भोपाल। चीन से निकले कोरोना वायरस ने दुनियाभर में कहर बरपाया हुआ है. इस वायरस के कारण देशभर में हुए लॉकडाउन ने लोगों की रोजमर्रा की जिंदगी को बदलकर रख दिया है. जहां हर वर्ग को इस लॉकडाउन की मार झेलनी पड़ी है. खासतौर पर शैक्षणिक संस्थानों में इस लॉकडाउन से पढ़ाई का बहुत नुकसान हुआ है. इसके कारण सभी छोटे बड़े पुस्तकालय तीन महीने तक बंद थे. ऐसे में जो छात्र कॉम्पिटेटिव एग्जाम की तैयारियों में दिनरात लाइब्रेरी में गुजारा करते थे, उनकी पढ़ाई का भारी नुकसान हुआ है. भोपाल की सबसे पुरानी सेंट्रल लाइब्रेरी अनलॉक वन में खुल गई है, लेकिन जिस लाइब्रेरी में बैठने को जगह नहीं मिलती थी आज वो वीरान पड़ी हुई है.
65 साल पुरानी है लाइब्रेरी
भोपाल की मौलाना आजाद लाइब्रेरी 65 साल पुरानी है. इस लाइब्रेरी में प्रदेशभर के लोगों ने रजिस्ट्रेशन कराया है, क्योंकि इस लाइब्रेरी में दो सौ साल पुरानी किताबें मौजूद हैं. जिसे देखने और पढ़ने की उत्सुकता हर पुस्तक प्रेमी को होती है. मौलाना आजाद सेंट्रल लाइब्रेरी की स्थापना 13 अगस्त 1955 को हुई थी और इस लाइब्रेरी का नाम देश के पहले शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आजाद के नाम पर रखा गया है. आज 65 साल बाद भी इस लाइब्रेरी में बैठने वालों की संख्या कम नहीं हुई है. इस लाइब्रेरी में हर दिन हजार से ज्यादा बच्चे और बुजुर्ग बैठकर पढ़ाई करते हैं.
प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारियों के लिए कराते हैं रजिस्ट्रेशन
मौलाना आजाद लाइब्रेरी में ज्यादातर छात्र प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने के लिए आते हैं. 600 से अधिक छात्र प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारियों के लिए इस लाइब्रेरी में रजिस्ट्रेशन कराते हैं और हर रोज सुबह से लेकर रात तक बैठकर पढ़ाई करते हैं. यहां तक की आईएएस,आईपीएस भी लाइब्रेरी में विजिट करते हैं.
हिंदी, अंग्रेजी, उर्दू और फारसी भाषा का कलेक्शन
लाइब्रेरी की ग्रंथपाल वंदना शर्मा ने बताया कि सुबह 11 बजे से लाइब्रेरी में लाइन लगना शुरू हो जाती है, ये प्रदेश की सबसे बड़ी पब्लिक लाइब्रेरी है. जहां 85 सौ से अधिक सदस्य संख्या है. उन्होंने बताया कि इस लाइब्रेरी में हिंदी-अंग्रेजी के अलावा उर्दू, फारसी भाषा का विशेष कलेक्शन है. यहां आठ प्रकार की भाषाओं की पुस्तकें उपलब्ध है. करीब 20 हजार पुस्तकें प्रतियोगी परीक्षा से संबंधित हैं, 50 प्रकार के साप्ताहिक पत्रिका और 22 दैनिक अखबार छात्रों और सदस्यों को उपलब्ध कराए जाते हैं. लाइब्रेरी न्यूनतम शुल्क पर एक साल की सदस्यता देती है.
बेस्ट पब्लिक लाइब्रेरी ऑफ द ईयर 2019
वंदना शर्मा ने बताया कि 1995 से अब तक सेंट्रल लाइब्रेरी में कई बदलाव हुए हैं. 1955 में सेंट्रल लाइब्रेरी में जहां 30 हजार के पुस्तकें थी, वर्तमान में एक लाख से अधिक पुस्तकें उपलब्ध है. लाइब्रेरी का संचालन अजायबघर में होता है. जिसका निर्माण 1908 में भोपाल के नवाब सुल्तान जहांबेगम ने कराया था. इसे बेस्ट पब्लिक लाइब्रेरी ऑफ द ईयर 2019 का अवार्ड भी मिल चुका है.
आज भी मौजूद हैं 200 साल पुरानी किताबें
इस लाइब्रेरी में 200 साल पुरानी किताबें हैं जिन्हें सहेज कर रखा गया है. इन किताबों की देखभाल करना आसान नहीं है, क्योंकि 200 साल पुरानी किताबों के पन्ने पूरी तरह से गल चुके हैं, लेकिन इन किताबों को कांच के अंदर सहेज कर रखा है. इन किताबों को किसी को टच करने नहीं दिया जाता और यही वजह है कि इन किताबों का डिजिटाइजेशन हो चुका है. लाइब्रेरी की 400 से अधिक किताबें ऐसी हैं जो सवा सौ साल पुरानी है. इन किताबों का डिजिटलाइजेशन हो चुका है और कई किताबें ऐसी हैं जिनका डिजिटलाइजेशन होना अभी बाकी हैं.
लाइब्रेरी पर कोरोना का असर
भोपाल की सबसे बड़ी और सबसे पुरानी लाइब्रेरी में भी कोरोना का असर देखने को मिला है. जिस लाइब्रेरी में छात्रों को बैठने के लिए कुर्सियों की लड़ाई लड़नी पड़ती थी, आज वह लाइब्रेरी सूनी पड़ी है, लेकिन जो बुजुर्ग इस लाइब्रेरी में हर रोज अपना समय बिताने आते थे वह आज भी आते हैं. बुजुर्गों की संख्या लॉकडाउन के चलते बढ़ गई है. भले ही लाइब्रेरी के अंदर उन्हें बैठने की परमिशन ना हो, लेकिन वे बुक इशू करा कर बाहर बैठकर पढ़ते हैं.
लाइब्रेरी में सुरक्षा व्यवस्था का खास ख्याल
लॉकडाउन के बाद लाइब्रेरी में सुरक्षा व्यवस्था का खास ख्याल रखा जा रहा है. किताबों को सैनिटाइज नहीं किया जा सकता. इसीलिए जो भी बुक इशू होती है उस बुक को 10 दिन तक लाइब्रेरी के बाहर एक कॉर्नर पर रखा जाता है. जब वह बुक वापस आती है तब भी उसे 10 दिन तक बाहर रखा जाता है और 10 दिन बाद उसे लाइब्रेरी के अंदर किताबों के बीच रखा जाता है. जिससे संक्रमण लाइब्रेरी के अंदर तक ना आ पाए. फिलहाल लाइब्रेरी में किसी को एंट्री नहीं है, लेकिन पुस्तकों के प्रेमी बुक इशू कराने के लिए अब भी आ रहे हैं.