भिंड। दुनिया भर में छह अप्रैल का दिन संपूर्ण विश्व में विकास और शांति के लिए अंतरराष्ट्रीय खेल दिवस (International sports day) मनाया जाता है. इस दिन की घोषणा संयुक्त राष्ट्र महासभा (United Nations General Assembly) ने की थी. जिसका मुख्य उद्देश्य समाज में खेल की भूमिका और योगदान को बढ़ावा मिल सके. आज भारत में भी ना जाने कितने ऐसे खिलाड़ी हैं, जिन्होंने न सिर्फ भारत में अपनी पहचान बनाई बल्कि विश्व पटल पर भी देश का नाम रोशन किया है. ऐसे ही एक दिव्यांग खिलाड़ी है पूजा ओझा (Pooja Ojha is a disabled player), जिन्होंने अपने हौसलों के आगे कभी भी अपने दिव्यांगता को आड़े नहीं आने दिया और लगातार कई इंटरनेशनल वॉटर स्पोर्ट्स इवेंट्स (International Water Sports Events) में देश को गोल्ड मेडल दिलाए हैं. अंतरराष्ट्रीय खेल विकास (International sports development) और शांति दिवस के मौके पर ईटीवी भारत (ETV India) से पूजा ओझा ने की चर्चा की.
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देश की पहली पैरा केनो खिलाड़ी
भिंड जिले की रहने रहने वाली पूजा ओझा बेहद सामान्य परिवार से आती है. लेकिन अपनी मेहनत और लगन के चलते उन्होंने न सिर्फ अपने परिवार का बल्कि पूरे भिंड मध्य प्रदेश और भारत का नाम रोशन किया है. पूजा अपने पैरों की वजह से दिव्यांग है लेकिन खुद पर उनका भरोसा और अपनी मेहनत के बल बूते उन्होंने खेल जगत में जाने का निर्णय लिया है. वह भी ऐसे किसी खेल में नहीं बल्कि वॉटर स्पोर्ट्स में जहां अच्छे अच्छों की हालत खराब हो जाती है. पूजा ने कड़ी मेहनत के साथ स्विमिंग सीखी और पैरा केनो एवं कयाकिंग में भाग लेकर देश की पहली महिला पैरा केनो खिलाड़ी बनी है.
भिंड से विदेश तक बजाया देश का
पहली बार नेशनल चैंपियनशिप (National championship) में गोल्ड मेडल हासिल कर पूजा ने भिंड का नाम रोशन कर दिया. उनका सफर यहीं नहीं रुका थाईलैंड में आयोजित हुई चैंपियनशिप में भारत को ही पूजा ने सिल्वर मेडल दिलाया था. अब तक पूजा नेशनल चैंपियनशिप में छह बार गोल्ड मेडल ला चुकी है. उनके पास एक रजत पदक है. पैरा ओलंपिक के लिए हुए क्वालिफाइंग चैंपियनशिप (qualifying championship) में उनकी 6वीं रैंक रही और वर्तमान में विश्व में हो पैरा केनो खिलाड़ियों में उनकी नौवी रैंक है.
संघर्ष भरा रहा शुरुआती सफर
पूजा ने ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए बताया कि जब शुरुआत में उन्होंने वॉटर स्पोर्ट्स को चुना तो यह बहुत जोखिम भरा था क्योंकि सभी जानते हैं कि पानी में ध्यान का सबसे ज़्यादा खतरा होता है. खासकर एक दिव्यांग के लिए यह खतरा बहुत ज़्यादा होता है, लेकिन मन में यह ठान लिया था दिव्यांगता को हथियार बनाना है इसलिए कड़ी मेहनत की शुरुआती दौर में अकेडमी पर भी कोई सुविधाएं नहीं थी. एक जुगाड़ कि बोट से प्रैक्टिस शुरू की. जब नेशनल चैंपियनशिप में भाग लिया और गोल्ड मेडल आया तो भिंड की जनता और फेडरेशन ने भी सपोर्ट करते हुए सुविधाएं दी और धीरे-धीरे अब खेल में बेहद अच्छा कर रहे हैं.
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पैरा ओलंपिक में देश के लिए मेडल जीतना
2022 में आयोजित होने वाले पैरा ओलंपिक के लिए भी पूजा, क्वालिफाइंग खिलाड़ियों में हैं, यदि उससे पहले उनकी रैंकिंग में बदलाव नहीं आता है तो अगले साल होने वाले पैरा ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व करती हुई नजर आएंगी. पूजा कहती है कि उनका सफर आसान नहीं रहा है. उन्होंने बहुत ही छोटे स्तर से अपनी शुरुआत की थी लेकिन कभी दिव्यांग ता को आड़े नहीं आने दिया है. उन्होने इरादों की मजबूती को साबित करते हुए न जाने कितने मेडल अपने नाम कर लिए हैं. अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी पूजा कहती है कि अब समय बदल चुका है, आज स्पोर्ट्स में तो बहुत स्कोप है. लोगों को चाहिए कि वे अपने बच्चों को भी खेल के प्रति प्रोत्साहित करें. खासकर लड़कियों को स्पोर्ट्स के लिए आगे आना चाहिए वह यह दिखा सकती हैं कि लड़कियां किसी भी क्षेत्र में लड़कों से पीछे नहीं हैं.