भोपाल। मध्य प्रदेश में 3 नवंबर को 28 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव के लिए मतदान हैं. इस उपचुनाव को जितने के लिए प्रत्याशी और पार्टियों ने प्रचार में पूरी ताकत झोंक दी हैं. अब लोग यह जानना चाहते हैं कि इस समय कहां किसकी जड़ें कितनी मजबूत हैं. ऐसे में पेश हैं खास रिपोर्ट जहां जानें कि चुनावी क्षेत्रों की जमीनी हकीकत क्या है. जानें ग्वालियर अंचल में किस पार्टी की जड़ें है ज्यादा मजबूत, कौन किसे दे रहा है टक्कर और किस पार्टी से कौन है प्रत्याशी. फिलहाल जो समीकरण हैं, उसके मुताबिक, 13 सीटों पर बीजेपी मजबूत नजर आ रही है, वहीं 10 सीटों पर कांग्रेस की बढ़त है और 5 सीटों पर प्रत्याशियों के बीच जोरदार कड़ा मुकाबला है.
इस एनालिसिस ग्वालियर क्षेत्र की 9 विधानसभा सीटों को शामिल किया गया है, जो कि ग्वालियर पूर्व, ग्वालियर, डबरा, अशोकनगर, भांडेर, पोहरी, करैरा, मुंगावली और बमोरी हैं.
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- ग्वालियर- चेहरा वही निशान नया, दांव पर है सिंधिया के सच्चे सिपाही की साख
ग्वालियर जिले की तीन विधानसभा सीटों पर हो रहे उपचुनाव में सबसे हॉट सीटों में से एक ग्वालियर विधानसभा सीट हैं. जो ज्योतिरादित्य सिंधिया के सबसे खास समर्थक प्रद्युमन सिंह तोमर की बगावत से खाली हुई. राजशाही के दौर में देश की जानी-मानी औद्योगिक क्षेत्र वाली ग्वालियर विधानसभा सीट खास इसलिए भी हैं क्योंकि यहां ज्योतिरादित्य सिंधिया की प्रतिष्ठा दांव पर है. कांग्रेस ने यहां सुनील शर्मा पर अपना दांव लगाया है.
ग्वालियर विधानसभा सीट के सियासी इतिहास की बात की जाए तो 1957 से अस्तित्व में आई इस सीट पर कभी किसी एक पार्टी का दबदबा नहीं रहा. कांग्रेस और बीजेपी समय-समय पर यहां जीत दर्ज करती रही है. अब तक ग्वालियर विधानसभा सीट पर 14 विधानसभा चुनाव हो चुके हैं. जिनमें सबसे ज्यादा 6 बार जनसंघ और बीजेपी के प्रत्याशियों ने जीत दर्ज की. तो पांच बार बाजी कांग्रेस के हाथ लगी. जबकि तीन बार अन्य दलों के प्रत्याशियों को जीत का स्वाद मिला.
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- डबरा- समधी-समधन के बीच मुकाबला
ग्वालियर-चंबल की सबसे हाईप्रोफाइल सीट मानी जाने वाली डबरा विधानसभा सीट पर ज्योतिरादित्य सिंधिया की कट्टर समर्थक इमरती देवी का मुकाबला कांग्रेस के सुरेश राजे से हैं. खास बात यह है कि एक चुनावी सभा के दौरान पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के इमरती देवी पर दिए गए बयान से इस सीट पर सियासत और तेज हो गई है.
डबरा विधानसभा सीट गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा के प्रभाव वाली सीट मानी जाती है. आरक्षित होने से पहले इस सीट से वे तीन बार विधायक रह चुके हैं. हालांकि आरक्षित होने के बाद इमरती देवी ने इस सीट को कांग्रेसमय कर दिया था. 2008 से अब तक इस सीट पर हुए तीन चुनावों में से तीनों बार कांग्रेस को जीत मिली. जबकि बीजेपी और अन्य दलों का खाता भी नहीं खुला है.
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- ग्वालियर पूर्व - पुरानी जोड़ी में फिर मुकाबला
ग्वालियर पूर्व विधानसभा सीट से इस उपचुनावी मैदान में मुन्नालाल गोयल और सतीश सिकरवार के बीच मुकाबला है. फर्क सिर्फ इतना है कि इस बार दोनों प्रत्याशी दल बदलकर मैदान में उतरे हैं. मुन्नालाल गोयल ने 2018 का विधानसभा चुनाव कांग्रेस से लड़ा था. लेकिन अब वे बीजेपी प्रत्याशी हैं. तो सतीश सिकरवार 2018 में बीजेपी से लड़े थे. अब कांग्रेस का दामन थामकर उपचुनाव में कांग्रेस की तरफ से मैदान में हैं. ग्वालियर पूर्व विधानसभा सीट पर पहली बार उपचुनाव हो रहा है.
गोयल जहां सरल स्वभाव, कथित आखिरी चुनाव की सहानुभूति और जातिगत समीकरण के बूते मैदान में हैं, वहीं सिकरवार के लिए ठाकुर वर्ग को छोड़ दूसरे वोटर्स को साधना मुश्किल दिख रहा है. हालांकि उन्हें पिछला चुनाव हारने की सहानुभूति मिल सकती है.
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- बमोरी- अबकी बारी किसकी बमोरी?
साल 2008 में अस्तित्व में आई बमोरी विधानसभा अनारक्षित सीट है. गुना जिले के चुनावी इतिहास में यह तीसरा मौका है, जब उपचुनाव होने जा रहा है. खास बात यह कि अस्तित्व में आने के बाद तीन विधानसभा चुनाव देखने वाली बमोरी अब उपचुनाव के लिए तैयार है.
बमोरी विधानसभा सीट में सहरिया-आदिवासी और अनुसूचित जाति वर्ग के मतदाताओं की संख्या ज्यादा है. इस विधानसभा से पहला चुनाव बीजेपी उम्मीदवार के तौर पर केएल अग्रवाल ने साल 2008 में जीता था. उस वक्त उनके निकटतम प्रतिद्वंदी कांग्रेस से महेंद्र सिंह सिसोदिया थे. इसके बाद 2013 और 2018 का विधानसभा चुनाव कांग्रेस से महेंद्र सिंह सिसोदिया ने था. साल 2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने केएल अग्रवाल को चुनावी टिकट नहीं दिया, तो उन्होंने निर्दलीय चुनाव लड़ा था, लेकिन वह 28,488 मत प्राप्त कर तीसरे नंबर पर रहे थे. खास बात यह कि बमोरी विधानसभा उपचुनाव के इतिहास में पहली बार बीजेपी प्रत्याशी महेंद्र सिंह सिसोदिया प्रदेश सरकार में मंत्री रहते हुए चुनाव लड़ेंगे. वहीं दूसरी ओर कांग्रेस उम्मीदवार केएल अग्रवाल का कहना है कि उम्मीदवार पुराने हैं, लेकिन पार्टी बदल गई है. यह चुनाव जनता के मुद्दे पर लड़ा जाएगा.
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- मुंगावली- मुंगावली का सियासी मुकाबला
ग्वालियर अंचल की मुंगावली सीट भी काफी अहम मानी जा रही है, सीट की अहमियत इसलिए भी है क्योंकि मुंगावली सीट ज्योतिरादित्य सिंधिया के प्रभाववाली सीटों में से एक मानी जाती रही है. ये सीट सिंधिया के कट्टर समर्थक माने जाने वाले बृजेन्द्र सिंह यादव के इस्तीफे के बाद खाली हुई थी. अब बीजेपी ने बृजेंद्र को ही मैदान में उतारा है. तो कांग्रेस ने कन्हईराम लोधी पर दांव लगाया है. जबकि बसपा ने वीरेंद्र शर्मा को प्रत्याशी बनाया है.
साल 2013 के उपचुनाव में मुंगावली विधानसभा से महेंद्र सिंह कालूखेड़ा चुनाव जीते थे. उनका सामना भाजपा के प्रत्याशी राव देशराज सिंह से था. लेकिन अचानक महेंद्र सिंह कालूखेड़ा का निधन होने के बाद इस सीट पर उपचुनाव हुआ. जिसमें कांग्रेस से बृजेंद्र सिंह यादव और बीजेपी से दिवंगत देशराज सिंह यादव की पत्नी बाई साहब यादव को टिकट मिला. इस उपचुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी बृजेंद्र सिंह यादव विजयी हुए. साल 2018 में कांग्रेस पार्टी से बृजेंद्र सिंह यादव को टिकट मिला, तो वहीं भारतीय जनता पार्टी ने डॉक्टर केपी यादव को मैदान में उतारा. लेकिन बृजेंद्र सिंह यादव ने फिर बाजी मारते हुए कांग्रेस को विजय हासिल कराई. हालांकि अब बृजेंद्र सिंह यादव बीजेपी के पाले में है.
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- अशोकनगर- जजपाल बिछाएंगे जाल या आशा जीतेंगी जनता का भरोसा
अशोकनगर विधानसभा सीट बीजेपी का गढ़ माना जाता है. लेकिन 2018 के चुनाव में इस सीट से बीजेपी प्रत्याशी लड्डू राम कोरी को मात देकर जजपाल सिंह जज्जी ने कांग्रेस से चुनाव जीता था, लेकिन ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ जजपाल सिंह जज्जी ने भी भाजपा का दामन थामा लिया था. जिसके बाद यह सीट खाली हुई थी. अब बीजेपी ने भी सिंधिया के समर्थक जजपाल सिंह जज्जी को ही उम्मीदवार बनाया है. जजपाल सिंह का मुकाबला उन्हीं के साथ कांग्रेस पार्टी में काम करने वाली कांग्रेस नेता अनीता जैन की बहू आशा दोहरे को कांग्रेस ने उम्मीदवार बनाया है.
राजनीतिक विशेषज्ञों की राय है कि अशोकनगर में सभी प्रकार के मुद्दे खत्म हो चुके हैं. केवल बीजेपी 6 महीने के शिवराज सिंह सरकार के कार्यकाल का हवाला दे रही है. तो वहीं कांग्रेसी टिकाऊ और बिकाऊ पर अड़ी हुई हैं. लेकिन जनता अभी बिल्कुल शांत हैं. वह कुछ भी कहने से कतरा रहा है. लिहाजा आने वाली 10 नवबंर को किसे जीत मिलेगी इसका निर्णय जनता करेंगी.
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- भांडेर- हाईप्रोफाइल सीट का सियासी समीकरण
भांडेर विधानसभा सीट ग्वालियर चंबल की सबसे हाई प्रोफाइल सीट मानी जा रही है, यहां ज्योतिरादित्य सिंधिया की कट्टर समर्थक रक्षा सिरोनिया का मुकाबला कांग्रेस के बड़े नेता फूल सिंह बरैया से है. खास बात यह है उपचुनाव के दौरान फूल सिंह बरैया के कई फर्जी वीडियो एडिट कर सोशल मीडिया पर वायरल किए गए और भाजपा के पक्ष में माहौल बनाने का प्रयास किया गया जिससे राजनीति और नफरत और तेज हो गई है.
एक बड़े लंबे अरसे से अनुसूचित जाति के लिए भांडेर सीट आरक्षित है, इस चुनाव में दल बदले, लेकिन चेहरे वहीं पुराने हैं, जिसमें कांग्रेस पार्टी की लंबी सेवा करने के बाद इस बार टिकट न मिलने से नाराज पूर्व गृह मंत्री रहे महेंद्र बौद्ध ने मैदान में हैं. महेंद्र बौद्ध कांग्रेस पार्टी को छोड़कर बीएसपी से भांडेर में एक बार फिर किस्मत आजमाते हुए दिखाई दे रहे हैं.
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- पोहरी- पोहरी में किसकी जड़े 'गहरी'
पोहरी विधानसभा सीट में पिछले 43 सालों से सिर्फ धाकड़ या ब्राह्मण उम्मीदवारों ने ही जीत का स्वाद चखा है. इस बार उपचुनाव में भी मुख्य मुकाबला इन दोनों जातियों के ही उम्मीदवारों के बीच है. बीजेपी की ओर से जहां सुरेश राठखेड़ा चुनवी मैदान में हैं तो वहीं कांग्रेस की ओर से हरिवल्लभ शुक्ला मैदान में हैं.इसके अलावा बसपा ने कैलाश कुशवाह को चुनावी मैदान में खड़ा किया गया है. पोहरी विधानसभा के चुनाव में साल 1977 के बाद से हमेशा ही इन दोनों जातियों के उम्मीदवारों के बीच मुकाबला रहा है. हालांकि यहां पर धाकड़ जाति के वोट ब्राह्मण जाति के मुकाबले कई ज्यादा हैं.
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- करैरा- किसकी जद में होगी सियासत की गर्दन
करैरा विधानसभा सीट में बीजेपी प्रत्याशी जसमंत जाटव को लोगों के बीच भारी विरोध का सामना करना पड़ रहा है. क्षेत्र की जनता फिलहाल इस बात से नाराज है कि न तो उनके क्षेत्र से सोन चिरैया अभ्यारण्य हटाने को लेकर कोई कदम उठाया है और न ही सड़क और स्वास्थ्य जैसी मूलभूत सुविधाओं को लेकर कोई काम किया है. क्षेत्र की जनता का आरोप है कि भाजपा प्रत्याशी क्षेत्र के विकास के लिए गंभीर नहीं हैं यहीं वजह है कि करैरा की जनता भाजपा प्रत्याशी से नाराज है. इसके साथ ही राजनीतिक जानकारों के मुताबिक बीजेपी प्रत्याशी जब जनता के बीच में पहुंच रहे हैं तो बिकाऊ वाला मुद्दा जोर पकड़ रहा है. जिस वजह से बीजेपी प्रत्याशी को लोगों को समझाने बुझाने में कड़ी मशक्कत करनी पड़ रही है.
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