भोपाल। कोरोना संक्रमण से लड़ने के लिए किए गए लॉकडाउन के दौरान मध्यप्रदेश में लाखों की संख्या में दूसरे प्रदेशों से मजदूर अपने घर लौटे हैं. इन मजदूरों के सामने रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया है. इस मामले में एमपी कांग्रेस का कहना है कि प्रदेश में लौटे प्रवासी मजदूरों में बेरोजगारी से पैदा हुई मानसिक स्वास्थ्य की विकट समस्या को काबू में करने के लिए मध्यप्रदेश की शिवराज सरकार बुरी तरह फेल हुई है, इस कारण कई लोग आत्महत्या कर रहे हैं.
मध्यप्रदेश कांग्रेस के मीडिया विभाग के उपाध्यक्ष भूपेंद्र गुप्ता का कहना है कि भिंड जिले में लॉकडाउन के कारण बेरोजगारी से परेशान होकर मात्र तीन माह में 28 नौजवानों द्वारा आत्महत्या करने का समाचार दिल दहलाने वाला है. मध्यप्रदेश सरकार रोज समाचार पत्रों में हेड लाइन बनाने के लिए योजनाएं की घोषणा तो करती है, लेकिन घोषणाएं कहां दम तोड़ देती हैं, कोई नहीं जानता.
'सिर्फ विज्ञापन कर रही सरकार'
भूपेंद्र गुप्ता ने कहा, 'बड़े उद्योगों में मात्र 69, मध्यम श्रेणी के उद्योगों में मात्र 600 लोगों को रोजगार हासिल हुआ है, जबकि ठेकेदारों के मजदूरों के रूप में 2700 लोग काम हासिल कर पाए हैं. मध्यप्रदेश सरकार के खोखले दावे और उम्मीदें जगाने के कागजी विज्ञापन मजदूरों के बीच में रोजगार तो नहीं दे पा रहे हैं, लेकिन अवसाद और हीन भावना का वातावरण बना रहे हैं, जिससे लोग आत्महत्या का रास्ता चुन रहे हैं.
कांग्रेस ने लगाया गंभीर आरोप
कांग्रेस का आरोप है कि कुल 7 लाख 30 हजार 331 पंजीकृत मजदूरों में से मध्यप्रदेश सरकार का रोजगार सेतु कुल 35 हजार 932 मजदूरों को रोजगार दे पाया है. वह भी मनरेगा और ग्राम पंचायत के कार्यों में दिया गया है, जिसके कारण मुश्किल से प्रति व्यक्ति को महीने में 25 दिन ही काम हासिल हुआ है, जबकि सरकार लाखों मजदूरों को काम देने का दावा कर रही है.
आत्महत्या के कारण किए जाएं सार्वजनिक
कांग्रेस ने सरकार से मांग की है, भिंड की तरह समूचे मध्यप्रदेश के स्तर पर आत्महत्याओं के कारणों के आंकड़े सार्वजनिक किए जाएं. सरकार के पास कागजी योजनाओं के अलावा रोजगार देने के कौन से ठोस विकल्प हैं, इसकी जानकारी सार्वजनिक की जाए. ऐसी समितियों में जो रोजगार का प्रबंधन करें, उसमें प्रोफेशनल और विपक्षी दलों के नेताओं को शामिल किया जाए ताकि अफसरशाही पर नकेल कसी जा सके. सरकार जब तक हेडलाइन मैनेजमेंट से जनता को गुमराह करने का काम करती रहेगी. तब तक रोजगार देने के मामले के सार्थक परिणाम नहीं आएंगे.