भोपाल। मध्यप्रदेश में 2018 के विधानसभा चुनाव में नोटा 13 सीटों पर उम्मीदवारों की जीत को हार में बदलने में अहम वजह बना. इस 13 सीटों पर हार-जीत के अंतर से ज्यादा मतदाताओं ने नोटा पर बटन दबाया. इससे बीजेपी-कांग्रेस के उम्मीदवारों के हाथ से जीत निकल गई. नोटा से सबसे ज्यादा नुकसान बीजेपी को हुआ था. बीजेपी 10 सीटों पर नोटा से हार गई थी. सबसे कम अंतर की जीत 121 वोटों की ग्वालियर दक्षिण विधानसभा सीट पर रही. यहां नोटा को 1150 वोट मिले थे. इस रिपोर्ट में देखिए दिलचस्प आंकड़ा.
नोटा का रोचक आंकड़ा: 2018 के विधानसभा चुनाव में 13 विधानसभा सीटों पर जीत-हार का अंतर नोटों के वोटों से कम रहा था. इन सीटों पर हार-जीत का अंतर 1 हजार वोटों से कम था, जबकि नोटा ने इस अंतर से ज्यादा वोट प्राप्त किए थे. इनमें से 10 विधानसभा सीटें ऐसी रहीं, जिसमें से बीजेपी को हार के रूप में नुकसान उठाना पड़ा. पिछले चुनाव में 230 विधानसभा सीटों में से कांग्रेस के खाते में 114 सीटें मिली थीं, जबकि बीजेपी को 109 सीटें, बीएसपी को 2, सपा को एक और निर्दलीय के खाते में 4 सीटें आई थीं.
इन 13 सीटों पर नोटा ने बिगाड़ा हार-जीत का गणित: 2018 के विधानसभा चुनाव में ऐसे कई सीटें रहीं, जहां नोटा ने बीजेपी-कांग्रेस उम्मीदवार की जीत का हार में बदलने में अहम भूमिका निभाई. इस तरह की करीबन एक दर्जन सीट रहीं, जहां नोट गणित नहीं बिगाड़ता तो प्रदेश में बीजेपी-कांग्रेस के विधायकों की संख्या और ज्यादा हो सकती थी. मसलन-
- मांधता सीट पर हार-जीत का अंतर सिर्फ 1236 वोटों का हुआ था. यहां बीजेपी के नरेन्द्र सिंह तोमर कांग्रेस के नारायण पटेल से हार गए थे. कांग्रेस उम्मीदवार को 71 हजार 228 वोट, जबकि बीजेपी को 69992 वोट मिले थे. जबकि नोटा पर 1575 मतदाताओं ने बटन दबाया था.
- जबलपुर उत्तर विधानसभा सीट पर पूर्व राज्यमंत्री शरद जैन को 578 वोटों से हार का मुंह देखना पड़ा था. इस सीट पर मतदाताओं ने 1209 वोट नोटा को दिया था. इस सीट से कांग्रेस के विनय सक्सेना ने जीत दर्ज की थी.
- जोबट विधानसभा सीट पर हार-जीत का अंतर 2056 वोटों का था. इस सीट से कांग्रेस की कलावती भूरिया ने जीत दर्ज की थी. उन्हें 46067 वोट मिले थे, जबकि बीजेपी के माधौसिंह डाबर को 44011 वोट मिले थे. जबकि नोटा को 5139 वोट मिले थे.
- नेपानगर विधानसभा सीट पर बीजेपी प्रत्याशी भी नोटा की वजह से हार गए. उनकी हार 732 वोटों से हुई थी, लेकिन नोटा के खाते में 2551 वोट गए थे. इस सीट से कांग्रेस की सुमित्रा देवी कासडेकर ने चुनाव जीता था.
- सुवासरा विधानसभा सीट पर भी नोटा ने जीत को हार में बदलने में भूमिका निभाई थी. इस सीट पर बीजेपी के राधेश्याम पाटीदार कांग्रेस के हरदीप डंग से सिर्फ 350 वोटों से हार गए थे. यहां नोटा को 2976 वोट मिले थे. हालांकि उपचुनाव में इस सीट पर बीजेपी से हरदीप अच्छे अंतर से जीते थे.
- कोलारस विधानसभा सीट पर जीत-हार का अंतर 720 वोटों का था. जबकि नोटा के खाते मे गए थे 1674 वोट. इस सीट पर बीजेपी के वीरेन्द्र रघुवंषी चुनाव जीते थे.
- बीना विधानसभा सीट पर जीत-हार का अंतर सिर्फ 460 रुपए थे, जबकि 1531 मतदाताओं ने नोटा पर बटन दबाया था. इस सीट पर बीजेपी के महेश राय ने जीत दर्ज की थी.
- दमोह सीट पर भी जीत-हार के अंतर से ज्यादा नोटा के खाते में वोट थे. यहां नोटा को वोट मिले थे 1299, जबकि जीत-हार का अंतर था 798 वोटों का. यहां कांग्रेस के राहुल सिंह चुनाव जीते थे.
- ब्यावरा विधानसभा सीट पर नोटा के खाते में आए थे 1481 वोट, जबकि जीत-हार का अंतर 826 वोटों का था. यहां से कांग्रेस के गोवर्धन डांगी ने चुनाव जीता था.
- राजपुर विधानसभा सीट से कांग्रेस के बाला बच्चन 932 वोटों ने जीत दर्ज की थी. यहां से बीजेपी के उम्मीदवार अंतर सिंह पटेल चुनाव हार गए थे. यहां 3358 लोगों ने नोटा यानी नन ऑफ द अबोव का बटन दबाया था.
- जावरा विधानसभा सीट पर हार जीत के अंतर से ज्यादा नोटा के वोट थे. यहां नोटा पर 1510 मतदाताओं ने वोट डाला था, जबकि हार-जीत का अंतर 511 वोटों का था. इस सीट से बीजेपी के राजेन्द्र पांडेय चुनाव जीते थे.
- गुन्नौर विधानसभा सीट पर भी हार-जीत का अंतर सिर्फ 1984 वोटों का था, जबकि नोटा को 3734 वोट मिले थे. इस सीट से कांग्रेस के षिवदयाल बागरी ने चुनाव जीता था.
- मध्यप्रदेश की ग्वालियर दक्षिण सीट पर हार-जीत का अंतर बेहद कम रहा. यहां से बीजेपी के नारायण सिंह कुशवाहा काग्रेस के प्रवीण पाठक से सिर्फ 121 वोटों वोटों से हार गए थे. इस सीट पर नोटा को वोट मिले थे 1150.
क्या कहते हैं राजनीतिक जानकार: हालांकि नोटा को लेकर राजनीतिक जानकार और वरिष्ठ पत्रकार अजय बोकिल कहते हैं कि ''2018 की विधानसभा चुनाव और इस बार के विधानसभा चुनाव में काफी अंतर है. 2018 के विधानसभा चुनाव में मतदाता के पास उम्मीदवार और पारियों के रूप में इतने विकल्प मौजूद नहीं थे जितने इस बार के विधानसभा चुनाव में हैं. आमतौर पर मतदाता ऐसी स्थिति में नोट पर बटन दबाता है जब उसके पास उम्मीदवार और पार्टी के मामले में विकल्प मौजूद न हो. 2018 की विधानसभा चुनाव में एमपी में सीधा-सीधा मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच ही था इसलिए कई सीटों पर मतदाताओं ने नोट पर बटन दबाया जिसका परिणाम यह सामने आया कि कई सीटों पर नोट आने गणित बिगाड़ दिए लेकिन इस बार की विधानसभा चुनाव में बीजेपी कांग्रेस के अलावा आम आदमी पार्टी समाजवादी पार्टी, बसपा और बीजेपी और कांग्रेस के कई बागी भी चुनाव मैदान में है इसलिए उम्मीद है कि मतदाता इस बार नोटा का बटन कम दबाएंगे.''
क्या है नोटा: दरअसल चुनाव आयोग ने मतदाताओं को नोटा यानी 'नन ऑफ द अबोव' का एक विकल्प दिया है, जिसमें यदि मतदाता चुनाव मैदान में खड़ा होने वाला कोई भी उम्मीदवार पसंद न आए तो वह नोटा का बटन दबाकर अपना विरोध जता सकता हैं. इस विकल्प को 2013 से वोटिंग मशीन में शामिल किया गया है. नोटा का बटन सबसे नीचे होता है. इस विकल्प को देने वाला भारत दुनिया का 14 वां देश है.