भोपाल। साल 1984 के दिसंबर महीने की 2-3 तारीख की दरम्यानी रात भोपाल शहर गैस चेंबर बन गया था, चारों तरफ लाशें बिछी थीं, चीख न सिसकी बस चारों तरफ मौत का सन्नाटा पसरा था क्योंकि सांसों में मौत घुली थी, उस वक्त कोई किसी को बचाने वाला नहीं था, जो मौत के चेंबर में था, उसमें किसी का भी जिंदा बचना नामुमकिन था, लेकिन कुछ ऐसे भी नायक थे, जिन्होंने लोगों को मौत के चेंबर तक पहुंचने से पहले ही रोक लिया था.
जब हजारों लोग मौत से जंग लड़ रहे थे, तब भोपाल के स्टेशन मास्टर हरीश धुर्वे की समझ ने उन्हें हजारों लोगों का मसीहा बना दिया था, जिन्हें उन्होंने मौत के मुंह में जाने से बचा लिया था और हजारों यात्रियों को लेकर आ रही ट्रेन को मौत के चेंबर तक पहुंचने से पहले ही ब्रेक लगवा दिया था और उनकी सूझबूझ से हजारों यात्रियों की जान बच गई, जिसकी तस्दीक उनके सहयोगी रहे कर्मचारी खुद ही कर रहे हैं कि कैसे हरीश धुर्वे अपनी शहादत देकर भी हजारों लोगों को जीवन दे गए.
भोपाल गैस त्रासदीः मौत की नींद सोकर भी हरीश धुर्वे ने बचाई थी हजारों की जान - भोपाल रेलवे स्टेशन
भोपाल गैस त्रादसी के दौरान स्टेशन मास्टर हरीश धुर्वे ने हजारों लोगों की जान बचाई थी. इतना ही नहीं लोगों की जान बचाते-बचाते धुर्वे ने खुद अपनी जान गंवा दी थी.
भोपाल। साल 1984 के दिसंबर महीने की 2-3 तारीख की दरम्यानी रात भोपाल शहर गैस चेंबर बन गया था, चारों तरफ लाशें बिछी थीं, चीख न सिसकी बस चारों तरफ मौत का सन्नाटा पसरा था क्योंकि सांसों में मौत घुली थी, उस वक्त कोई किसी को बचाने वाला नहीं था, जो मौत के चेंबर में था, उसमें किसी का भी जिंदा बचना नामुमकिन था, लेकिन कुछ ऐसे भी नायक थे, जिन्होंने लोगों को मौत के चेंबर तक पहुंचने से पहले ही रोक लिया था.
जब हजारों लोग मौत से जंग लड़ रहे थे, तब भोपाल के स्टेशन मास्टर हरीश धुर्वे की समझ ने उन्हें हजारों लोगों का मसीहा बना दिया था, जिन्हें उन्होंने मौत के मुंह में जाने से बचा लिया था और हजारों यात्रियों को लेकर आ रही ट्रेन को मौत के चेंबर तक पहुंचने से पहले ही ब्रेक लगवा दिया था और उनकी सूझबूझ से हजारों यात्रियों की जान बच गई, जिसकी तस्दीक उनके सहयोगी रहे कर्मचारी खुद ही कर रहे हैं कि कैसे हरीश धुर्वे अपनी शहादत देकर भी हजारों लोगों को जीवन दे गए.
Body:भोपाल स्टेशन पर भी सैकड़ों की संख्या में यात्री मौजूद थे जो गैस के कारण परेशान होने लगे थे। ऐसे हालात में स्टेशन प्रबंधक हरीश धुर्वे औऱ उनके स्टाफ ने सूझ-बूझ से काम लिया और स्टेशन पर आने वाले आगामी ट्रेनों को रोकने के लिए नजदीकी स्टेशनों पर तत्काल सूचना दी।
इटारसी की ओर से आने वाली ट्रेनों को अब्दुल्लागंज,मिसरोद स्टेशन पर रोका गया और बीना की तरफ से आने वाली ट्रेनों को सलामतपुर और विदिशा पर ही रोक दिया गया।
इन ट्रेनों में हज़ारों की संख्या में यात्री सफर कर रहे थे, अगर समय रहते इन्हें नहीं रुकवाया गया होता तो सभी यात्री जहरीली गैस की चपेट में आ जाते।
Conclusion:इस दौरान स्टेशन प्रबंधक हरीश धुर्वे अपनी जान गवां बैठे और इस हादसे के 1 सप्ताह के अंदर ही कई कर्मचारियों में दम तोड़ दिया।
इन सबकी याद में भोपाल स्टेशन में स्मारक बनाया गया है और करीब 44 कर्मचारियों को शहीद का दर्जा दिया गया है।
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