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घर बैठे, कम कीमत पर होंगे सिकल सेल मरीजों के ब्लड टेस्ट, होम्योपैथी कालेज के प्रोफेसर ने किया अविष्कार

सिकल सेल की अनुवांशिक बीमारी के निदान में मध्य प्रदेश के एक हौम्योपैथी प्रोफेसर और उनकी टीम ने नई राह दिखाई है. भोपाल के डॉक्टर नाम्बीसन ने एक अविष्कार किया है जिससे घर बैठे कम कीमत पर सिकल सेल मरीजों की जांच हो सकेगी.

Blood test of sickle cell patients will be done at home at low cost
घर बैठे, कम कीमत पर होंगे सिकल सेल मरीजों के ब्लड टेस्ट
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Published : Jun 8, 2021, 9:15 PM IST

भोपाल। दुनिया भर में मुख्यतौर पर आदिवासी आबादी को होने वाली सिकल सेल की अनुवांशिक बीमारी के निदान में मध्य प्रदेश के एक हौम्योपैथी प्रोफेसर और उनकी टीम ने नई राह दिखाई है. आत्म निर्भर भारत योजना के तहत किए गए इस अविष्कार से अब पीड़ितों के ब्लड टेस्ट नाम मात्र की कीमत पर और कम समय पर उनके घर पर ही हो सकेंगे. ब्लड टेस्ट के इस अविष्कार को भारत सरकार के पोर्टल AGNII (Accelerating Growth of New India’s Innovations) के पोर्टल पर भी देखा जा सकता है.

5 मिनट से कम समय मिलेगा रिजल्ट

शासकीय हौम्योपैथी कालेज के प्रोफेसर डॉ. निशांत नाम्बीसन इस पद्धति के प्रमुख शोधकर्ता और अविष्कारक हैं. डॉ. निशांत नाम्बीसन बताते हैं कि उनके साथी और टीम इंस्टीट्यूट ऑफ इंस्ट्रूमेंटेशन एंड एप्लाइड फिजिक्स, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस, बैंगलोर के शोधकर्ताओं ने सिकल सेल एनीमिया के लिए एक नया रक्त परीक्षण उपकरण विकसित किया है. यह उपकरण 5 मिनट से भी कम समय में परीक्षण के परिणाम बता देता है, जो कि वर्तमान में उपयोग किए जा रहे परीक्षण तकनीक की लागत से 10 गुना सस्ता है और 10 गुना कम समय भी लेता है. डॉ. नाम्बीसन बताते हैं कि यह एक नई जैव-रासायनिक परीक्षण तकनीक है जो स्वदेशी रूप से विकसित पोर्टेबल पामटॉप रिचार्जेबल डिवाइस के साथ काम करता है. इसमें रक्त की एक बूंद का उपयोग होता है और इसे PoC (प्वाइंट ऑफ केयर) पर परीक्षण के लिए दूर-दराज गांव में भी आसानी से ले जाया जा सकता है. इससे जांच की प्रक्रिया और निदान तक पहुंचने में लगने वाले समय में कमी तो आती ही है, साथ ही परिवहन में होने वाले खर्च में भी कमी आती है. जो पीड़ित व्यक्ति के लिए जीवनदायी साबित होगा.

हर साल 2 लाख बच्चे होते हैं प्रभावित

भारत में आज दस लाख से अधिक लोगों को सिकल सेल की बीमारी है, और सबसे खतरनाक यह है कि हर साल लगभग 2 लाख बच्चे इस बीमारी के साथ पैदा होते हैं. डॉ. नाम्बीसन ने बताया कि सिकल सेल रोग (SCD), लाल रक्त कोशिकाओं का जन्मजात विकार है, जो एक प्रमुख सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या है. इसमें रोगी को तरह-तरह के असहनीय दर्द होते हैं. रोगी बार-बार बीमार होता है और अस्पताल में भर्ती होता रहता है. एक रिसर्ज के अनुसार पूरे विश्व में जितन रोगी सिकल सेल से पीड़ित हैं उसमें से 50 फीसदी सिर्फ भारत में है. दक्षिण-पूर्वी गुजरात से दक्षिण-पश्चिमी ओडिशा तक फैली सिकल सेल बेल्ट के कारण यह बीमारी मध्य भारत में सबसे ज्यादा फैली हुई है.

कहां गईं Vaccine की 10 हजार डोज, कोवीशील्ड के लिए 60 लाख चुकाने वाला अस्पताल भी गायब

पीढ़ी दर पीढ़ी चलती है बीमारी

डॉ. नाम्बीसन बताते हैं कि सिकल सेल एनीमिया एक जन्मजात और पीढ़ी दर पीढ़ी चलने वाली आनुवंशिक बीमारी है. इस बड़ी स्वास्थ्य समस्या से निपटने का एकमात्र तरीका है. ज्यादा से ज्यादा लोगों की सामूहिक जांच और रोगियों की तत्काल पहचान करना है. डॉ. नाम्बीसन ने बताया कि मध्य प्रदेश में ही सिकल सेल एनीमिया का सबसे अधिक बोझ है. आदिवासी इलाकों में सिकल सेल एनीमिया की जांच और इलाज में आने वाली दिक्कतों को नजदीक से देखने के बाद डॉक्टर नाम्बीसन ने आईआईएससी बैंगलोर में प्रोफेसर साई गोरथी से मुलाकात की, उनके आपसी सहयोग के माध्यम से, सिकल-सेल ट्रैट (एससीटी) और सिकल-सेल रोग (एससीडी) के बीच अंतर करने के लिए दुनिया का पहला प्वाइंट-ऑफ-केयर कंफर्मेटरी टेस्ट का आविष्कार किया गया. यह आविष्कार न केवल प्रक्रिया को आसान बना देगा बल्कि समय की बचत करेगा, और यह विकासशील देशों के साथ अविकसित देशों के लिए बहुत ही किफायती भी है.

भोपाल। दुनिया भर में मुख्यतौर पर आदिवासी आबादी को होने वाली सिकल सेल की अनुवांशिक बीमारी के निदान में मध्य प्रदेश के एक हौम्योपैथी प्रोफेसर और उनकी टीम ने नई राह दिखाई है. आत्म निर्भर भारत योजना के तहत किए गए इस अविष्कार से अब पीड़ितों के ब्लड टेस्ट नाम मात्र की कीमत पर और कम समय पर उनके घर पर ही हो सकेंगे. ब्लड टेस्ट के इस अविष्कार को भारत सरकार के पोर्टल AGNII (Accelerating Growth of New India’s Innovations) के पोर्टल पर भी देखा जा सकता है.

5 मिनट से कम समय मिलेगा रिजल्ट

शासकीय हौम्योपैथी कालेज के प्रोफेसर डॉ. निशांत नाम्बीसन इस पद्धति के प्रमुख शोधकर्ता और अविष्कारक हैं. डॉ. निशांत नाम्बीसन बताते हैं कि उनके साथी और टीम इंस्टीट्यूट ऑफ इंस्ट्रूमेंटेशन एंड एप्लाइड फिजिक्स, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस, बैंगलोर के शोधकर्ताओं ने सिकल सेल एनीमिया के लिए एक नया रक्त परीक्षण उपकरण विकसित किया है. यह उपकरण 5 मिनट से भी कम समय में परीक्षण के परिणाम बता देता है, जो कि वर्तमान में उपयोग किए जा रहे परीक्षण तकनीक की लागत से 10 गुना सस्ता है और 10 गुना कम समय भी लेता है. डॉ. नाम्बीसन बताते हैं कि यह एक नई जैव-रासायनिक परीक्षण तकनीक है जो स्वदेशी रूप से विकसित पोर्टेबल पामटॉप रिचार्जेबल डिवाइस के साथ काम करता है. इसमें रक्त की एक बूंद का उपयोग होता है और इसे PoC (प्वाइंट ऑफ केयर) पर परीक्षण के लिए दूर-दराज गांव में भी आसानी से ले जाया जा सकता है. इससे जांच की प्रक्रिया और निदान तक पहुंचने में लगने वाले समय में कमी तो आती ही है, साथ ही परिवहन में होने वाले खर्च में भी कमी आती है. जो पीड़ित व्यक्ति के लिए जीवनदायी साबित होगा.

हर साल 2 लाख बच्चे होते हैं प्रभावित

भारत में आज दस लाख से अधिक लोगों को सिकल सेल की बीमारी है, और सबसे खतरनाक यह है कि हर साल लगभग 2 लाख बच्चे इस बीमारी के साथ पैदा होते हैं. डॉ. नाम्बीसन ने बताया कि सिकल सेल रोग (SCD), लाल रक्त कोशिकाओं का जन्मजात विकार है, जो एक प्रमुख सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या है. इसमें रोगी को तरह-तरह के असहनीय दर्द होते हैं. रोगी बार-बार बीमार होता है और अस्पताल में भर्ती होता रहता है. एक रिसर्ज के अनुसार पूरे विश्व में जितन रोगी सिकल सेल से पीड़ित हैं उसमें से 50 फीसदी सिर्फ भारत में है. दक्षिण-पूर्वी गुजरात से दक्षिण-पश्चिमी ओडिशा तक फैली सिकल सेल बेल्ट के कारण यह बीमारी मध्य भारत में सबसे ज्यादा फैली हुई है.

कहां गईं Vaccine की 10 हजार डोज, कोवीशील्ड के लिए 60 लाख चुकाने वाला अस्पताल भी गायब

पीढ़ी दर पीढ़ी चलती है बीमारी

डॉ. नाम्बीसन बताते हैं कि सिकल सेल एनीमिया एक जन्मजात और पीढ़ी दर पीढ़ी चलने वाली आनुवंशिक बीमारी है. इस बड़ी स्वास्थ्य समस्या से निपटने का एकमात्र तरीका है. ज्यादा से ज्यादा लोगों की सामूहिक जांच और रोगियों की तत्काल पहचान करना है. डॉ. नाम्बीसन ने बताया कि मध्य प्रदेश में ही सिकल सेल एनीमिया का सबसे अधिक बोझ है. आदिवासी इलाकों में सिकल सेल एनीमिया की जांच और इलाज में आने वाली दिक्कतों को नजदीक से देखने के बाद डॉक्टर नाम्बीसन ने आईआईएससी बैंगलोर में प्रोफेसर साई गोरथी से मुलाकात की, उनके आपसी सहयोग के माध्यम से, सिकल-सेल ट्रैट (एससीटी) और सिकल-सेल रोग (एससीडी) के बीच अंतर करने के लिए दुनिया का पहला प्वाइंट-ऑफ-केयर कंफर्मेटरी टेस्ट का आविष्कार किया गया. यह आविष्कार न केवल प्रक्रिया को आसान बना देगा बल्कि समय की बचत करेगा, और यह विकासशील देशों के साथ अविकसित देशों के लिए बहुत ही किफायती भी है.

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