस स्थिति के लिए कई वजहों को जिम्मेदार मानते हैं. मध्य प्रदेश बाल आयोग के सदस्य बृजेश चौहान का कहना है कि घर के कमाने वाले परिवारों की नौकरी छिनने से बच्चे काम पर जाने को मजबूर हो रहे हैं. खासकर लड़कियों को स्कूल न जाने की स्थिति में घर के काम का बोझ उठाना पड़ता है.

बाल श्रम सस्ता हैं. इसलिए लोग उन्हें काम पर लगाना पसंद कर रहे हैं. वयस्क मजदूरों के विस्थापन के कारण उनके घर लौटने से ऐसे लोगों की कमी हो गई हैं. उनकी भरपाई बच्चों से की जा रही है.

बाल मजदूरी बढ़ने से बच्चों की तस्करी और खरीद-फरोख्त का खतरा भी बढ़ रहा हैं. इसके अलावा स्कूल बंद रहने और लंबे समय से पढ़ाई नहीं कर पाने के कारण इन बच्चों का मोह भंग हो रहा हैं. बाल श्रम पर नजर रखने वाली सरकारी एजेंसियां भी अब इस समस्या से मुंह मोड़ रही हैं.


कौन होते हैं बाल मजदूर ?

भारतीय संविधान के अनुसार उद्योग, कारखाने, किसी कंपनी में मानसिक या शारीरिक रूप से श्रम करने वाले 5-14 उम्र वाले बच्चों को बाल श्रमिक कहा जाता हैं. संयुक्त राष्ट्र संघ के अनुसार 18 वर्ष से कम उम्र वाले बाल श्रमिक कहलाते हैं. अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन के अनुसार बाल श्रम की उम्र 15 साल तय की गई हैं.

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