भोपाल। मध्यप्रदेश शासन के संस्कृति विभाग की पारम्परिक संगीत की श्रृंखला 'उत्तराधिकार' में भारिया जनजाति के नृत्य भड़म और सैताम की प्रस्तुति का प्रसारण जनजातीय संग्रहालय के यूट्यूब चैनल पर किया गया. इस दौरान कलाकारों के मंच पर आदिवासी लोकनृत्य की प्रस्तुति दी लेकिन इस बार उन्हें दर्शकों की तालियों का आवाज सुनाई नहीं दी क्योंकि इस बार विभाग के सभी कार्यक्रम कोरोना के कारण सोशल मीडिया पर लाइव दिखाए जा रहे हैं.
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भारिया जनजाति छिंदवाड़ा जिले के पातालकोट क्षेत्र और उसके आसपास निवास करने वाली प्रमुख जनजाति है. इसके अलावा जबलपुर के आसपास भी इस जनजाति के लोग निवास करते हैं. वहीं भारिया जनजाति के नृत्यों को देखते हुए जीवन, प्रकृति और संस्कृति के प्रति गहरा सरोकार उद्घाटित होता है.
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भड़म और सैताम भारिया जनजाति के परंपरागत नृत्य हैं. भड़म नृत्य कई नामों से प्रचलित है, जिसे गुन्नू साही, भड़नी, भड़नई, भरनोटी या भंगम नृत्य भी कहा जाता है. विवाह के अवसर पर यह समूह नृत्य भारियाओं का सर्वाधिक प्रिय नृत्य माना जाता है. यह नृत्य थोड़े-थोड़े देर में रात भर चलता है. इसमें 20 से 50-60 नर्तक हिस्सा लेते हैं, जिसमें ढोल, टिमकी और झांझ मुख्य वाद्य यन्त्र शामिल होते हैं, टिमकी की संख्या ढोल से दोगुनी होती है.
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सैताम नृत्य भारिया महिलाओं द्वारा किया जाने वाला नृत्य है, जिसमें एक पुरुष घेरे के बीच ढोलक बजाता है, इस नृत्य किशोरियों की अधिक हिस्सेदारी होती है, जो इसे और भी सुंदर बनाता है. विवाह के अवसर पर युवतियां हाथ में मंजीरा या फिर चिट्कुला लेकर रात भर नाचती हैं. हाथ, पैर और कमर के साथ चलने और झुकने से सैताम नृत्य किसी तालाब की लहर जैसा दिखाई देता है.
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