Gandhi Jayanti 2023: भोपाल भारत की अकेली रियासत मानी जाती है, जहां महात्मा गांधी नवाब हमीदुल्ला खां के सरकारी मेहमान बनकर आए थे. 1929 में भोपाल में तीन दिन नवाब साहब के मेहमान रहे बापू खादी की ऐसी अलख जगाकर गए कि रेशमी लिबासों में रहने वाले नवाब साहब भी खादी में दिखाई दिए थे. बापू के इसी दौरे में भोपालियों ने खादी और स्वदेशी को बढ़ावा देने अपनी ओर से एक हजार 35 रुपए दान भी दिए थे.
जब बापू के लिए राहत मंजिल में लगे खादी के पर्दे: 1929 मे जब बापू पहली बार भोपाल आए तो नवाब हमीदुल्ला खान ने राहत मंजिल में ठहराया था. बापू के आने के बाद भोपाल रियासत की रंगो रोगन इस मायने में बदल गई कि नवाब हमीदुल्ला खां से लेकर उनके स्टाफ तक सबने खादी पहनी. यहां तक की महल के पर्दे भी खादी के हो गए थे. रेशमी लिबास वाले नवाबी खानदान बापू के एहतराम में खादी का मुरीद हुआ था. भोपाल के इतिहास को करीब से जानने वाले इतिहासकार सैय्यद खालिद गनी कहते हैं. उस वक्त ये हुआ था कि नवाब साहब के महल के सारे पर्दे जितने उनका स्टाफ था, सब खादी पहने हुआ था.
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जब भोपालियों ने बापू को दिए एक हजार 35 रुपए: भोपाल की रियासत ने महात्मा गांधी के लिए 1929 में एक हजार 35 रुपए जुटाए थे. सिर्फ इसलिए कि बापू स्वदेशी के साथ खादी के प्रचार को और आगे बढ़ा सकें. ये पैसे भोपाल के लोगो ने चंदा करके जुटाए थे. सैय्यद खालिद गनी बताते हैं- "आप अंदाजा लगाइए कि उस समय एक हजार 35 रुपए की कया कीमत रही होगी. लेकिन इस तादात में पैसा जुटाया था भोपाल के लोगों ने कि बापू स्वदेशी और खादी के काम को आगे बढ़ा सकें. उनके इस दौरे से यहां लोगों में वाकई बड़ा बदलाव आया. इखलाक मोहम्मद खां और इनायतउलला खां ये दो शख्सियत ऐसी थी कि जिन्होने बापू के दौरे के बाद खादी को ऐसे गले लगाया कि उम्र भर खादी ही पहनी.
बेनजीर मैदान में हुई थी प्रार्थना सभा: बापू के आने पर भोपाल में प्रार्थना सभा बेनजीर मैदान में रखी गई थी. तमाम शहर के लोग बेनजीर मैदान में ही जुटे थे. सैयद खालिद गनी कहते हैं, "बेनजीर मैदान में रखी गई थी प्रार्थना सभा. उनके साथ दौरे पर आए मीरा बेन सीएफ एन्डूज माधव भाई देसाई, जमनालाल बजाज भी प्रार्थना सभा मे गए थे. गनी साहब बताते हैं, "इसके बाद एक बार और महात्मा गांधी का भोपाल से गुजरना हुआ. बताया जाता है कि उस समय वे वर्धा जा रहे थे. 1931 का बरस था वो. लेकिन बापू भोपाल उतरे नहीं. भोपालियों ने स्टेशन पहुंचकर ही उनका स्वागत किया था. उनसे मुलाकात की थी.