भोपाल। राजधानी भोपाल के भारत भवन में 'आकार' नाटक का मंचन किया गया, 'अतिथि' का मंचन बताता है कि विचारों का दमन हर समय, हर युग में होता रहा है, फिर चाहे दमन का कारण कोई भी रहा हो. त्रिकाशी भोपाल की इस प्रस्तुति की परिकल्पना और निर्देशन केजी त्रिवेदी ने किया.
नाटक में बताया गया कि 4 लोग किसी व्यक्ति की हत्या करने के लिए प्रस्थान करने ही वाले होते हैं कि उनमें से एक व्यक्ति को इस कृत्य के प्रति शंका होती है. वह बाकी तीनों व्यक्तियों में से एक बार और विचार करने की बात कहता है. शंकित युवक को उस व्यक्ति का प्रतिनिधि बनाया जाता है, जिसे मारा जाना है. अधेड़ उम्र के व्यक्ति को जज, प्रथम व्यक्ति को सरकारी वकील और द्वितीय व्यक्ति को गवाह की भूमिका दी जाती है. फिर शुरू होता है आरोप- प्रत्यारोप बचाव और लांछन.
अदालत में एक-एक करके उस पर सिद्धांतों-विचारों और त्याग को ही अभियोग के रूप में प्रस्तुत किया जाता है, जो समाज और राष्ट्र हित के लिए उसने प्रयोग किए थे. सत्य के आगे ये सारे बेबुनियाद आरोप धराशाई हो जाते हैं, लेकिन संहिता के विपरीत जज पूर्व निर्धारित फैसले को ही सुना देता है और उस व्यक्ति की हत्या कर दी जाती है.
'आकार' में बताया गया कि आत्मा न पैदा होती है, न मरती है, वह तो ऊर्जा की तरह बस अपना रूप बदलती रहती है. किसी व्यक्ति के शरीर को तो नष्ट किया जा सकता है, पर उसके सिद्धांतों और विचारों को नहीं. वह सिद्धांत और विचार किसी न किसी रूप में विद्यमान रहते हैं और समय आने पर भौतिक रूप ले लेती है.