भोपाल। कांग्रेस से बगावत कर ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ मिलकर कमलनाथ सरकार का तख्तापलट करने वाले 22 विधायक में से ज्यादातर फायदे में रहे, लेकिन कुछ की हालत ऐसी हो गई है कि वो न राम में हुए न रहीम में. विधायकी से इस्तीफा देने वाले 22 पूर्व विधायकों में से कुल मिलाकर 14 मंत्री बन गए, जबकि आठ पूर्व विधायक ऐसे हैं, जो न ही मंत्री बन पाए और न ही विधायक रह सके. अब इनके सामने एक बार फिर उपचुनाव जीतने की चुनौती है. ये चुनौती इसलिए भी बड़ी है क्योंकि एक को छोड़ बाकी 7 नेता पहली बार चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे थे.
इन 8 नेताओं में अंबाह से कमलेश जाटव, अशोकनगर से जजपाल सिंह जज्जी, ग्वालियर पूर्व से मुन्नालाल गोयल, गोहद से रणवीर जाटव, मुरैना से रघुराज सिंह कंसाना, हाटपीपल्या से मनोज चौधरी, करेरा से जसवंत जाटव और भांडेर से रक्षा सरैनिया शामिल हैं. इनमें से कमलेश जाटव और जसपाल सिंह जज्जी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का माहौल होने और सिंधिया का गढ़ होने के बाद भी बमुश्किल 10 हजार वोटों की लीड के साथ चुनाव जीते थे. यही वजह है कि 15 महीने बाद फिर चुनाव मैदान में उतरने से अब ये पूरी तरह बीजेपी के भरोसे हैं. यदि इन क्षेत्रों में बीजेपी के असंतुष्ट नहीं माने तो इनका सियासी भविष्य खतरे में पड़ सकता है.
बीजेपी में दलित की अनदेखीः कांग्रेस
पूर्व मंत्री बृजेंद्र सिंह राठौर ने कहा कि बीजेपी ने इन 8 पूर्व विधायकों के साथ अन्याय किया है, लेकिन जो उन्होंने किया था ये उसी का परिणाम है. जो अपनी मां जैसी पार्टी को धोखा देकर जाता है, उसे धोखा जरूर मिलता है. इससे बीजेपी की नीयत भी साफ हो गई है. मंत्री पद से वंचित रह गए नेताओं में सिर्फ आर्थिक रूप से कमजोर और दलित ही हैं. इन आठ नेताओं में से पांच अनुसूचित वर्ग के हैं. इससे साफ हो गया है कि बीजेपी सबका साथ सबका विकास का जो नारा देती है, वो सिर्फ फिजूल है. बीजेपी अपने चश्मे से ही चीजों को देखती है. सिंधिया को भी सोचना चाहिए कि इन नेताओं के साथ दोयम दर्जे का व्यवहार क्यों किया गया.
बीजेपी के मुताबिक मंत्रिमंडल में सभी का सम्मान किया गया है. बीजेपी प्रवक्ता राहुल कोठारी के मुताबिक कांग्रेस इस तरह की बयानबाजी कर सिर्फ अपनी खुन्नस निकाल रही है क्योंकि कांग्रेस की चुनावी तैयारी सिर्फ कागजों तक सिमट कर रह गई है, जबकि बीजेपी की चुनावी तैयारियां चरम पर हैं. कांग्रेस कितने भी दावे कर ले, लेकिन चुनाव में उसे हार का मुंह देखना ही है.