भोपाल। नाम शेख सलीम हैं, सुन्नी मुसलमान हैं, शिव भक्त हैं. जुमे को बिना नागा पांच वक्त की नमाज पढ़ते हैं और पूरे सावन सोमवार का व्रत रखते हैं. इतने पर ही हैरतजदा हो गए होंगे आप. लेकिन शेख सलीम की एक शिनाख्त और हैं, सलीम सांपवाले भी हैं. एमपी के पहले राज्य शासन से अधिकृत सांप पकड़ने वाले. अब तक दो लाख चालीस हजार से ज्यादा सांप पकड़ कर जंगलों में छोड़ चुके हैं. चार बार कोबरा काट चुका है, लेकिन बाल बांका नहीं हुआ. कहते हैं जहरीले से जहरीला सांप भी मेरे आगे नर्वस हो जाता है. कैसे सांपवाले बनें सलीम, शिवभक्त बनने के पीछे की कहानी है क्या है, सोमवार का व्रत रखना क्यों शुरु किया, कितना मुश्किल है हर दिन जान जोखिम में डालने में वाला ये काम. जानिए उन्हीं की जुबानी...
मिलिए शिव भक्त सलीम से: सलीम के माथे पर चंदन का तिलक हाथों में बेलपत्र देखकर हैरान होना लाजिमी है. लेकिन ये उनकी निजी आस्था का सवाल है जो 1990 में उस वक्त से ही बन गई जब शेख सलीम ने सर्प दंश का इलाज शुरु किया था. यही राह आगे चलकर सांपवाले की पहचान के साथ सांप पकड़ने के काम में भी ले आई. सलीम बताते हैं ''1990 से सांप पकड़ना शुरु किया आज तो करीब 33 साल हो गए.'' शिव भक्त कैसे बन गए, इस सवाल के जवाब में सलीम कहते हैं ''सब उनकी ही कृपा है, भोले के साथ ही तो विराजते हैं नाग देवता, तो उनका भक्त बन गया. यहां मंदिर भी बनवाया और और सावन भर सोमवार का व्रत रखता हूं, पूजा करता हूं. नागपंचमी पर भी खास पूजा होती है, हमारे यहां भंडारा होता है. मेरे परिवार को भी शिवभक्त होने में कोई एतराज नहीं है. बाकी मैं ये मानता हूं पहले तो मैं इंसान हूं.''
दो लाख पैंतालीस हजार सांप जंगल में छोड़े: कोई रिकार्ड तो नहीं है लेकिन रिकार्ड से कम भी नहीं. सलीम अब तक दो लाख पैंतालीस हजार से ज्यादा सांप जंगल में छोड़ चुके हैं. दुनिया की हर जाति का सांप सलीम के हाथों में आया है. चार बार कोबरा ने इन्हें डसा भी. जान पर बन आई लेकिन कहते हैं कि ''ऊपरवाले की ऐसी कृपा रही कि आपके सामने जिंदा बैठा हूं.'' सलीम मध्यप्रदेश के पहले ऐसे सर्प विशेषज्ञ हैं जिन्हें नगर निगम में सरकारी नौकरी दी गई है इस काम के लिए. सलीम भोपाल ही नहीं प्रदेश के अलग अलग हिस्सों से भी सांप पकड़ने जाते हैं जिन्हें बाद में वन विहार के स्नैक पार्क में छोड़ते हैं. इसके पहले ये सांप वो पचमढ़ी में मटकुली के जंगलो में छोड़ा करते थे. सलीम बताते हैं ''सुविधा कुछ भी नहीं है. न गाड़ी है मेरे पास, न सांप पकड़ने की कोई पेटी है. थैले में पकड़कर लाता हूं. बिना सुविधा के कब तक ऐसे दौड़ पाऊंगा.''
हम सांप की जमीन भी निगल गए: सलीम सांपवाले की बदौलत ये बदलाव आया कि लोगों ने सांप पकड़वाना शुरु किया, वरना सांप मार दिए जाते थे. उनकी आंखों पर वार होते थे. सलीम कहते हैं ''मैंने समझाया कि सांप हमारे दोस्त हैं, खेती किसानी के लिए वो कितने जरुरी हैं.'' पर सलीम अफसोस भी जताते हैं ''देखिए सांप के हिस्से का घर उसकी जमीन इंसानों ने निगल ली है. हर तरफ तो कब्जा किए बैठे हैं इंसान. अब सांप फिर शहरों में घरों में निकलेंगे नहीं तो क्या होगा.''