ETV Bharat / state

Bhopal Gas Tragedy: पीड़ितों के लिए लड़ रहे NGO सुप्रीम कोर्ट के फैसले से नाराज, सरकार से मुआवजे की मांग की - bhopal gas tragedy compensation from government

भोपाल गैस त्रासदी मामले में पीड़ितों की लड़ाई लड़ रहे गैर सरकारी संगठनों (NGO) ने प्रभावितों की दूसरी पीढ़ी को न्याय दिलाने का फैसला लिया है. सुप्रीम कोर्ट के फैसले से नाराज NGO's ने अब सरकार से मुआवजे की मांग की है.

bhopal gas tragedy ngo angry
भोपाल गैस त्रासदी
author img

By

Published : Mar 20, 2023, 9:14 PM IST

Updated : Mar 20, 2023, 10:19 PM IST

सुप्रीम कोर्ट के फैसले से नाराज गैस पीड़ित

भोपाल। 1984 के भोपाल गैस त्रासदी मामले में पीड़ितों के लिए मुआवजे का मसला खत्म होता नहीं दिख रहा है. पीड़ितों के लिए संघर्ष कर रहे स्वयंसेवी संगठनों द्वारा यूनियन कार्बाइड कॉर्पोरेशन (UCC) की उत्तराधिकारी फर्मों से 7 हजार 844 करोड़ रुपए की अतिरिक्त मांग वाली केंद्र की उपचारात्मक याचिका को उच्चतम न्यायालय ने खारिज कर दिया है. इस फैसले पर नाराजगी जताते हुए NGO's ने मांग की है कि सरकार ही अब पीड़ितों को पर्याप्त मुआवजा दे.

नहीं मिला न्याय: भोपाल गैस त्रासदी हादसे के पीड़ित संगठनों ने ऑनलाइन उपलब्ध कराए गए सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर अपनी प्रतिक्रिया दी है. इन्होंने फैसले में कई गलतियां होने की बात कही है. इनका कहना है कि जजों का झुकाव पहले से ही यूनियन कार्बाइड कॉर्पोरेशन (UCC) के पक्ष में था. बता दें कि गैस पीड़ितों के लिए अतिरिक्त मुआवजे की याचिका को बेंच ने बीती 14 मार्च को खारिज कर दिया था.

एनजीओ कर रहे मदद: शीर्ष अदालत ने पिछले हफ्ते गैस त्रासदी के पीड़ितों को अधिक मुआवजा देने के लिए यूसीसी की उत्तराधिकारी फर्मों से अतिरिक्त 7 हजार 844 करोड़ रुपए की मांग वाली केंद्र की उपचारात्मक याचिका को खारिज कर दिया था. इस हादसे में 3 हजार से अधिक लोग मारे गए थे और पर्यावरणीय क्षति भी हुई थी. पीड़ितों का प्रतिनिधित्व करने वाले गैर सरकारी संगठन (NGO) भी सक्षम अदालतों में जीवित बचे लोगों की दूसरी पीढ़ी के दावों को लेकर केस लड़ रहे हैं.

गैस त्रासदी मामले में न्यायालय का इग्नोरेंस: भोपाल ग्रुप फॉर इंफॉर्मेशन एंड एक्शन की रचना ढींगरा ने पीटीआई-भाषा को बताया कि हम कई मामलों में सुधारात्मक याचिका पर 14 मार्च के फैसले की कड़ी निंदा करते हैं. अब हम सरकार से पीड़ितों को अतिरिक्त राहत के साथ मुआवजा देने की मांग करेंगे. उन्होंने कहा कि संगठन जीवित बचे लोगों की दूसरी पीढ़ी की ओर से उनके लिए न्याय पाने सक्षम अदालतों में दावे दायर करने पर भी विचार कर रहा है. उन्होंने दावा किया कि न्यायाधीशों ने इस बुनियादी तथ्य के बारे में "अनभिज्ञता" प्रदर्शित की है कि UCC के खतरनाक कचरे से भोपाल में भूजल का प्रदूषण 1984 की गैस आपदा से पहले का है. उन्होंने इस बात को नजरअंदाज किया है कि मौजूदा संदूषण UCC द्वारा आपदा से पहले और बाद में जहरीले कचरे के असुरक्षित डंपिंग के कारण हैं. ढींगरा ने आरोप लगाया कि अदालत द्वारा जमीन को उसकी मूल स्थिति में वापस करने की शर्त को भी नजरअंदाज कर दिया गया, जिसके तहत कंपनी ने पट्टे पर जमीन ली थी. रशीदा बी अध्यक्ष, भोपाल गैस पीड़ित महिला स्टेशनरी कर्मचारी संघ ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने उन तर्कों को नजरअंदाज कर दिया कि UCC ने फरवरी 1989 में आपदा को लेकर मामले को निपटाने के लिए धोखाधड़ी के तरीकों का इस्तेमाल किया था.

भोपाल गैस त्रासदी से जुड़ी अन्य खबरें

मुआवजा मिलना पूरी तरह झूठ: रशीदा बी ने कहा कि हमारे वकील ने वास्तव में UCC के प्रतिनिधि के दस्तावेजी साक्ष्य प्रस्तुत किए थे. जो भारत सरकार के अधिकारियों को यह विश्वास दिलाने के लिए गुमराह कर रहे थे कि जीवित बचे लोगों में से अधिकांश को केवल अस्थायी चोटें आई हैं. इस बारे में अदालत के निर्णय में एक शब्द भी नहीं है. भोपाल गैस पीड़ित निराश्रित पेंशनभोगी संघर्ष मोर्चा के बालकृष्ण नामदेव ने कहा कि अदालत का यह दावा कि भोपाल के पीड़ितों को मोटर वाहन अधिनियम के तहत प्रदान किए गए मुआवजे की तुलना में 6 गुना अधिक मुआवजा मिला है, पूरी तरह झूठा है. गौरतलब है कि न्यायमूर्ति संजय किशन कौल की अध्यक्षता वाली 5 न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने 14 मार्च को फैसला सुनाते हुए कहा कि समाधान के 2 दशक बाद केंद्र द्वारा इस मुद्दे को उठाने का कोई औचित्य नहीं था.

34 पन्नों का फैसला: केंद्र ने UCC की उत्तराधिकारी फर्मों से 7,844 करोड़ और 715 करोड़ रुपए से अधिक की मांग की थी, जो 1989 में समझौते के हिस्से के रूप में अमेरिकी कंपनी से मिला था. भोपाल गैस पीड़ित महिला पुरुष संघर्ष मोर्चा के अध्यक्ष नवाब खान ने कहा कि 34 पन्नों के फैसले में कहीं भी ऐसा कोई संकेत नहीं है कि न्यायाधीश लीक हुई गैस के संपर्क में आने के चिकित्सा परिणामों पर वैज्ञानिक तथ्यों से दूर से ही परिचित हैं. उन्होंने दावा किया कि फैसले में ऐसा कुछ भी नहीं था, जिससे यह दिखाया जा सके कि न्यायाधीशों को भोपाल के जीवित बचे लोगों के बीच जोखिम से प्रेरित बीमारियों की पुरानी प्रकृति की कोई समझ थी.

1984 में घटी थी गैस त्रासदी: नौशीन खान ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट पीड़ितों के प्रति सहानुभूति नहीं रखता था. उन्होंने गैस त्रासदी पीड़ियों का प्रतिनिधित्व करने वाले संगठनों के प्रति अदालत के रवैये की आलोचना भी की. बता दें कि डॉउ केमिकल्स के स्वामित्व वाले यूसीसी ने 1989 में यूनियन कार्बाइड कारखाने से 2 और 3 दिसंबर 1984 की दरमियानी रात को जहरीली मिथाइल आइसोसाइनेट गैस के रिसाव के बाद 470 मिलियन अमरीकी डालर का मुआवजा दिया है.

सुप्रीम कोर्ट के फैसले से नाराज गैस पीड़ित

भोपाल। 1984 के भोपाल गैस त्रासदी मामले में पीड़ितों के लिए मुआवजे का मसला खत्म होता नहीं दिख रहा है. पीड़ितों के लिए संघर्ष कर रहे स्वयंसेवी संगठनों द्वारा यूनियन कार्बाइड कॉर्पोरेशन (UCC) की उत्तराधिकारी फर्मों से 7 हजार 844 करोड़ रुपए की अतिरिक्त मांग वाली केंद्र की उपचारात्मक याचिका को उच्चतम न्यायालय ने खारिज कर दिया है. इस फैसले पर नाराजगी जताते हुए NGO's ने मांग की है कि सरकार ही अब पीड़ितों को पर्याप्त मुआवजा दे.

नहीं मिला न्याय: भोपाल गैस त्रासदी हादसे के पीड़ित संगठनों ने ऑनलाइन उपलब्ध कराए गए सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर अपनी प्रतिक्रिया दी है. इन्होंने फैसले में कई गलतियां होने की बात कही है. इनका कहना है कि जजों का झुकाव पहले से ही यूनियन कार्बाइड कॉर्पोरेशन (UCC) के पक्ष में था. बता दें कि गैस पीड़ितों के लिए अतिरिक्त मुआवजे की याचिका को बेंच ने बीती 14 मार्च को खारिज कर दिया था.

एनजीओ कर रहे मदद: शीर्ष अदालत ने पिछले हफ्ते गैस त्रासदी के पीड़ितों को अधिक मुआवजा देने के लिए यूसीसी की उत्तराधिकारी फर्मों से अतिरिक्त 7 हजार 844 करोड़ रुपए की मांग वाली केंद्र की उपचारात्मक याचिका को खारिज कर दिया था. इस हादसे में 3 हजार से अधिक लोग मारे गए थे और पर्यावरणीय क्षति भी हुई थी. पीड़ितों का प्रतिनिधित्व करने वाले गैर सरकारी संगठन (NGO) भी सक्षम अदालतों में जीवित बचे लोगों की दूसरी पीढ़ी के दावों को लेकर केस लड़ रहे हैं.

गैस त्रासदी मामले में न्यायालय का इग्नोरेंस: भोपाल ग्रुप फॉर इंफॉर्मेशन एंड एक्शन की रचना ढींगरा ने पीटीआई-भाषा को बताया कि हम कई मामलों में सुधारात्मक याचिका पर 14 मार्च के फैसले की कड़ी निंदा करते हैं. अब हम सरकार से पीड़ितों को अतिरिक्त राहत के साथ मुआवजा देने की मांग करेंगे. उन्होंने कहा कि संगठन जीवित बचे लोगों की दूसरी पीढ़ी की ओर से उनके लिए न्याय पाने सक्षम अदालतों में दावे दायर करने पर भी विचार कर रहा है. उन्होंने दावा किया कि न्यायाधीशों ने इस बुनियादी तथ्य के बारे में "अनभिज्ञता" प्रदर्शित की है कि UCC के खतरनाक कचरे से भोपाल में भूजल का प्रदूषण 1984 की गैस आपदा से पहले का है. उन्होंने इस बात को नजरअंदाज किया है कि मौजूदा संदूषण UCC द्वारा आपदा से पहले और बाद में जहरीले कचरे के असुरक्षित डंपिंग के कारण हैं. ढींगरा ने आरोप लगाया कि अदालत द्वारा जमीन को उसकी मूल स्थिति में वापस करने की शर्त को भी नजरअंदाज कर दिया गया, जिसके तहत कंपनी ने पट्टे पर जमीन ली थी. रशीदा बी अध्यक्ष, भोपाल गैस पीड़ित महिला स्टेशनरी कर्मचारी संघ ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने उन तर्कों को नजरअंदाज कर दिया कि UCC ने फरवरी 1989 में आपदा को लेकर मामले को निपटाने के लिए धोखाधड़ी के तरीकों का इस्तेमाल किया था.

भोपाल गैस त्रासदी से जुड़ी अन्य खबरें

मुआवजा मिलना पूरी तरह झूठ: रशीदा बी ने कहा कि हमारे वकील ने वास्तव में UCC के प्रतिनिधि के दस्तावेजी साक्ष्य प्रस्तुत किए थे. जो भारत सरकार के अधिकारियों को यह विश्वास दिलाने के लिए गुमराह कर रहे थे कि जीवित बचे लोगों में से अधिकांश को केवल अस्थायी चोटें आई हैं. इस बारे में अदालत के निर्णय में एक शब्द भी नहीं है. भोपाल गैस पीड़ित निराश्रित पेंशनभोगी संघर्ष मोर्चा के बालकृष्ण नामदेव ने कहा कि अदालत का यह दावा कि भोपाल के पीड़ितों को मोटर वाहन अधिनियम के तहत प्रदान किए गए मुआवजे की तुलना में 6 गुना अधिक मुआवजा मिला है, पूरी तरह झूठा है. गौरतलब है कि न्यायमूर्ति संजय किशन कौल की अध्यक्षता वाली 5 न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने 14 मार्च को फैसला सुनाते हुए कहा कि समाधान के 2 दशक बाद केंद्र द्वारा इस मुद्दे को उठाने का कोई औचित्य नहीं था.

34 पन्नों का फैसला: केंद्र ने UCC की उत्तराधिकारी फर्मों से 7,844 करोड़ और 715 करोड़ रुपए से अधिक की मांग की थी, जो 1989 में समझौते के हिस्से के रूप में अमेरिकी कंपनी से मिला था. भोपाल गैस पीड़ित महिला पुरुष संघर्ष मोर्चा के अध्यक्ष नवाब खान ने कहा कि 34 पन्नों के फैसले में कहीं भी ऐसा कोई संकेत नहीं है कि न्यायाधीश लीक हुई गैस के संपर्क में आने के चिकित्सा परिणामों पर वैज्ञानिक तथ्यों से दूर से ही परिचित हैं. उन्होंने दावा किया कि फैसले में ऐसा कुछ भी नहीं था, जिससे यह दिखाया जा सके कि न्यायाधीशों को भोपाल के जीवित बचे लोगों के बीच जोखिम से प्रेरित बीमारियों की पुरानी प्रकृति की कोई समझ थी.

1984 में घटी थी गैस त्रासदी: नौशीन खान ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट पीड़ितों के प्रति सहानुभूति नहीं रखता था. उन्होंने गैस त्रासदी पीड़ियों का प्रतिनिधित्व करने वाले संगठनों के प्रति अदालत के रवैये की आलोचना भी की. बता दें कि डॉउ केमिकल्स के स्वामित्व वाले यूसीसी ने 1989 में यूनियन कार्बाइड कारखाने से 2 और 3 दिसंबर 1984 की दरमियानी रात को जहरीली मिथाइल आइसोसाइनेट गैस के रिसाव के बाद 470 मिलियन अमरीकी डालर का मुआवजा दिया है.

Last Updated : Mar 20, 2023, 10:19 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.