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कलाकारों ने दी आदिवासी लोकनृत्य की शानदार प्रस्तुति, देखकर मंत्रमुग्ध हुए दर्शक

संस्कृति विभाग द्वारा मध्यप्रदेश जनजातीय संग्रहालय में कलाकारों द्वारा आदिवासी लोककला की रंगारंग प्रस्तुति दी गई. डिंडोरी के दयाराम ने बैगा जनजाति का ‘परघौनी’ और ‘करमा’, हरदा के लक्ष्मी नारायण ने ‘काठी’, छिंदवाड़ा की अनसुइया तेलीराम भारती ने ‘सैताम’, बैतूल के अर्जुन बाघमारे ‘ठाठया’ सागर के मनीष यादव ने ‘बरेदी’ लोकनृत्य की प्रस्तुति दी.

Tribal folk art
आदिवासी लोककला
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Published : Nov 9, 2020, 8:45 AM IST

भोपाल। संस्कृति विभाग द्वारा मध्यप्रदेश जनजातीय संग्रहालय में आयोजित आदिवासी लोककला की शानदार प्रस्तुतियां दी गईं. बहुविधि कलानुशासनों की गतिविधि एकाग्र ‘गमक रंग मध्यप्रदेश’ श्रृंखला अंतर्गत आदिवासी लोककला और बोली विकास अकादमी द्वारा रंगा रंग प्रस्तुति दी गई. डिंडोरी के दयाराम ने बैगा जनजाति का ‘परघौनी’ और ‘करमा’, हरदा के लक्ष्मी नारायण ने ‘काठी’, छिंदवाड़ा की अनसुइया तेलीराम भारती ने ‘सैताम’, बैतूल के अर्जुन बाघमारे ‘ठाठया’ सागर के मनीष यादव ने ‘बरेदी’ लोकनृत्य की प्रस्तुति दी.

Tribal dance
आदिवासी नृत्य

प्रस्तुति की शुरुआत बैगा जनजाति के ‘परघौनी’ नृत्य से हुई, बैगा आदिवासियों में परघौनी नृत्य विवाह के अवसर पर बारात की अगवानी के समय किया जाता है. इसी अवसर पर लड़के वालों की ओर से आंगन में हाथी बनाकर नचाया जाता है. उसके बाद निमाड़ अंचल के प्रसिद्ध लोकनृत्य नाटय ‘काठी’ की प्रस्तुति दी गई. पार्वती की तपस्या से संबंधित ‘काठी’ एक मातृपूजा का त्योहार है. इसमें नर्तकों का शृंगार अनूठा होता है. गले से लेकर पैरों तक पहना जाने वाला बाना, जो लाल चोले का घेरेदार बना होता है. काठी नर्तक कमर में एक खास वाद्य यंत्र ढांक्य बांधते हैं. जिसे मासिंग के डण्डे से बजाया जाता है. काठी का प्रारम्भ देव प्रबोधिनी एकादशी से होता है और विश्राम महाशिवरात्रि को होता है.

Tribal dance
आदिवासी नृत्य

सैताम नृत्य भारिया जनजाति का महिलाओं द्वारा किया जाने वाला परम्परागत नृत्य है. इसमें हाथों में मंजीरा लेकर युवतियां दो दलों में विभाजित हो कर आमने-सामने खड़ी होती हैं और बीच में एक पुरुष ढोल बजता है, एक महिला दो पंक्ति गाती है और शेष महिलाएं उसे दोहराते हुए नृत्य करती हैं. जिसके बाद बैगा जनजाति के करमा नृत्य की प्रस्तुति हुई, इस नृत्य को भादों माह की एकादशी की उपवास करके करम वृक्ष की शाखा को आंगन या चौगान में रोपित किया जाता है. दूसरे दिन नए अन्न को अपने कुल देवता को अर्पित करने के बाद नवामनका उपयोग प्रारंभ किया जाता है. नई फसल आने की खुशी में करम पूजा में हर किसी का मन मयूर नृत्य करने लगता है. नृत्य का मूल आधार नर्तकों का अंग संचालन होता है.

Tribal folk art
आदिवासी लोककला

भोपाल। संस्कृति विभाग द्वारा मध्यप्रदेश जनजातीय संग्रहालय में आयोजित आदिवासी लोककला की शानदार प्रस्तुतियां दी गईं. बहुविधि कलानुशासनों की गतिविधि एकाग्र ‘गमक रंग मध्यप्रदेश’ श्रृंखला अंतर्गत आदिवासी लोककला और बोली विकास अकादमी द्वारा रंगा रंग प्रस्तुति दी गई. डिंडोरी के दयाराम ने बैगा जनजाति का ‘परघौनी’ और ‘करमा’, हरदा के लक्ष्मी नारायण ने ‘काठी’, छिंदवाड़ा की अनसुइया तेलीराम भारती ने ‘सैताम’, बैतूल के अर्जुन बाघमारे ‘ठाठया’ सागर के मनीष यादव ने ‘बरेदी’ लोकनृत्य की प्रस्तुति दी.

Tribal dance
आदिवासी नृत्य

प्रस्तुति की शुरुआत बैगा जनजाति के ‘परघौनी’ नृत्य से हुई, बैगा आदिवासियों में परघौनी नृत्य विवाह के अवसर पर बारात की अगवानी के समय किया जाता है. इसी अवसर पर लड़के वालों की ओर से आंगन में हाथी बनाकर नचाया जाता है. उसके बाद निमाड़ अंचल के प्रसिद्ध लोकनृत्य नाटय ‘काठी’ की प्रस्तुति दी गई. पार्वती की तपस्या से संबंधित ‘काठी’ एक मातृपूजा का त्योहार है. इसमें नर्तकों का शृंगार अनूठा होता है. गले से लेकर पैरों तक पहना जाने वाला बाना, जो लाल चोले का घेरेदार बना होता है. काठी नर्तक कमर में एक खास वाद्य यंत्र ढांक्य बांधते हैं. जिसे मासिंग के डण्डे से बजाया जाता है. काठी का प्रारम्भ देव प्रबोधिनी एकादशी से होता है और विश्राम महाशिवरात्रि को होता है.

Tribal dance
आदिवासी नृत्य

सैताम नृत्य भारिया जनजाति का महिलाओं द्वारा किया जाने वाला परम्परागत नृत्य है. इसमें हाथों में मंजीरा लेकर युवतियां दो दलों में विभाजित हो कर आमने-सामने खड़ी होती हैं और बीच में एक पुरुष ढोल बजता है, एक महिला दो पंक्ति गाती है और शेष महिलाएं उसे दोहराते हुए नृत्य करती हैं. जिसके बाद बैगा जनजाति के करमा नृत्य की प्रस्तुति हुई, इस नृत्य को भादों माह की एकादशी की उपवास करके करम वृक्ष की शाखा को आंगन या चौगान में रोपित किया जाता है. दूसरे दिन नए अन्न को अपने कुल देवता को अर्पित करने के बाद नवामनका उपयोग प्रारंभ किया जाता है. नई फसल आने की खुशी में करम पूजा में हर किसी का मन मयूर नृत्य करने लगता है. नृत्य का मूल आधार नर्तकों का अंग संचालन होता है.

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आदिवासी लोककला
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