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Child Death मानवता भी कितनी बार होगी शर्मसार, इंसान हो गया बेबस और लाचार - भोपाल मानवता शर्मसार

"देख तेरे इंसान की हालत क्या हो गई भगवान, कितना बदल गया इंसान". मशहूर गीतकार प्रदीप ने यह गीत गाया तो करीब चार दशक पूर्व था, मगर उस बदले हुए इंसान की तस्वीरें अब सामने आ रही हैं. इस गीत को सुनकर ऐसा लगता है कि प्रदीप जी को भविष्य में होने वाली अमानवीय घटनाओं का एहसास उसी समय हो गया था. ऐसी ही मानवता को शर्मसार करने वाली घटनाएं हुईं हैं सिंगरौली, मुरैना और दमोह में. इन घटनाओं के बारे में जानकर मानवता भी जार-जार रोने लगेगी. (child death) (how many times will humanity be ashamed) (innocent child body in diggy of motorcycle)

how many times will humanity be ashamed
मानवता भी कितनी बार होगी शर्मसार
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Published : Oct 19, 2022, 6:42 PM IST

भोपाल। अच्छा हुआ जो तुमने इस दुनिया में आंखे खोलने से पहले ही मुंह मोड़ लिया. जो दुनिया तुम्हें वक्त रहते जिंदगी न दे पाई. न मौत के बाद आखिरी सफर का कोई इंतजाम था उसके पास. मानवता भी कितनी बार शर्मसार होगी. पत्थर रखिए अपने सीने पर और उस बाप की हिम्मत को सलाम कीजिए कि जिसने अपने मासूम बच्चे की लाश को मोटरसाईकिल की डिग्गी में सहेजना पड़ा. इलाज के लिए एक राज्य से दूसरे राज्य और अस्पताल दर अस्पताल दौड़ा रहे सिस्टम में जिंदगी की कीमत तो थी ही नहीं, लाश को घर ले जाने एम्बुलेंस भी नहीं मिल पाई. घटना सिंगरौली जिले की है. लेकिन पहली नहीं मुरैना में आठ बरस के बच्चे ने दो बरस के भाई की लाश को शव वाहन के लिए दो घंटे सड़क पर संभाला था. दमोह में कचरा गाड़ी में लाश अंतिम संस्कार के लिए पहुंचाई गई थी. (child death) (how many times will humanity be ashamed) (innocent child body in diggy of motorcycle)

जहां खिलौने होने थे वहां रखी थी मासूम की लाशः स्वास्थ्य सेवाओं का डंका बजाते यूपी और एमपी की कलई खोलती है ये घटना. यूपी के सोनभद्र जिले के रहने वाले दिनेश अपनी पत्नि की डिलेवरी के लिए एमपी के सिंगरौली आए. फिर सिंगरौली में जिला अस्पताल से निजी अस्पताल की दौड़ में जाने कब कोख में ही बच्चे ने दम तोड़ दिया. आखिरी में जिला अस्पताल में हुई डिलेवरी और बच्चा मरा हुआ पैदा हुआ. जिस बच्चे को वक्त रहते इलाज नहीं मिला. मौत के बाद उसे एम्बुलेंस तक नहीं मिल पाई. मोटर साईकिल की जिस डिग्गी में एक बाप अपने मासूम के लिए खिलौने लाता उसमें मासूम बच्चे की लाश रखकर कलेक्ट्रेट पहुंचा कि बताइए बच्चे की लाश को अपने घर तक कैसे ले जाऊं. (bhopal man has become helpless)

MP: इंसानियत शर्मसार! नहीं मिली एंबुलेंस...नवजात के शव को बाइक की डिग्गी में रखकर घर ले गए परिजन, कलेक्टर ने दिए जांच के आदेश

सिंगरौली से पहले मुरैना की घटना याद कीजिएः सड़क पर डिलेवरी की तस्वीरे सिस्टम के लिए कोई नई बात नहीं. आखिरी सफर भी सूबे में इतना दुश्वार है. ये पहला मामला भी नहीं. सिंगरौली से पहले मुरैना जिले की तस्वीर आठ साल का मासूम अपने दो साल के भाई की लाश अपनी गोदी में लिए दो घंटे जिला अस्पताल के बाहर बैठा रहा. वीडियो और तस्वीरें सोशल मीडिया पर भी खूब वायरल हुई थीं. पिता शव वाहन तलाश रहा था और मासूम बच्चा अपने भाई की लाश गोद में लिए बैठा था. दमोह में तो कचरा गाड़ी में डालकर शव को पोस्टमार्टम रुम तक पहुंचाया गया. यहां कोतवली थाना इलाके में एक व्यक्ति का शव संदिग्ध अवस्था में खजूर के जंगल में फांसी पर लटका मिला था. शव का पोस्टमार्टम किया जाना था. तो पोस्ट मार्टम के लिए उस व्यक्ति की लाश कचरा गाड़ी में डालकर जिला अस्पताल तक लाई गई. (child death) (innocent child body in diggy of motorcycle)

जिंदगी की गारंटी नहीं मौत का बंदोबस्त भी नहींः ग्रामीण इलाकों में स्वास्थ्य सेवाओं के लचर हालात में इलाज की कोई गांरटी नहीं है.हैरत की बात ये है कि मौत का भी कोई बंदोबस्त नहीं है यहां. अजन्में मासूम से लेकर दमोह में फांसी पर लटके शख्स तक के इंसान का मौत के बाद जानवर का बर्ताव किसलिए?? (child death) (bhopal child body in diggy)

भोपाल। अच्छा हुआ जो तुमने इस दुनिया में आंखे खोलने से पहले ही मुंह मोड़ लिया. जो दुनिया तुम्हें वक्त रहते जिंदगी न दे पाई. न मौत के बाद आखिरी सफर का कोई इंतजाम था उसके पास. मानवता भी कितनी बार शर्मसार होगी. पत्थर रखिए अपने सीने पर और उस बाप की हिम्मत को सलाम कीजिए कि जिसने अपने मासूम बच्चे की लाश को मोटरसाईकिल की डिग्गी में सहेजना पड़ा. इलाज के लिए एक राज्य से दूसरे राज्य और अस्पताल दर अस्पताल दौड़ा रहे सिस्टम में जिंदगी की कीमत तो थी ही नहीं, लाश को घर ले जाने एम्बुलेंस भी नहीं मिल पाई. घटना सिंगरौली जिले की है. लेकिन पहली नहीं मुरैना में आठ बरस के बच्चे ने दो बरस के भाई की लाश को शव वाहन के लिए दो घंटे सड़क पर संभाला था. दमोह में कचरा गाड़ी में लाश अंतिम संस्कार के लिए पहुंचाई गई थी. (child death) (how many times will humanity be ashamed) (innocent child body in diggy of motorcycle)

जहां खिलौने होने थे वहां रखी थी मासूम की लाशः स्वास्थ्य सेवाओं का डंका बजाते यूपी और एमपी की कलई खोलती है ये घटना. यूपी के सोनभद्र जिले के रहने वाले दिनेश अपनी पत्नि की डिलेवरी के लिए एमपी के सिंगरौली आए. फिर सिंगरौली में जिला अस्पताल से निजी अस्पताल की दौड़ में जाने कब कोख में ही बच्चे ने दम तोड़ दिया. आखिरी में जिला अस्पताल में हुई डिलेवरी और बच्चा मरा हुआ पैदा हुआ. जिस बच्चे को वक्त रहते इलाज नहीं मिला. मौत के बाद उसे एम्बुलेंस तक नहीं मिल पाई. मोटर साईकिल की जिस डिग्गी में एक बाप अपने मासूम के लिए खिलौने लाता उसमें मासूम बच्चे की लाश रखकर कलेक्ट्रेट पहुंचा कि बताइए बच्चे की लाश को अपने घर तक कैसे ले जाऊं. (bhopal man has become helpless)

MP: इंसानियत शर्मसार! नहीं मिली एंबुलेंस...नवजात के शव को बाइक की डिग्गी में रखकर घर ले गए परिजन, कलेक्टर ने दिए जांच के आदेश

सिंगरौली से पहले मुरैना की घटना याद कीजिएः सड़क पर डिलेवरी की तस्वीरे सिस्टम के लिए कोई नई बात नहीं. आखिरी सफर भी सूबे में इतना दुश्वार है. ये पहला मामला भी नहीं. सिंगरौली से पहले मुरैना जिले की तस्वीर आठ साल का मासूम अपने दो साल के भाई की लाश अपनी गोदी में लिए दो घंटे जिला अस्पताल के बाहर बैठा रहा. वीडियो और तस्वीरें सोशल मीडिया पर भी खूब वायरल हुई थीं. पिता शव वाहन तलाश रहा था और मासूम बच्चा अपने भाई की लाश गोद में लिए बैठा था. दमोह में तो कचरा गाड़ी में डालकर शव को पोस्टमार्टम रुम तक पहुंचाया गया. यहां कोतवली थाना इलाके में एक व्यक्ति का शव संदिग्ध अवस्था में खजूर के जंगल में फांसी पर लटका मिला था. शव का पोस्टमार्टम किया जाना था. तो पोस्ट मार्टम के लिए उस व्यक्ति की लाश कचरा गाड़ी में डालकर जिला अस्पताल तक लाई गई. (child death) (innocent child body in diggy of motorcycle)

जिंदगी की गारंटी नहीं मौत का बंदोबस्त भी नहींः ग्रामीण इलाकों में स्वास्थ्य सेवाओं के लचर हालात में इलाज की कोई गांरटी नहीं है.हैरत की बात ये है कि मौत का भी कोई बंदोबस्त नहीं है यहां. अजन्में मासूम से लेकर दमोह में फांसी पर लटके शख्स तक के इंसान का मौत के बाद जानवर का बर्ताव किसलिए?? (child death) (bhopal child body in diggy)

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