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भोपाल में अब्दुल जब्बार की पत्नि सायरा की गुहार, पद्मश्री का शुक्रिया सरकार, पेंशन देती तो गुजर हो जाती - सरकार पेंशन देती तो गुजर हो जाती

मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल की गैस त्रासदी तो शायद ही कोई भूल पाएगा. आज भी उसकी याद आते ही लोगो के दिलों में सिहरन सी उठ जाती है. इसी भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ितों के लिए लड़ने वाले वाले थे अब्दुल जब्बार. करीब 35 वर्षों की लम्बी लड़ाई लड़ते-लड़ते वह इस दुनिया से रुखसत हो गए. सरकार ने जरूर उन्हें पद्मश्री से नवाजा लेकिन उनका परिवार इस समय मुफलिसी में जीवन जीने को मजबूर है. (Abdul Jabbar wife saira pleaded in bhopal)

Abdul Jabbar wife saira pleaded in bhopal
भोपाल में अब्दुल जब्बार की पत्नि सायरा की गुहार
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Published : Jan 11, 2023, 7:32 PM IST

अब्दुल जब्बार की पत्नि सायरा की गुहार सरकार पेंशन देती तो गुजर हो जाती

भोपाल। ये कितना अफसोसनाक है कि जो शख्स पूरी जिंदगी भोपाल गैस पीड़ितों के साथ इस शहर की हर मुश्किल में आवाज बना रहा, उसके जाने के बाद उसके परिवार के हिस्से आए मुसीबतों के पहाड़ के सामने उसका अपना परिवार तन्हा खड़ा है. अपने तीन बच्चों की बमुश्किल परवरिश कर पा रहीं सायरा जब्बार के एक बयान में कितना बड़ा सवाल है कि जब्बार साहब की खुद्दारी और ईमान की कीमत अब उनके बच्चे चुका रहे हैं. भोपाल गैस त्रासदी का चेहरा अब्दुल जब्बार की मौत के बाद से उनकी पत्नि सायरा और तीन बच्चे मुफलिसी और मुश्किलों के दौर से गुजर रहे हैं और हैरत की बात ये कि हर हाथ का साथ बन जाने वाले जब्बार भाई के अपने परिवार की खैर खबर लेने वाला भी कोई नहीं. ईटीवी भारत खास बातचीत के दौरान सायरा जब्बार अपने दिल का दर्द साझा किया. (Thanks to government for padmashree)

समाज सेवी अब्दुल जब्बार को पद्मश्री मिलने पर परिवार में खुशी, लेकिन आर्थिक तंगी से गुजर रहा परिवार

पद्मश्री के बजाए पेंशन दे देतेः गैस पीड़ितों के इंसाफ की लंबी लड़ाई और भोपाल में पर्यावरण के लिए किए गए कार्यों को लेकर अब्दुल जब्बार मरणोपरांत पद्मश्री से भी नवाजे गए. पत्नी सायरा पद्मश्री का प्रमाण पत्र और तमगा दिखाते हुए कहती हैं ये हासिल है. पूरी जिंदगी खपा देने के बदले ये मिला है बस. फिर कहतीं हैं पद्मश्री देने के लिए शुक्रगुजार हूं मैं सरकार की. उनके काम को सराहा इतनी इज्जत बख्शी. इससे बेहतर होता कि अगर पद्मश्री के बजाए मेरी पेंशन शुरु कर देते तो बच्चों की फीस तो भर जाती. जब्बार साहब की खुद्दारी खून में है मेरे बच्चों के. वो मुश्किल से जूझते रहेंगे पर कभी कहेंगे नहीं. वो उसी खुद्दारी से जी सकें इसलिए इतना चाहती हूं कि कुछ न हो सके तो मेरे बेटे को सरकारी नौकरी मिल जाए. बारहवीं का इम्तिहान दिया है इस साल. सायरा बताती हैं काम तो वो अभी से कर रहा है. पार्ट टाइम नौकरी करके घर का और अपना खर्चा निकालता है. (If government given pension it would have helpful)

जब्बार साहब के जाने के बाद किसी ने नहीं पूछाः सायरा का सबसे बड़ा अफसोस ये है कि अब्दुल जब्बार के जाने के बाद बहुत जल्दी लोगों ने उन्हें भुला दिया. सायरा कहती हैं जब जब्बार भाई जैसे उस शख्स को लोग भूल गए जिसने अपनी जेब की आखिरी रेजगारी भी किसी की मदद में दे दी. हमें, उनके परिवार वालो को कौन पूछता. उनके जाने के बाद किसी का एक फोन नहीं आया कि सायरा कैसी हो. उन्होंने अपनी जिंदगी के 35 साल लोगों की मुश्किलों से निपटने में ही लगा दिये. अपनी जिंदगी के कीमती 35 साल उन्होंने गैस पीड़ितों की लड़ाई में दिए और आखिरी सांस तक लड़ते रहे. (No one asked after Jabbar sahib left)

मेरी दरख्वास्त है उनकी याद में अस्पताल बन जाएः सायरा कहती हैं जब्बार साहब को तो वक्त पर सही ईलाज नहीं मिल सका. पूरी उम्र वो भोपाल के मजलूमों के इलाज उनकी गुजर के लिए लड़ते रहे. मेरी ख्वाहिश है कि उनका नाम बना रहे इसके लिए उनके नाम पर एक अस्पताल खोल दे सरकार. जिसमें गरीबों को बड़ी से बड़ी बीमारी का मुफ्त इलाज मिले. (I request a hospital should be built in his memory)

जूता फटा न होता तो नहीं जाते जब्बार साहबः सायरा जब्बार बताती हैं कि फटे जूते ने जब्बार साहब की जान ले ली. वो पूरा वाकया बताती हैं कि किस तरह से फटा जूता होने की वजह से मोजा गीला हुआ और पैर में संक्रमण बढ़ता गया. सायरा कहती हैं नए जूते खरीदने पैसे नहीं थे. एक जरा सा इन्फेक्शन इतना बढ़ता गया कि जानलेवा हो गया. पैरों को काटने का सदमा वो बर्दाश्त नहीं कर पाए. सरकार ने भी मदद देने में भी बहुत देर कर दी. वक्त से सही इलाज मिल जाता तो जी जाते जब्बार साहब. (Had shoe not been torn Jabbar would not have gone)

अब्दुल जब्बार की पत्नि सायरा की गुहार सरकार पेंशन देती तो गुजर हो जाती

भोपाल। ये कितना अफसोसनाक है कि जो शख्स पूरी जिंदगी भोपाल गैस पीड़ितों के साथ इस शहर की हर मुश्किल में आवाज बना रहा, उसके जाने के बाद उसके परिवार के हिस्से आए मुसीबतों के पहाड़ के सामने उसका अपना परिवार तन्हा खड़ा है. अपने तीन बच्चों की बमुश्किल परवरिश कर पा रहीं सायरा जब्बार के एक बयान में कितना बड़ा सवाल है कि जब्बार साहब की खुद्दारी और ईमान की कीमत अब उनके बच्चे चुका रहे हैं. भोपाल गैस त्रासदी का चेहरा अब्दुल जब्बार की मौत के बाद से उनकी पत्नि सायरा और तीन बच्चे मुफलिसी और मुश्किलों के दौर से गुजर रहे हैं और हैरत की बात ये कि हर हाथ का साथ बन जाने वाले जब्बार भाई के अपने परिवार की खैर खबर लेने वाला भी कोई नहीं. ईटीवी भारत खास बातचीत के दौरान सायरा जब्बार अपने दिल का दर्द साझा किया. (Thanks to government for padmashree)

समाज सेवी अब्दुल जब्बार को पद्मश्री मिलने पर परिवार में खुशी, लेकिन आर्थिक तंगी से गुजर रहा परिवार

पद्मश्री के बजाए पेंशन दे देतेः गैस पीड़ितों के इंसाफ की लंबी लड़ाई और भोपाल में पर्यावरण के लिए किए गए कार्यों को लेकर अब्दुल जब्बार मरणोपरांत पद्मश्री से भी नवाजे गए. पत्नी सायरा पद्मश्री का प्रमाण पत्र और तमगा दिखाते हुए कहती हैं ये हासिल है. पूरी जिंदगी खपा देने के बदले ये मिला है बस. फिर कहतीं हैं पद्मश्री देने के लिए शुक्रगुजार हूं मैं सरकार की. उनके काम को सराहा इतनी इज्जत बख्शी. इससे बेहतर होता कि अगर पद्मश्री के बजाए मेरी पेंशन शुरु कर देते तो बच्चों की फीस तो भर जाती. जब्बार साहब की खुद्दारी खून में है मेरे बच्चों के. वो मुश्किल से जूझते रहेंगे पर कभी कहेंगे नहीं. वो उसी खुद्दारी से जी सकें इसलिए इतना चाहती हूं कि कुछ न हो सके तो मेरे बेटे को सरकारी नौकरी मिल जाए. बारहवीं का इम्तिहान दिया है इस साल. सायरा बताती हैं काम तो वो अभी से कर रहा है. पार्ट टाइम नौकरी करके घर का और अपना खर्चा निकालता है. (If government given pension it would have helpful)

जब्बार साहब के जाने के बाद किसी ने नहीं पूछाः सायरा का सबसे बड़ा अफसोस ये है कि अब्दुल जब्बार के जाने के बाद बहुत जल्दी लोगों ने उन्हें भुला दिया. सायरा कहती हैं जब जब्बार भाई जैसे उस शख्स को लोग भूल गए जिसने अपनी जेब की आखिरी रेजगारी भी किसी की मदद में दे दी. हमें, उनके परिवार वालो को कौन पूछता. उनके जाने के बाद किसी का एक फोन नहीं आया कि सायरा कैसी हो. उन्होंने अपनी जिंदगी के 35 साल लोगों की मुश्किलों से निपटने में ही लगा दिये. अपनी जिंदगी के कीमती 35 साल उन्होंने गैस पीड़ितों की लड़ाई में दिए और आखिरी सांस तक लड़ते रहे. (No one asked after Jabbar sahib left)

मेरी दरख्वास्त है उनकी याद में अस्पताल बन जाएः सायरा कहती हैं जब्बार साहब को तो वक्त पर सही ईलाज नहीं मिल सका. पूरी उम्र वो भोपाल के मजलूमों के इलाज उनकी गुजर के लिए लड़ते रहे. मेरी ख्वाहिश है कि उनका नाम बना रहे इसके लिए उनके नाम पर एक अस्पताल खोल दे सरकार. जिसमें गरीबों को बड़ी से बड़ी बीमारी का मुफ्त इलाज मिले. (I request a hospital should be built in his memory)

जूता फटा न होता तो नहीं जाते जब्बार साहबः सायरा जब्बार बताती हैं कि फटे जूते ने जब्बार साहब की जान ले ली. वो पूरा वाकया बताती हैं कि किस तरह से फटा जूता होने की वजह से मोजा गीला हुआ और पैर में संक्रमण बढ़ता गया. सायरा कहती हैं नए जूते खरीदने पैसे नहीं थे. एक जरा सा इन्फेक्शन इतना बढ़ता गया कि जानलेवा हो गया. पैरों को काटने का सदमा वो बर्दाश्त नहीं कर पाए. सरकार ने भी मदद देने में भी बहुत देर कर दी. वक्त से सही इलाज मिल जाता तो जी जाते जब्बार साहब. (Had shoe not been torn Jabbar would not have gone)

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