भोपाल। मध्यप्रदेश की सियासत इन दिनों उपचुनाव के सियासी रंग में रंगी हुई है. कमलनाथ सरकार गिरने के बाद सूबे की 28 सीटों उपचुनाव हो रहा है. मध्यप्रदेश के सीएम शिवराज सिंह चौहान शनिवार को अशोकनगर जिले के दौरे में थे, यहां उन्होंने भाजपा उम्मीदवार के पक्ष में जनसभा को संबोधित किया, लेकिन वो अशोकनगर नहीं गए. उन्होंने सभा को अशोकनगर से 9 किमी दूर संबोधित किया. इसकी वजह अशोकनर से जुड़ा एक मिथक है.
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मिथक ऐसा कि यहां आने वाले 10 मुख्यमंत्रियों को अपनी कुर्सी गंवानी पड़ी. इस फेहरिस्त में कैलाश नाथ काटजू से लेकर दिग्विजय सिंह भी शामिल हैं. शायद यही वजह है कि 13 साल से मुख्यमंत्री रहे शिवराज सिंह चौहान ने एक भी अशोकनगर नहीं आए. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की अपने कार्यकाल के दौरान कई बार अशोकनगर में कार्यक्रम आयोजित किए गए, लेकिन अंतिम समय में रद्द कर दिए गए.
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हाल ही में शनिवार को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अशोकनगर दौरा किया, लेकिन उनका कार्यक्रम शहर से 10 किलोमीटर दूर आयोजित किया गया. शिवराज सिंह चौहान ने अपने तीसरे कार्यकाल के दौरान साल 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में 230 विधानसभा क्षेत्रों में जन आशीर्वाद यात्रा निकाली थी, लेकिन अशोकनगर और इछावर में उनकी यात्रा का कोई प्लान नहीं रहा.
किस किस ने गंवाई कुर्सी
- कैलाश नाथ काटजू 1962 में अशोकनगर में नगर पालिका की स्थापना करने गए थे और उन्हें अपनी कुर्सी गंवानी पड़ी.
- भगवतशरण मंडलोई 1963 में कॉलेज का शुभारंभ करने गए थे और उसके बाद वो भी सत्ता से बाहर हुए.
- डीपी मिश्रा 1966 में लोकसभा चुनाव कराने पहुंचे थे और 1967 में वो भी पद से विदा किए गए
- 1975 में तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रकाश चंद्र सेठी इसी साल पार्टी के अधिवेशन में अशोकनगर गए और साल खत्म होते-होते दिसंबर 1975 को उनकी कुर्सी चली गई.
- 1977 में तत्कालीन मुख्यमंत्री श्यामाचरण शुक्ला तुलसी सरोवर का लोकार्पण करने अशोकनगर गए. इसके बाद 29 मार्च 1977 को राष्ट्रपति शासन लगा और उन्हें अपना पद छोड़ना पड़ा.
- वीरेंद्र सकलेचा 1980 में चुनावी सभा करने पहुंचे थे और वह भी कुर्सी से बेदखल हुए
- 1985 में कांग्रेस के कद्दावर नेता अर्जुन सिंह भी इस मिथक के जाल में फंस गए. उनके मुख्यमंत्री रहते तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी दौरे पर आए और अर्जुन सिंह को उनके साथ अशोकनगर जाना पड़ा, फिर सियासी हालात ऐसे बने कि उन्हें अपनी मुख्यमंत्री की कुर्सी गंवानी पड़ी.
- 1988 में मुख्यमंत्री मोतीलाल वोरा अशोकनगर के रेलवे स्टेशन के फुट ओवरब्रिज का उद्घाटन के लिए रेलमंत्री माधवराव सिंधिया के साथ पहुंचे थे. इसके बाद उन्हें सीएम की कुर्सी से हटना पड़ा.
- 1992 में अशोकनगर में कल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव में मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा शामिल होने पहुंचे. इसके बाद उनकी कुर्सी चली गई. दरअसल, इसी साल अयोध्या के विवादित ढांचे को ढहाया गया था, जिसके कारण भाजपा शासित राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया और सुंदरलाल पटवा को कुर्सी छोड़नी पड़ी.
- कुर्सी गंवाने वालों की फेहरिस्त में दिग्विजय सिंह का नाम भी शामिल है. वे यहां पर 2001 में माधवराव सिंधिया के देहांत के बाद खाली हुई सीट पर ज्योतिरादित्य सिंधिया के प्रचार के लिए गए थे. फिर भी उनकी कुर्सी नहीं बची. हालांकि उनकी कुर्सी जाने में थोड़ा वक्त लगा, 2003 में उमा भारती ने कुर्सी से बेदखल कर दिया.
बीजेपी ने दी सफाई
अशोक नगर से मुख्यमंत्री शिवराज सिंह की दूरी को लेकर बीजेपी प्रवक्ता रजनीश अग्रवाल का कहना है कि कार्यक्रम स्थल के लिए जगह की आवश्यकता होती है और स्थानीय कार्यकर्ताओं के अनुसार कार्यक्रम स्थल तय किया जाता है और कई बार ऐसी मान्यताएं होती हैं तो उन मान्यताओं को मानने पर कोई बुराई नहीं है.
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कांग्रेस ने साधा निशाना
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की अशोकनगर से दूरी को लेकर कांग्रेस प्रवक्ता नरेंद्र सलूजा का कहना है कि शिवराज सिंह चौहान को कुर्सी से बड़ा प्रेम है. शायद यही कारण है कि वो कभी अशोकनगर नहीं जाते, लेकिन इस बार जनता उन्हें कुर्सी से बेदखल कर ही देगी.
राजनीतिक जानकारों की नजर में मिथक
अशोकनगर से जुड़े मिथक को लेकर वरिष्ठ पत्रकार दीपक तिवारी का कहना है कि कई बार व्यक्ति को जब कम मेहनत में ज्यादा रिटर्न मिलता है तो कई प्रकार के मिथक मानने लगता हैं. ऐसा कई बार सेलिब्रिटी और राजनेताओं के साथ होता है, जबकि देश के संविधान में भी साइंटिफिक टेंपल की बात कही गई है. ऐसे में इस तरीके के मिथक पर विश्वास करना कहीं ना कहीं अंधविश्वास को जन्म देना है.