भोपाल। इनको चिंतपूर्णी भी कहते हैं और इनकी गणना काली कुल में की जाती है. इनका संबंध महाप्रलय से है. महाप्रलय की भान कराने वाली यह महाविद्या भगवती का ही रौद्र रूप हैं. उनके इस रूप की चर्चा शिव पुराण और मार्कण्डेय पुराण में भी है. देवी चंडी ने राक्षसों का संहार कर देवताओं को विजय दिलायी.
मां के अजब गजब रूप की कहानी (Devi Chhinmasta Katha)
कालितंत्रम् में मां के इस रूप का वर्णन हैं. एक बार देवी पार्वती हिमालय भ्रमण कर रही थी उनके साथ उनकी दो सहचरियां जया और विजया भी थीं, हिमालय पर भ्रमण करते हुये वे हिमालय से दूर आ निकली, मार्ग में सुंदर मन्दाकिनी नदी कल-कल करती हुई बह रही थी, जिसका साफ स्वच्छ जल दिखने पर देवी पार्वती के मन में स्नान की इच्छा हुई, उन्होंने जया-विजया को अपनी मंशा बताई व उनको भी स्नान करने को कहा.
वो दोनों भूखी थी, बोली देवी हमें भूख लगी है, हम स्नान करना चाहती हैं. तो देवी नें कहा ठीक है मैं स्नान करती हूँ तुम विश्राम कर लो. किन्तु स्नान में देवी को अधिक समय लग गया, जया-विजया नें पुनः देवी से कहा कि उनको कुछ खाने को चाहिए. देवी स्नान करती हुई बोलीं कुछ देर में बाहर आ कर तुम्हें कुछ खाने को दूंगी, लेकिन थोड़ी ही देर में जया विजया नें फिर से खाने को कुछ माँगा.
इस पर देवी नदी से बाहर आ गईं और अपने हाथों में उन्होंने एक दिव्य खड्ग प्रकट किया व उस खडग से उन्होंने अपना सिर काट लिया, देवी के कटे गले से रुधिर की धारा बहने लगी तीन प्रमुख धाराएँ ऊपर उठती हुई भूमि की ओर आई तो देवी नें कहा जया-विजया तुम दोनों मेरे रक्त से अपनी भूख मिटा लो, ऐसा कहते ही दोनों देवियाँ पार्वती जी का रुधिर पान करने लगी व एक रक्त की धारा देवी नें स्वयं अपने ही मुख में डाल दी और रुधिर पान करने लगी.
देवी के ऐसे रूप को देख कर देवताओं में त्राहि-त्राहि मच गयी, देवताओं नें देवी को प्रचंड-चंड चंडिका कह कर संबोधित किया. ऋषियों नें कटे हुये सिर के कारण देवी को नाम दिया छिन्नमस्ता, तब शिव नें कबंध शिव का रूप बना कर देवी को शांत किया.
शिव के आग्रह पर पुनः देवी ने सौम्य रूप बनाया, नाथ पंथ सहित बौद्ध मताव्लम्बी भी देवी की उपासना करते हैं. भक्त को इनकी उपासना से भौतिक सुख संपदा वैभव की प्राप्ति, वाद विवाद में विजय, शत्रुओं पर जय, सम्मोहन शक्ति के साथ-साथ अलौकिक सम्पदाएँ प्राप्त होती है. इनकी सिद्धि हो जाने पर कुछ पाना शेष नहीं रह जाता.
कैसी दिखती हैं मां छिन्नमस्ता (Devi Ka Swaroop)
इनका सिर कटा हुआ और इनके कबंध (बिना सिर का धड़) से रक्त की तीन धाराएं बह रही हैं. इनकी तीन आंखें हैं और ये मदन और रति पर आसीन है. देवी के गले में हड्डियों की माला तथा कंधे पर यज्ञोपवीत है. इसलिए शांत भाव से इनकी उपासना करने पर यह अपने शांत स्वरूप को प्रकट करती हैं. उग्र रूप में उपासना करने पर यह उग्र रूप में दर्शन देती हैं जिससे साधक के उच्चाटन होने का भय रहता है. देवी स्वयं कमल के पुष्प पर विराजमान हैं जो विश्व प्रपंच का द्योतक है.
देवी के उपासक (Devi Ke Upasak)
महर्षि याज्ञवल्क्य और परशुराम इस विद्या के उपासक थे. श्री मत्स्येन्द्र व गोरखनाथ भी इस रूप के उपासक रहें हैं. इन शक्तियों के वज्रवैरोचनीय भी कहते हैं. वैरोचनीया कर्मफलेषु जुष्टाम तथागत बुद्ध भी इसी शक्ति के उपासक थे.
कैसे होती हैं प्रसन्न
चतुर्थ संध्याकाल में मां छिन्नमस्ता की उपासना से साधक को सरस्वती की सिद्ध प्राप्त हो जाती है. पलास और बेलपत्रों से छिन्नमस्ता महाविद्या की सिद्धि की जाती है. इससे प्राप्त सिद्धियां मिलने से लेखन बुद्धि ज्ञान बढ़ जाता है. शरीर रोग मुक्त होताते हैं. सभी प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष शत्रु परास्त होते हैं. यदि साधक योग, ध्यान और शास्त्रार्थ में साधक पारंगत होकर विख्यात हो जाता है.
छिन्नमस्ता रूप का महत्व (Significance Of Maa Chhinmasta)
इस रूप में माता दूसरे के भूख को शांत करने के लिए अपने ही सर को काट देती है. इससे यह पता चलता है कि मां के भीतर परोपकार और त्याग की भावना भरी हुई है. ठीक वैसे ही जैसे कोई मां अपने बच्चे की इच्छा करने के लिए सर्वस्व न्योछावर कर देती है.
दूसरा-माता अपनी सर को काटने के पश्चात भी जीवित हैं यह अपने आप में पूर्ण अंतर्मुखी साधना का संकेत है. जब कोई साधक अंतर्मुखी हो जाता है तो वह शरीर की सीमाओं से ऊपर उठ जाता है, वह शरीर से परे हो जाता है. वह अपने दिव्य स्वरुप को अनुभव करने लगता है. मां का ये स्वरूप उसी ओर इंगित करता है.
ऐसे करें मां की स्तुति (Chinnmasta Devi Stuti)
छिन्न्मस्ता करे वामे धार्यन्तीं स्व्मास्ताकम,
प्रसारितमुखिम भीमां लेलिहानाग्रजिव्हिकाम,
पिवंतीं रौधिरीं धारां निजकंठविनिर्गाताम,
विकीर्णकेशपाशान्श्च नाना पुष्प समन्विताम,
दक्षिणे च करे कर्त्री मुण्डमालाविभूषिताम,
दिगम्बरीं महाघोरां प्रत्यालीढ़पदे स्थिताम,
अस्थिमालाधरां देवीं नागयज्ञो पवीतिनिम,
डाकिनीवर्णिनीयुक्तां वामदक्षिणयोगत:
मंत्र (Chinnmasta Devi Mantra)
"श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं वज्र वैरोचनीयै हूं हूं फट स्वाहा:"
ॐ वैरोचन्यै विद्महे छिन्नमस्तायै धीमहि तन्नो देवी प्रचोदयात्