भोपाल। भोपाल का एक हिस्सा जब 38 बरस पुराने उस हादसे को तकरीबन भूलकर आगे बढ़ चुका है (38 years of bhopal gas tragedy). जब रवायत की तरह दो और तीन दिसम्बर की दरमियानी शाम और रात को कैंडल मार्च केवल इसलिए निकले जाते हैं कि भूलाए ना जाएं बेगुनाह भोपाल के हिस्से आए ज़ख्म. जब रस्मन प्रार्थनाओं की तरह गैस पीड़ितों की याद बची हो. तब वो चंद देहरे जो इस त्रासदी के आखिरी चश्मदीद भी हैं. त्रासदी खत्म नहीं हुई इस बात के आखिरी सबूत भी हैं. ईटीवी भारत पर दर्ज वो आवाज़ें जिन्होने पिछले 38 सालों में उस काली रात में निकले जहर को तिल तिल पिया है (victims told his pain on etv bharat).
इस कारखाने ने मेरी रोजी मेरी मशीन छीन ली: अगर सब ठीक रहता तो इस उम्र में भी नवाब भाई सिलाई मशीन दौड़ाते ब्याह के इन दिनों में दूल्हों के लिए शेरवानी तैयार कर रहे होते. 38 बरस पहले भी शादी ब्याह के ही दिन थे. नवाब भाई के पास सांस लेने की फुर्सत नहीं थी. न्यू मार्केट में गाईड टेलर के नाम से दुकान थी किराए पर. अब उनकी ज़ुबानी सुनिए हुआ क्या था.
जब गैस हादसा हुआ बुधवारा में वार्ड नंबर 23 में रहते था. गैस रिसी इसका मुझे पता तब चला जब आंखों से आंसू निकलने लगे. हम न्यू मार्केट की तरफ ही भागे. बीच में कमला पार्क में हौज भरा था. मैने सोचा कि पानी से आंख साफ कर लूं. तो एक जनाब ने कहा मियां ये मत कर लेना आंखे चली जाएंगी. आंख तो चली ही गई. दोनों आंखे जवाब दे रही हैं. दिखता भी नहीं और पानी भी आता रहता है. गैस कांड के बाद के पांच महीने तो बेकार ही गए, बीमार ही पड़े रहे. दुकान भी खाली करनी पड़ी. फिर 1989 में बीवी का इंतेकाल हो गया. 1991 में जवान बेटे की टीबी से मौत हो गई. छह बेटियां और एक छोटे बेटे को किस तरह से पाला है. जितनी जाने गईं सबके लिए यूनियन कार्बाइड जिममेदार है. उस रात को तो याद ही नहीं कर पाता. लाशों से ट्रक भरे थे और उनमें हम भी सवार. लोगों की तकलीफें देखी तो तय किया कि उनकी मदद करूंगा, अब जितना बनता है अस्पताल ले जाने में दवाईयां दिलवाने में मदद करता हूं.
Bhopal Gas Tragedy: सरकारों के दावे फेल, आज 38 साल बाद भी दूषित पानी पीने को मजबूर हैं रहवासी
जान बचाते भागते अपना बच्चा भी छूट गया: शहज़ादी की जिंदगी में अगर वो रात ना आई होती तो मुमकिन है कि कुछ तो शहज़ादी सी जिंदगी जी पाती, लेकिन एक रात में कहानी पलट गई और ऐसी पलटी की फिर अंधेरा ही अंधेरा.
भोपाल गैस त्रासदी (bhopal gas tragedy) क्या है हम से पूछिए. आठ साल छह साल दो साल के मेरे बच्चे जो उस वक्त थे. हार्ट पेशेंट हैं. इतनी सी उम्र में शुगर की बीमारी हो गई है. शौहर पंद्रह साल दवा खाते रहे, फिर चल बसे. वो रात तो आज भी आंखों में उतर आती है. हम सब भाग रहे थे हम. सोचिए लाशों के बीच में बैठकर भागे हैं. मेरा छोटा बेटा उस भागदौड़ में उसका हाथ ही छूट गया. पूरी रात बिलखती रही. सुबह ढूंढा उसे तो नन्ही बी की मस्जिद पर मिला. बच्चे तो जिंदा हैं, लेकिन किस हाल में हैं ये क्या बताएं. शौहर को तो गैस लील ही गई. 25 हजार के मुआवजे से क्या इसकी भरपाई हो सकती है.
Bhopal Gas Tragedy के 38 बरस, कैसे अब भी मिक गैस की लैब बना है भोपाल, कब खत्म होगी ये त्रासदी
किडनी तक पहुंच गया मिक गैस का असर: मुन्ने खां का तो खेल का मैदान ही यूनियन कार्बाइड के सामने था. कार्बाइड कारखाने के सामने रहने वाले मुन्ने खां की किडनी जवाब दे चुकी है. उन्होंने बताया कि डेढ बजे का वक्त था. पता चला कि गैस छूटी है. हम घबराए नहीं सुबह तक तो इंतज़ार किया. चार पांच बजे के करीब मरघट की तरफ भागे. देखा कि हम अकेले नहीं औरतें आदमी बच्चे जो जिस हाल में था भाग रहा था. रास्ते में देखा एक के ऊपर एक लाशें पड़ी हुई हैं, बहुत बुरा आलम था. मरघट के पास भैंसे पड़ी हुई थीं. उनकी भी मौत हो गई थी. तब समझ नहीं आया, लेकिन उस गैस ने धीरे धीरे शरीर खोखला करना शुरु कर दिया. मेरी एक किडनी खराब हो गई. है. आंखों की रोशनी भी जा रही है. गैस कांड में जितने लोग मरे उससे ज्यादा बाद में मरे हैं. अब उस वक्त के ज्यादातर लोग मर चुके हैं. गिनती के हम ही लोग बचे हैं.