भोपाल। चुनावी सरगर्मियों पर विराम लगाते हुए, चुनाव आयोग ने आगामी विधानसभा चुनावों को लेकर तारीखों का ऐलान कर दिया है. यानी अगले महीने की 17 नवंबर को मध्यप्रदेश की जनता अपने मत का इस्तेमाल कर राज्य की 16वीं विधानसभा को चुनेंगी. इसके बाद से अगले पांच साल के लिए प्रदेश की नई सरकार का गठन हो जाएगा. एमपी में आज 37 दिन बाद चुनाव होंगे. अब सभी पार्टियां चुनावी बिगुल के ऐलान के बाद राजीनितक रूप से एक्शन मोड में आ गई हैं. प्रदेश की 230 विधानसभा सीटों पर 5 करोड़ से ज्यादा मतदाता राज्य की नई सरकार का फैसला करेंगे. ऐसे में हम आपको मध्यप्रदेश विधानसभा से जुड़े कुछ फैक्ट्स बता रहे हैं.
(क्या आपको पता है, मध्यप्रदेश पुनर्गठन से पहले कितनी विधानसभाएं हुआ करती थी, तो आइए जानते हैं.)
क्या कहते हैं इतिहास के पन्ने: बात, लोकतांत्रिक भारत के पहले कदम से पहले की, यानि 15 अगस्त 1947 से पहले देश में कई छोटी बड़ी रियासतें हुआ करती थी. देश एक राष्ट्र के रूप में अस्तित्व में आया था. देश निर्माण की इसी परंपरा को आगे बढ़ाते हुए, स्वतंत्र भारत में सभी रियासतों को विलीन और एकीकृत किया गया था. इसके बाद 26 जनवरी 1950 को देश में संविधान लागू किए गए. 1952 में पहली बार देश में आम चुनाव हुए. इसके बाद ही संसद और विधानमंडल एक्टिव हुए, यानी सरकार की कार्यप्रणाली शुरू हुई. "इसके बाद देश में राज्यों के पुनर्गठन की प्रक्रिया शुरू हुई और 1956 को मुल्क के सामने एक नया राज्य यानी मध्यप्रदेश अस्तित्व में आया."
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कैसे बना मध्यप्रदेश: देश की तरह मध्यप्रदेश के इलाके में भी कई रियासते थीं. जिन घटक राज्यों को मिलाकर प्रदेश का पुनर्गठन किया, उनमें मध्यप्रदेश, मध्यभारत, विन्ध्यप्रदेश और भोपाल थे. इनकी अपनी-अपनी विधानसभाएं थी. पुनर्गठन के बाद ये सभी चारों विधानशभा एक विधानसभा में समाहित कर दी घई. यानी आज की मप्र विधानसभा साल 1 नवंबर 1956 को पहली बार अस्तित्व में आई. इसका पहला और अंतिम अधिवेशन 17 दिसंबर 1956 से 17 जनवरी 1957 के बीच हुआ.
आइए जानते हैं, इन घटक राज्यों की विधानसभा से जुड़े फैक्ट्स...
विन्ध्यप्रदेश की विधानसभा: बात 4 अप्रैल 1948 की है. तब विन्ध्यप्रदेश की स्थापना हुई. इसे राज्यों की बी कैटेगिरी रखा गया. तब इस राज्य की कमान मार्तण्ड सिंह को सौंपी, इसके बाद 1950 में इसकी कैटेगिरी बी से सी कर दी गई. 1952 में आम चुनाव हुए. यहां विधानसभा में 60 सदस्य चुने गए. इसके पहले अध्यक्ष शिवानंद थे. 1 मार्च 1952 को राज्य में उप राज्यपाल का प्रदेश बना दिया. तब इसके सीएम शंभूनाथ शुक्ल को बनाया गया. इस विधानसभा की पहली बैठक 21 अप्रैल 1952 को हुई. इसका कार्यकाल लगभग साढ़े चार साल चला, इसमें 170 बैठकों का आयोजन हुआ. इस विधानसभा के उपाध्यक्ष श्याम सुंदर श्याम थे.
भोपाल की विधानसभा: शुरुआती आम चुनाव से पहले भोपाल स्टेट केंद्र शासन के मुख्य कमिश्नर संचालित करते थे. इस राज्य को (S) कैटेगिरी का दर्जा दिया गया. इस विधानसभा में 30 मेंबर्स थे. इनमें 6 अनुसूचित जाति और 1 सदस्य अनुसूचित जनजाति से था. इसके अलावा 24 सामान्य इलाकों की सीटें थीं. इन तीस चुनावी इलाकों में 16 एक सदस्यीय और 7 दो सदस्यीय थे. आम चुनाव के बाद प्रक्रिया के तौर पर इस विधानसभा का गठन हुआ था. भोपाल विधानसभा का कार्यकाल मार्च 1952 से अक्टूबर 1956 तक चला. ये कार्यकाल भी साढ़े चार साल रहा. इस के पहले मुख्यमंत्री डॉ. शंकरदयाल शर्मा थे. साथ ही अध्यक्ष सुल्तान मोहम्मद खान और उपाध्यक्ष लक्ष्मीनारायण अग्रवाल थे.
मध्यभारत की विधानसभा: साल 1948 में ग्वालियर, इंदौर और मालवा रियासतों को मिलाकर मध्यभारत ईकाई की स्थापना की गई. इसमें ग्वालियर रियासत सबसे बड़ी थी. इसी वजह से तबके ग्वालियर रियासत के शासक जीवाजी राव सिंधिया को मध्यभारत का आजीवन राज प्रमुख (स्टेट चीफ) बनाया गया। तब ग्वालियर के मुख्यमंत्री लीलाधरह जोशी को पहला मुख्यमंत्री बनाया गया. इस विधानसभा के मंत्रीमंडल ने 4 जून 1948 को शपथ ली. यह विधानसभा 31 अक्टूबर 1956 तक रही. आम चुनावों में इसकी 99 सीटों पर मतदान हुआ. मध्यभारत को 59 एक सदस्यीय क्षेत्र और 20 द्विसदस्यीय इलाके में बांटे गए. कुल 99 जगह पर 17 अनुसूचित जाति, और 12 अनुसूचित जनजाति के लिए सुरक्षित रखे गए. इसका पहला अधिवेशन 17 मार्च 1952 को ग्वालियर में किया गया. इसका कार्यकाल लगभग साढ़े चार साल रहा. इसके विधानसभा अध्यक्ष पटवर्धन और उपाध्यक्ष विवि सर्वटे थे.
सेंट्रल प्रॉविन्सेंस एंड बरार विधानसभा: आजादी के बाद और आम चुनाव से पहले एक और राज्य अस्तित्व में आया. ये राज्य महाकौशल, छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र के बरार इलाके को मिलाकर बनाया गया. इस राज्य का नाम सेंट्रल प्रॉविनेंस एंड बरार नाम रखा गया. ये आज का पूर्व मध्यप्रदेश का इलाका है.