भोपाल। पटाखों से होने वाले प्रदूषण को रोकने के लिए सख्ती के साथ प्रशासन ने दिवाली पर देश के कई शहरों में पटाखा छोड़ने पर प्रतिबंध लगा दिया था. इस फैसले का कई जगह विरोध भी हुआ, लेकिन भोपाल में एक ऐसी कॉलोनी भी है, जहां कॉलोनी के अस्सी फीसद घरों में बीते बीस साल में पटाखे तो छोड़िए एक फुलझड़ी नहीं जली है. स्वेच्छा से किया गया ये फैसला संकल्प है. इसमें ये कॉलोनी पूरे भोपाल को शामिल करना चाहती है और इसके लिए प्रयास भी कर रही है. (bhopal bagmugalia extension colony)
दीपावली पर वृक्ष बचाने का संकल्प: भोपाल की बागमुगलिया एक्सटेंशन लहारपुरा के नाम से पहचानी जाने वाली इस कॉलोनी का दीपावली मनाने का भी खास तरीका है. यहां के रहवासी दीपावली पर वृक्ष बचाने के संकल्प के साथ हर वृक्ष के पास दीपदान करते हैं. इनमें भी ज्यादातर वो होते हैं जिन्हें इन्होंने खुद ही लगाया हो. इस कॉलोनी की पहचान अब धीरे धीरे उस रिहायशी बस्ती के तौर पर होने लगी है, जहां दिवाली के दिन शहर के इस हिस्से से पटाखे की आवाज नहीं आती है.
पटाखा जलााने का शास्त्रों में नहीं है कहीं जिक्र: 83 एकड़ इलाके में फैली इस कॉलोनी में 1206 मकान हैं. इसमें से 80 फीसदी मकान ऐसे हैं कि जहां पिछले बीस सालों से पटाखा तो छोड़िए एक फुलझड़ी तक नहीं जली है. इस संकल्प को भोपाल की बागमुगलिया एक्सटेंशन लहारपुर कॉलोनी ने अभियान की आंदोलन की शक्ल दे दी है. यहां के लोगों की कोशिश ये रहती है कि अपने परिचितों को दूसरी कॉलोनियों को भी इस अभियान में जोड़ें. इस अभियान को शुरू करने वाले इसी कॉलोनी के रहवासी उमा शंकर तिवारी कहते हैं, "हमने 2002 में इस अभियान की शुरुआत की थी और संकल्प से सिद्धि हुई और आज ये कहा जा सकता है कि भोपाल की हमारी कॉलोनी में तो अस्सी फीसदी घर ऐसे हैं जहां फुलझड़ी भी नहीं आती. हमारा ये संकल्प शास्त्र सम्मत है, क्योंकि शास्त्रों में वेदों में कहीं पटाखा जलाए जाने का उल्लेख नहीं है. यहां तक कि अब दीपावली पर पटाखों पर स्वेच्छा से प्रतिबंध लगाने के बाद हम ये संकल्प भी दिला रहे हैं कि बारातों में भी आतिशबाजी नहीं होगी. कॉलोनी के ही कई परिवार हैं, जो इस संकल्प को बाकयदा निभा रहे हैं." (bhopal residents celebrate diwali with trees)
दीपावली के दिन पेड़ों पर दीपदान: प्रदूषण को ना कहने वाली इस कॉलोनी ने पर्यावरण की संभाल के लिए एक संकल्प और लिया है. संकल्प ये है कि इस पूरी बस्ती के लोग दीपावली के मौके पर अपने हाथों से लगाए पौधे जो अब पेड़ बन चुके हैं इन पर दीपदान करते हैं. ये एक तरीके से पर्यावरण पूजा भी है और संदेश भी कि जिनकी वजह से उजास और सांसे बची रहनी है उनकी उपासना सबसे पहले जरुरी है. 2019 में इस अभियान की शुरूआत करने वाले उमा शंकर तिवारी बताते हैं, "शास्त्रों वेदों में वृक्षों को देवता कहा गया है. उनके द्वारा ही हमें ऑक्सीजन प्राप्त होती है, जो हमारे जीवन के लिए बहुत जरूरी है. इसी वजह से 2019 से हमने संकल्प लिया की हम वृक्ष देवता की पूजा करेंगे. इस अभियान का एक ही संदेश है वृक्ष बचेंगे तो जीवन बचेगा. तिवारी बताते हैं हमारी समिति हर दीपावली आम जनों से अपील करती है कि लोग एक नई परंपरा की शुरुआत करें, और दीपावली के दिन अपने घर के पास वृक्षों के सम्मुख दीपक लगाएं".(bhopal colony diwali without firecrackers)