भोपाल। मध्यप्रदेश में हुए 3 हजार करोड़ रूपए के ई-टेंडर घोटाले में तत्कालीन कमलनाथ सरकार के दौरान एफआईआर दर्ज की गई थी. उस वक्त बहुचर्चित ई-टेंडर घोटाले की जांच ने प्रदेश की राजनीति में खलबली मचा दी थी. लेकिन प्रदेश में सत्ता परिवर्तन होते ही इस बड़े घोटाले की जांच भी कछुआ चाल चल रही है. आलम ये है कि करीब एक साल बाद भी जांच एजेंसीज ने 42 टेंडरों से जुड़ी टेक्निकल रिपोर्ट ईओडब्ल्यू को नहीं भेजी है.
एक साल से अटकी रिपोर्ट
भारत सरकार की सेंट्रल एजेंसी इंडियन कंप्यूटर इमरजेंसी रिस्पांस टीम को लगभग एक साल पहले ईओडब्ल्यू ने 42 टेंडरों से जुड़े हार्ड डिस्क और फाइल्स जांच के लिए भेजी थीं. इन हार्ड डिस्क की तकनीकि जांच की जानी थी. लेकिन साल भर बाद भी भारत सरकार की एजेंसी ईओडब्ल्यू को इन 42 टेंडरों की टेक्निकल जांच रिपोर्ट नहीं भेजी है. इसे लेकर ईओडब्ल्यू के अधिकारी इंडियन कंम्यूटर इमरजेंसी रिस्पांस टीम एजेंसी के दो बार चक्कर लगा चुके हैं. छह महीने पहले भी ईओडब्ल्यू के अधिकारी इस संबंध में दिल्ली पहुंचे थे. लेकिन उन्हें रिपोर्ट नहीं दी गई. अधिकारियों को खाली हाथ ही लौटना पड़ा. माना जा रहा है कि अब फिर से ईओडब्ल्यू की टीम दिल्ली स्थित इंडियन कंप्यूटर इमरजेंसी रिस्पांस के दफ्तर जा सकती है.
टेक्निकल रिपोर्ट के बगैर आगे नहीं बढ़ सकती कार्रवाई
जब तक ये टेक्निकल रिपोर्ट ईओडब्ल्यू को नहीं मिलती है. इन मामलों में जांच आगे नहीं बढ़ सकती है. जबकि इन 42 टेंडरों की प्राथमिक जांच में ईओडब्ल्यू ने गड़बड़ी की पुष्टि की थी. जांच को आगे बढ़ाने के लिए ही इंडियन कंप्यूटर इमरजेंसी रिस्पांस टीम के डिजिटल दस्तावेज भेजे गए थे. लेकिन अब इन टेंडरों की जांच रूक गई है. जब तक इन टेंडरों की टेक्निकल रिपोर्ट ईओडब्ल्यू को नहीं मिल जाती तब तक इन टेंडरों को लेकर एफआईआर भी दर्ज नही की जा सकती है.
राजनेता और ब्यूरोक्रेट्स के कनेक्शन !
इन 42 टेंडर में नौकरशाहों और राजनेताओं का कनेक्शन सामने आ रहा है. जिन 42 टेंडरों में टेंपरिंग की गई, वो करोड़ों-अरबों रुपए के बताए जा रहे हैं. इनमें अधिकांश टेंडर के तहत प्रदेश के कई हिस्सों में धड़ल्ले से काम भी किए जा रहे हैं. ये टेंडर जल संसाधन, सड़क विकास निगम, नर्मदा घाटी विकास, नगरीय प्रशासन, नगर निगम स्मार्ट सिटी, मेट्रो रेल, जल निगम, एनेक्सी भवन समेत कई निर्माण काम करने वाले विभागों के हैं.
बताया जा रहा है कि, अरबों रुपये के इन टेंडरों में ऑस्मो आईटी सॉल्यूशन और एंटेरस सिस्टम कंपनी के जरिए छेड़छाड़ की गई है. इसमें कई दलाल और संबंधित विभागों के अधिकारी-कर्मचारी और राजनेता भी शामिल हैं. आरटीआई एक्टिविस्ट अजय दुबे का कहना है कि घोटाले की जांच में हो रही देरी का निश्चित तौर पर आरोपी फायदा उठा सकते हैं. लिहाजा इस मामले की जांच सीबीआई को सौंपनी चाहिए.
साल 2019 में हुई थी एफआईआर दर्ज
बीजेपी सरकार में हुए ई-टेंडर घोटाले को लेकर ईओडब्ल्यू ने 10 अप्रैल 2019 को 9 टेंडरों में हुई टेंपरिंग में एफआईआर दर्ज की थी. साथ ही कुछ आरोपियों को गिरफ्तार भी किया गया था. ईओडब्ल्यू की टीम को कुल 52 टेंडरों में से 42 टेंडरों में टेंपरिंग किए जाने के पुख्ता सबूत मिले थे. यह सभी टेंडर अक्टूबर 2017 से लेकर मार्च 2018 तक जारी किए गए थे. ईओडब्ल्यू ने चिन्हित 42 टेंडरों में टेंपरिंग को लेकर राज्स शासन और टेंडरों से जुड़े संबंधित विभागों को जानकारी भी भेजी थी. इसके बावजूद भी कोई कार्रवाई नहीं की गई. अब 42 टेंडरों की तकनीकी जांच भारत सरकार की एजेंसी इंडियन कंम्यूटर इमरजेंसी रिस्पांस टीम के पास अटकी पड़ी है.