भोपाल। मप्र की राजधानी भोपाल से महज 35 किमी दूर स्थित रायसेन किला अपने शौर्य की कहानी खुद बयां करता है, इसी किले में राजपूत रानी दुर्गावती ने 6 मई 1532 को 700 महिलाओं के साथ दुर्ग के भीतर ही जौहर किया था. इस जौहर को आज 491 साल पूरे हो गए हैं, लेकिन इस इतिहास पर कोई चर्चा नहीं की जा रही है. ईटीवी भारत ने जब स्थानीय इतिहासकार राजीव चौबे से बात की तो उन्होंने बताया कि "समिति के माध्यम से कई बार यह बात उठाई गई कि इन 700 वीरांगनाओं के शौर्य का एक प्रतीक बनाया जाना चाहिए, लेकिन इस तरफ सरकार का कभी ध्यान नहीं गया. इस बार भी रायसेन किले पर एक भी शख्स दीपक लगाने के लिए भी नहीं गया, जिस किले में जौहर हुआ, वह चित्तोढ़ के किले की तरह ही भव्य बना हुआ है."
राणासांगा की पुत्री थी रानी दुर्गावती: जिस रानी दुर्गावती ने जौहर किया, राजस्थान के मेवाड़ घराने के राजा राणा सांगा की पुत्री थी, उनका विवाह रायसेन के तोमर घराने के राजा शिलादित्य से हुआ था. रायसेन के किले में हुए जौहर का उस समय के साहित्य और जनश्रुतियों में भी प्रमाण मिलता है और इस पर रिसर्च भी हुई है. इतिहासकार चौबे के अनुसार "गुजरात के बहादुर शाह जफर ने रायसेन किले पर विशाल मुगल सेना के साथ हमले के लिए कूच किया, इसके बाद 6 मई 1532 को रानी दुर्गावती ने 700 राजपूतानियों के साथ जौहर किया था. जौहर के पहले मंदिर में बने विशाल शिव मंदिर में जाकर कसम ली और बहादुर शाह जफर के सामने नहीं झुकने की सौगंध खाई. जब रानी दुर्गावती ने जौहर किया तो उस समय सिल्हादी का बेटा भूपति राय एक युद्ध अभियान पर गया था, उसे जब रायसेन में हुई इस घटना की जानकारी मिली तो वह लौटा और बहादुर शाह के सामंत को मार भगाया."
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रायसेन से उज्जैन तक थी शिलादित्य की रियासत: रानी दुर्गावती के पति शिलादित्य की रियासत रायसेन से उज्जैन तक थी, इसमें विदिशा, आष्टा यानी सीहोर आदि क्षेत्र भी आता था. इतिहासकार राजीव चौबे बताते हैं "गुजरात के शासक बहादुर शाह द्वितीय ने 1531 ईस्वी में मालवा पर आक्रमण किया था, तब तक रायसेन के शासक शिलादित्य से उसकी संधि हो चुकी थी. उधर दिल्ली में बाबर की मृत्यु के बाद हुमायूं गद्दी पर बैठ चुका था, लेकिन इस दौरान शेरशाह ने रायसेन पर विजय की योजना बना ली और बहादुर शाह को भी लग रहा था कि रायसेन पर अधिकार किए बगैर इस पूरे क्षेत्र पर उसका स्थायी अधिकार नहीं हो पाएगा. ऐसे में उसने रायसेन किले को जीतने की योजना बनाई, सबसे पहले उसने शिलादित्य के सहयोगियों को बंदी बनाया. घटना की खबर लगते ही शिलादित्य के बेटे लक्ष्मण सेन अपनी सेना के साथ रायसेन दुर्ग रवाना हुए, दुर्ग में जब लक्ष्मण सेन आए तो महारानी दुर्गावती और लक्ष्मण सेन के बीच चर्चा हुई कि हम वीरों की तरह शौर्य का प्रदर्शन कर प्राण त्यागेंगे, यानी जौहर करेंगे और पुरुष अंतिम सांस तक लड़ेंगे. 6 मई 1532 को रायसेन दुर्ग पर रानी महल के एक कुंड में जौहर की ज्वाला धधक उठी और रानी दुर्गावती अपने 700 राजपूत स्त्रियों व बच्चों को लेकर अग्नि कुंड में प्रवेश कर गई, दूसरी तरफ शिलादित्य और लक्ष्मण सेन सभी अंतिम समय तक सेना का नेतृत्व करते हुए 10 मई 1532 ईस्वी को वीरगति को प्राप्त हुए, इसके बाद से रायसेन में 6 मई को जौहर दिवस मनाया जाता है."