भोपाल। मध्य प्रदेश में चुनाव में जीत के लिए सियासी पार्टियों का जोर जातिगत समीकरणों पर होता है. कौन सा मुद्दा उनके लिए फायदे का सौदा साबित होगा, इन्ही गणितों को देखते हुए पार्टियों का अपना एजेंडा होता है. एमपी में इस बार बीजेपी चुनावों के पहले चुनावी समीकरणों को देखते हुए आदिवासी कार्ड का जमकर इस्तेमाल कर रही है. इस बार बीजेपी का निशाना कमलनाथ हैं. सत्ताधारी पार्टी की कोशिश है कि आदिवासियों का प्रेम कांग्रेस पर नहीं बल्कि बीजेपी पर उमड़े.
आदिवासी रानी पर हबीबगंज स्टेशन का नाम: कमलापति राजधानी भोपाल में पीएम मोदी आए और उन्होंने हबीबगंज स्टेशन का नाम बदलकर रानी कमलापति कर दिया. शिवराज सरकार ने भी रानी कमलापति की तारीफें और उनके कसीदे पढ़ने में कोई कोर कसर नहीं रखी. अब एक बार फिर रानी कमलापति को सियासी नफे नुकसान के लिए हैं सामने लाया जा रहा है.
गोंविद सिंह के खिलाफ खोला मोर्चा: दरअसल नेता प्रतिपक्ष गोविंद सिंह ने राजा और रानियों को लेकर बयान दिया था कि ''राजा रानियों ने दलितों का शोषण किया था. साथ ही कहा कि बीजेपी पुरानों नामों को बदलकर नया नामकरण कर रही है. रानी कमलापति को कौन जानता था.'' इसी मसले पर बीजेपी सड़कों पर उतर आई है. सबसे पहले सीएम शिवराज सिंह ने गोंविद सिंह के खिलाफ मोर्चा खोला और सोनिया गांधी को मामले में घसीट दिया. फिर बीजेपी युवा मोर्चा ने मोर्चा संभालते हुए गोविंद सिंह का पुतला फूंका और उनपर कार्रवाई की मांग कर डाली.
बीजेपी गौंड रानी के मुद्दे की आग को बकरार रखना चाहती है: पिछले विधानसभा चुनावों में बीजेपी के पास से आदिवासी वोट बैंक खिसक गया था. इस बार केंद्रीय हाईकमान के साफ निर्देश हैं कि हर हाल में आदिवासी वोटर बीजेपी का होना चाहिए. जैसे की गुजरात में हुआ. पीएम मोदी भी यहां आ चुके हैं. गोंड रानी कमलापति के नाम पर स्टेशन का नाम रखा गया. खुद पीएम मोदी ने नामकरण कर जनता को संबोधित किया. अब इस बार फिर बीजेपी को मौका मिल गया है. पार्टी पूरी तरह से रानी कमलापति का अपमान बताकर आदिवासी वोट बैंक को कांग्रेस से दूर करना चाहेगी. लिहाजा बीजेपी के तमाम नेताओं को संदेश दे दिया है कि कमलापति का अपमान कांग्रेस ने किया है. ये अपमान करके कांग्रेस ने न सिर्फ कमलापति का अपमान किया है कि बल्कि आदिवासियों का अपमान किया है.
आदिवासियों की 90 से ज्यादा सीटें करती हैं प्रभावित: विधानसभा 2023 के समीकरण को लेकर आदिवासी वोट बैंक पर बीजेपी और कांग्रेस की निगाहें टिकी हुई हैं. प्रदेश में विधानसभा की 230 सीट में से 47 आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित हैं. लेकिन करीब 90 सीट पर आदिवासी वोटरों का खासा दखल है. प्रदेश में आदिवासियों की कुल जनसंख्या 2 करोड़ से ज्यादा है. 2018 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को आदिवासी बाहुल्य क्षेत्रों में खासा सपोर्ट मिला था. उसने 47 में से 30 आदिवासी सीटें जीती थीं तो वहीं बीजेपी को सिर्फ 16 सीटें ही मिली थीं. 2013 के विधानसभा चुनाव में 47 में से भाजपा ने 31 सीटें जीती थीं. कांग्रेस के खाते में सिर्फ 15 सीटें ही आयी थीं.