भोपाल (Agency, PTI)। कूनो नेशनल पार्क में एक दिन पहले दूसरे नामीबियाई चीते ने भी दम तोड़ दिया. इसके पहले एक और चीते की मौत हो चुकी है. चीतों की मौत से वन विभाग के अधिकारियों में हड़कंप मच गया है. बता दें कि पिछले साल सितंबर से क्रमशः नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका से क्रमशः 8 और 12 चीते दो किस्तों में कूनो नेशनल पार्क आए थे. इन चीतों के रखरखाव के लिए पर्याप्त व्यवस्था कूनो में की गई है. 24 घंटे चीतों पर नजर रखी जा रही है. लेकिन अब वन विभाग इन चीतों के संभालने में असहाय दिख रहा है. वन विभाग के अफसरों का कहना है कि इनको संभालने के लिए यहां पर्याप्त व्यवस्था नहीं है. इतना मैन पॉवर भी यहां नहीं है.
कूनो में जगह पर्याप्त, अन्य संसाधन नहीं : बता दें कि कूनो नेशनल पार्क (केएनपी) में मुख्य क्षेत्र 748 वर्ग किमी और बफर जोन 487 वर्ग किमी है. इस मायने में यहां जगह की कोई कमी नहीं है लेकिन अधिकारियों का कहना है कि जगह के अलावा और कई व्यवस्थाएं बनानी पड़ती है. रविवार को कूनो में एक महीने से भी कम समय में दूसरी चीता की मौत हो गई. एक चीता साशा जिसकी उम्र साढ़े चार साल से अधिक थी, की 27 मार्च को गुर्दे की बीमारी से मृत्यु हो गई थी. सरकार की महत्वाकांक्षी 'प्रोजेक्ट चीता' के लिए ये बड़ा झटका माना जा रहा है.
राजस्थान का नाम सुझाया : सियाया नाम की एक और चीता ने हाल ही में कूनो में चार शावकों को जन्म दिया है. इसके अलावा, चीता ओबन, जिसे अब पावन नाम दिया गया है, कई बार केएनपी से बाहर भाग चुका है. मध्य प्रदेश के प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्यजीव) जेएस चौहान ने का कहना है कि चीतों के लिए एक वैकल्पिक स्थान के लिए अनुरोध करते हुए राष्ट्रीय बाघ संरक्षण (NTCA) को एक पत्र लिखा है, पत्र में मांग की गई है कि वैकल्पिक स्थल पर निर्णय लें. यदि गांधी सागर अभयारण्य या नौरादेही वन्यजीव अभयारण्य जैसी अपनी साइटों को विकसित करना शुरू करते हैं तो ये इन वैकल्पिक स्थलों को तैयार करने में दो से तीन साल लगेंगे. इसलिए इन चीतों को सिलसिलेवार मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व (राजस्थान में) में छोड़ने के लिए अनुमति प्राप्त की जा रही है. इस संरक्षित क्षेत्र में 80 किमी की बाड़े हैं, जो पर्याप्त हैं.
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बार-बार कूनो की सीमा लांघ रहे चीते : वन विभाग के एक और अधिकारी का कहना है कि हम केएनपी में सभी 18 चीतों को जंगल में नहीं छोड़ सकते. वहीं, वन्यजीव विशेषज्ञों का कहना है कि एक चीते को अपनी आवाजाही के लिए 100 वर्ग किमी क्षेत्र की आवश्यकता होती है. वहीं, केएनपी के निदेशक उत्तम शर्मा ने कहा कि कोई भी वास्तव में नहीं जानता कि एक चीता को कितनी जगह की आवश्यकता होती है, क्योंकि सात दशक पहले ये चीते यहां विलुप्त हो गए थे. हाल ही में दो से तीन चीतों के बार -बार कूनो से बाहर भागने से भी वन विभाग की चिंताएं बढ़ी हैं.