भोपाल। आजकल राज्य में चारों ओर कोरोना ही कोरोना का हल्ला मचा हुआ है. इस बीच राजधानी भोपाल से एक जन कल्याणकारी कदम की खबर सामने आई है. बता दें कि राजधानी भोपाल में कोरोना की आपाधापी के बीच एक पुनीत कार्य भी हुआ. थैलेसीमिया बीमारी से पीड़ित बच्चों के लिए रक्तदान शिविर लगाया गया.
थैलेसीमिया से पीड़ित बच्चों के लिए रक्तदान
एक तरफ जहां कोरोना का कहर जारी है जिसके वजह से लोग घर से बाहर नहीं निकल पा रहे हैं, वहीं दूसरी ओर ऐसी विषम परिस्थिति में भी थैलेसीमिया बच्चों को रक्तदान के लिए लोग बढ़-चढ़ कर हिस्सा ले रहे हैं. बता दें कि कोरोना संकटकाल में भोपाल की ब्लड बैंकों में रक्त की कमी के चलते गुरुनानक मंडल द्वारा ईदगाह हिल्स कम्युनिटी हॉल में कोरोना गाइडलाइन का पालन करते हुए रक्तदान शिविर का आयोजन किया गया था. रक्तदान शिविर में 47 स्वैच्छिक रक्तदाताओं ने रक्तदान किया.
खून फैक्ट्री में नहीं बनता, ये भगवान का दिया उपहार है
रक्तदान शिविर में थैलेसीमिया पीड़ित नीरज ने स्वयं आकर ब्लड की आवश्यकता बताई. नीरज के रक्त की आवश्यकता को शोएब अली ने अपना रोजा तोड़ तुरन्त रक्त मुहैया करवाया. इस अवसर पर अध्यक्ष राकेश कुकरेजा ने सभी 47 रक्तदाताओं को कोरोना योद्धा बताते हुए कहा कि रक्त किसी फैक्ट्री में नहीं बनता. यह वो उपहार है, जो हमें भगवान ने दिया है इसलिए रक्तदान अवश्य करें. रक्तदान शिविर में राकेश कुकरेजा ने सभी से अपील करते हुए कहा कि 18 साल से बड़े लोग रक्तदान जरूर करें क्योंकि 1 मई से वेक्सीन लगेगी तो आप 2 महीने तक रक्तदान नहीं कर सकते हैं. थैलेसीमिया बच्चे जो आपके रक्तदान पर ही जीवित रहते हैं ,अगर आप वैक्सीन लगवा लेंगे तो थैलेसीमिया बच्चों का जीवन कैसे चलेगा. कुकरेजा ने कहा कि इन बच्चों को हर 15 से 20 दिन में ब्लड की जरूरत होती है. आप आगे आएं और बच्चों के लिए रक्तदान अवश्य करें.
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शिविर में कोरोना योद्धाओं को किया गया सम्मानित
रक्तदान शिविर आयोजन के अवसर पर रक्त दाताओं और शिविर में सहयोग करने वाले पैरामेडिकल स्टाफ को कोरोना योद्धा के रूप में सम्मानित किया गया. उन्हें मास्क, फेस शील्ड, सेनिटाइजर, और शॉल देकर सम्मानित किया गया.
क्या है थैलेसीमिया बीमारी
थैलेसीमिया एक रक्त रोग है जो बच्चों को उनके माता-पिता से अनुवांशिक तौर पर मिलता है. इस रोग के होने पर शरीर में हीमोग्लोबिन बनने वाली प्रक्रिया में परेशानी होती है. इस कारण बच्चों में रक्तक्षीणता या रक्त की कमी के लक्षण प्रकट होते हैं. इसकी पहचान तीन महीने की उम्र के बाद ही होती है. इस बीमारी से ग्रसित बच्चे के शरीर में रक्त की भारी कमी होने लगती है जिसके कारण उसे बार-बार बाहरी खून चढ़ाने की आवश्यकता पड़ती है.